मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश का बहराइच जिला, जो हाल ही में हिंदू-मुस्लिम दंगे की वजह से सुर्खियों में आया, सांप्रदायिक सौहार्द की एक समृद्ध परंपरा और गहरी जड़ें रखता है. यहां के लोग हमेशा से एक-दूसरे के साथ मिलकर त्योहार मनाते आए हैं, चाहे वह हिंदू हों या मुस्लिम। बहराइच का यह सौहार्दपूर्ण माहौल केवल किताबों में दर्ज इतिहास नहीं, बल्कि आज भी रोजमर्रा की जिंदगी में दिखाई देता है.
इसका सबसे ताजा उदाहरण दौलत राम और उनके पड़ोसी नसीम अहमद की कहानी है, जो इस बात का प्रमाण है कि बहराइच में धर्म से ऊपर इंसानियत को जगह दी जाती है.
— Rajesh Sahu (@askrajeshsahu) October 17, 2024
दंगे की मार, लेकिन इंसानियत बची रही
बहराइच में हाल ही में हुए सांप्रदायिक दंगे ने बहुत से घरों को जला दिया और लोगों की ज़िंदगी को अस्त-व्यस्त कर दिया. इसी दंगे में नसीम अहमद का घर भी आग के हवाले कर दिया गया. जब दंगाई नसीम के इलाके में पहुंचे और उनके घर में आग लगा दी, तो उनके पड़ोसी दौलत राम ने इंसानियत की मिसाल पेश की.
नसीम के घर को जलते देख दौलत राम वहां पहुंचे और उन्हें सांत्वना दी. यह दोनों एक वीडियो में एक साथ जमीन पर बैठे दिख रहे हैं, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. वीडियो में दौलत राम बता रहे हैं कि दंगाइयों की भारी भीड़ ने इलाके में आकर कहर बरपाया. दौलत राम और नसीम के परिवारों को अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा, और इसी बीच नसीम का घर जलकर खाक हो गया.
यह कहानी केवल बहराइच की वर्तमान परिस्थिति की नहीं है, बल्कि इस जिले की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की भी है. बहराइच में हिंदू-मुस्लिम एकता की जड़ें इतनी गहरी हैं कि ये क्षणिक घटनाएं इस पर लंबे समय तक असर नहीं डाल सकतीं. यहां का हर धर्म और जाति के लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ खड़े रहते हैं.
देवी मंदिर और पूजा-अर्चना करती महिलाएं
दरगाह और मंदिर: सौहार्द के प्रतीक
बहराइच के सांप्रदायिक सौहार्द की बात करें, तो यहां की दरगाह शरीफ एक अद्वितीय उदाहरण है. यह दरगाह न केवल मुस्लिम बल्कि हिंदू समुदाय के लिए भी आस्था का केंद्र है. यहां रोज़ बड़ी संख्या में हिंदू श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं. दरगाह में मन्नत मांगने वालों में मुसलमानों से ज्यादा हिंदू होते हैं, और जब उनकी मन्नत पूरी होती है तो वे दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं.
इतना ही नहीं, बहराइच के देवी मंदिरों में भी हिंदू-मुस्लिम एकता की कई कहानियाँ मिलती हैं. महसी तहसील के घुरहरीपुर गांव का उदाहरण लें, जहां के देवी मंदिर की देखभाल मोहम्मद अली नामक व्यक्ति करते हैं.
मोहम्मद अली ने मंदिर के पुनर्निर्माण का बीड़ा उठाया और गांव से लेकर शहर तक चंदा इकट्ठा किया.
उनकी मेहनत से अब यह मंदिर एक भव्य रूप में खड़ा है. अली ने अयोध्या की हनुमानगढ़ी की तर्ज पर बजरंगबली का एक भव्य मंदिर भी बनवाया. इस मंदिर में सिर्फ हिंदू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम महिलाएं भी नवरात्र के दौरान पूजा करने आती हैं.
देवी मंदिर की देख-भाल करने वाले मोहम्मद अली
बहराइच का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक वैभव
बहराइच का सांप्रदायिक सौहार्द केवल वर्तमान घटनाओं में ही नहीं झलकता, बल्कि इसका इतिहास भी इस समरसता की गवाही देता है. बौद्ध धर्म के अनुयायी रहे चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाह्यान ने बहराइच की यात्रा के दौरान इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक सौहार्द का वर्णन किया था.
यहां तक कि प्रसिद्ध मुस्लिम यात्री इब्न-बतूता ने भी अपने यात्रा वृतांत में बहराइच का उल्लेख किया और यहां के हिंदू-मुस्लिम समरसता की तारीफ की.बहराइच का यह स्वर्णिम अतीत आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है, लेकिन हाल ही में हुए सांप्रदायिक तनाव ने इस चमकती छवि पर धुंधलापन डाल दिया है.
फिर भी, यहां के लोग जानते हैं कि यह स्थिति अस्थायी है. वे इस दौर को पीछे छोड़कर एक बार फिर से शांति और सौहार्द के रास्ते पर लौट आएंगे.
बहराइच में सैय्यद सालार मसऊद गाजी की दरगाह
शांति हमारी पहचान है
बहराइच के कई धार्मिक और सामाजिक नेता इस वक्त शांति और भाईचारे की बात कर रहे हैं. ओमप्रकाश तिवारी, जो संघारिणी मंदिर के महंत हैं, कहते हैं, "बहराइच की पहचान हमेशा से शांति और सौहार्द रही है. हमें इसे बनाए रखना है. कुछ लोग गलत कर रहे हैं, उन्हें सजा मिलेगी, लेकिन जरूरत इस बात की है कि हम सब मिलकर फिर से शांति और सद्भाव का माहौल बनाएं."
वहीं, बहराइच की मशहूर दरगाह शरीफ से जुड़े मौलाना मोइनुद्दीन कादरी का भी यही संदेश है. वे कहते हैं, "इस्लाम ने हमेशा अमन और शांति की शिक्षा दी है. पैगंबर मोहम्मद ने भी हमें यही सिखाया है कि हम हर हाल में शांति बनाए रखें. आज जब माहौल खराब करने वाले लोग सक्रिय हो गए हैं, तो हमें और भी सतर्क रहने की जरूरत है। हमें इस्लाम की तालीम को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए."
आगे की राह: शांति और सौहार्द की ओर
बहराइच का यह सौहार्दपूर्ण वातावरण, जो सदियों से बना हुआ है, किसी भी अस्थायी उथल-पुथल से कमजोर नहीं हो सकता. दौलत राम और नसीम अहमद की कहानी यह साबित करती है कि चाहे जो भी हो, यहां के लोग एक-दूसरे के साथ खड़े रहेंगे.
अब जरूरत इस बात की है कि बहराइच के लोग इस हिंसा को पीछे छोड़कर फिर से मिल-जुलकर शांति और सद्भाव की राह पर चलें. बहराइच का सांप्रदायिक सौहार्द यहां की पहचान है, और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है.