अदब में ज़ेहनी कैफियत खुल कर सामने आती है , बोले खालिद जावेद

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 13-12-2023
 अदब में ज़ेहनी कैफियत खुल कर सामने आती है , बोले खालिद जावेद
अदब में ज़ेहनी कैफियत खुल कर सामने आती है , बोले खालिद जावेद

 

मोहम्मद अकरम/ नई दिल्ली

साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित वार्षिक किताब मेले पुस्तकायन के आखिरी दिन अपने पसंदीदा अदीब से मिलिए प्रोग्राम के तहत उर्दू के विख्यात उपन्यासकार प्रो. खालिद जावेद, हिन्दी के कहानी लेखक महुआ मोइत्रा और पंजाबी अदीब बलदेव सिंह ने अपने साहित्यिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की.

प्रोफेसर खालिद जावेद ने कहा कि उनका बचपन साहित्यिक माहौल में गुजरा, जब वे होश संभाला तो घर के सभी सदस्यों के साथ मिलकर अपने घर की महत्वपूर्ण पत्रिकाओं की कहानियां सुनें. जब वह सात या आठ साल के थे तब उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था. सिर्फ अदब में ज़ेहनी कैफियत खुल कर दर्शाता है,
 
भूख को एक भाषा के रूप...

उन्होंने यह भी कहा कि जब वे कॉलेज गए तो विभिन्न विज्ञानों में मनुष्य की तलाश करते रहे लेकिन उन्हें मनुष्य केवल साहित्य में ही मिला जहां मनुष्य की मानसिक स्थिति खुलकर प्रतिबिंबित हो सकती है.
 
उन्होंने दर्शकों को अपने खास अंदाज में संबोधित करते हुए कहा कि शरीर के जिन अंगों का इस्तेमाल हम खाने के लिए करते हैं, उनका इस्तेमाल बोलने के लिए भी किया जाता है. यानी भूख और वाणी का रिश्ता बहुत गहरा है और इससे हमें भूख को एक भाषा के रूप में समझने में मदद मिलती है.
 
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नेमत खाना एक ही होता है वस्तुएं अलग-अलग

उन्होंने अपने मशहूर उपन्यास 'नेमत खाना' के बारे में विस्तार से बात की और कहा कि गरीबों और अमीरों के नेमत खाना का नाम एक ही होता है, लेकिन उसमें रखी वस्तुएं अलग-अलग हैं, जिससे हम अमीर और गरीब के बीच का अंतर समझते हैं.
 
उन्होंने कहा कि इस उपन्यास में रसोई से संबंधित विभिन्न रूपों का बखूबी इस्तेमाल किया गया है और यह दिखाने की कोशिश किया गया है कि कैसे रसोई पर कब्जे की लड़ाई हर घर में आम है.
 
उपन्यास का अनुवाद होने के बाद ...

उन्होंने कहा कि जब 2014 में उनका उपन्यास प्रकाशित हुआ था, तो इसे अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली थी, यहां तक कि टिप्पणियां भी ज्यादा नहीं थीं, लेकिन जब इसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुआ, तो इसकी लोकप्रियता अचानक काफी बढ़ गई.
 
जेसीबी को पुरस्कार भी मिला, इससे इसके महत्व को समझा जा सकता है और अनुवाद की उपयोगिता को भी.मालूम हो कि साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित नौ दिवसीय पुस्तक मेले का आज आखिरी दिन था.