रक्तदान कर मोहम्मद रफी की यादों को संजोया गया

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 29-01-2025
Memories of Mohammad Rafi were preserved by donating blood
Memories of Mohammad Rafi were preserved by donating blood

 

भक्ति चालक 
 
सुरेश सपकाल अब तक सैकड़ों रक्तदान शिविर आयोजित कर चुके हैं. यह 98 वीं बार है जब उन्होंने अपना रक्तदान किया है. रक्तदान शिविर आयोजित करने के पीछे सपकाल की एक दिल दहला देने वाली कहानी है. जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ''2012 में मेरे इकलौते बेटे की 19 साल की उम्र में ब्लड कैंसर से मौत हो गई. मेरे बेटे की मृत्यु ने मुझे रक्त की वास्तविक आवश्यकता का एहसास कराया. फिर मैंने रक्तदान करने का बीड़ा उठाया ताकि मैं अपने बेटे के खोने पर दुखी होकर घर पर बैठने के बजाय समाज में कुछ योगदान दे सकूं.”

फ़िल्मों में भावपूर्ण गायन की अद्भुत प्रतिभा रखने वाले और सिने गीतों के स्वर्ण युग के भागीदार रहे मोहम्मद रफ़ी की जन्मशताब्दी 24 दिसंबर 2024 को शुरू हुई. ताना, प्रेम गीत, नृत्य गीत, विरहा गीत, भक्ति गीत, ग़ज़ल, कव्वाली जैसे रफ़ी के गीतों ने प्रशंसकों को मंत्रमुग्ध कर दिया है. उनकी जन्मशती के अवसर पर देश भर में संगीत और नृत्य जैसे कई कार्यक्रम आयोजित किये गये. लेकिन पुणे के नवी पेठ में एक अनोखी गतिविधि देखने को मिली.
 
पुणे के रहने वाले सुरेश सपकाल ने मोहम्मद रफी की जन्मशती के उपलक्ष्य में एक नई पहल शुरू की है. उन्होंने हाल ही में सुजय प्रतिष्ठान के माध्यम से नवी पेठ इलाके में एक रक्तदान शिविर का आयोजन किया था. इस रक्तदान शिविर को पुणे के लोगों से भी अच्छी प्रतिक्रिया मिली. पचास से अधिक लोगों ने रक्तदान कर मोहम्मद रफी की जन्मशती मनाई. रक्तदान शिविर के बाद शाम को मोहम्मद रफी के जीवन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई. इसके बाद सुमधुर संगीत समारोहों का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया. 
 
 
 
ऐसी अवधारणा
 
रफ़ी की जन्मशती पर इस सामाजिक पहल को शुरू करने की अनूठी अवधारणा के बारे में बात करते हुए सपकाल ने कहा, “मेरे मामा रफ़ी के बहुत बड़े प्रशंसक हैं. वे हर साल मोहम्मद रफ़ी के जन्मदिन पर एक संगीत समारोह का आयोजन करते हैं. फिर इस साल रफी की जन्मशती थी, इसलिए हम दोनों ने मिलकर रक्तदान शिविर आयोजित करने का फैसला किया.''
 
उन्होंने आगे कहा, “यह शायद पहली बार है कि किसी ने किसी गायक की याद में रक्तदान शिविर का आयोजन किया है. मैंने सोचा कि क्यों न कुछ अन्य गतिविधियां करने के बजाय रक्तदान शिविर लगाया जाए. इस पहल से समाज में अच्छा संदेश जाएगा और जरूरतमंदों को मदद मिलेगी. इसलिए मैंने रक्तदान शिविर लगाने का फैसला किया.''
 
राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया 
 
कोरोना के मद्देनजर जब राज्य भर में रक्त की कमी हुई, तो सुरेश सपकाल और उनकी संस्था ने मिलकर एक हजार से अधिक जरूरतमंद लोगों को प्लाज्मा और रक्त उपलब्ध कराया. उनके योगदान के लिए उन्हें तत्कालीन राज्यपाल ने सम्मानित किया था. 
 
थैलेसीमिया रोग का प्रकोप अधिकतर बच्चों में देखा जाता है. इस बीमारी के कारण कई बच्चों की जान भी चली जाती है. इन मरीजों को दो माह में एक बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. इसलिए सपकाल ऐसे मरीजों को बचाने के लिए अधिक से अधिक रक्तदान शिविर लगा रहा है.   
 
मुस्लिम समुदाय में रक्तदान के प्रति जागरुकता 
 
सपकाल कहते हैं, ''कोरोना काल में जिन मुस्लिम भाइयों की हमने खून की जरूरत को पहचानकर मदद की, उन्हें हमने साथ लिया और शास्त्री चौक पर रक्तदान को लेकर फतवा जारी किया. तब से वो लोग हर साल रक्तदान शिविर भी लेते हैं और बड़ी मात्रा में रक्तदान भी करते हैं.” 
 
वह आगे कहते हैं, “हमने रामटेकड़ी के गांव हडपसर के लोगों को भी रक्तदान के महत्व के बारे में समझाया. हमने उनसे कहा कि अगर मुसलमान भी नियमित रूप से रक्तदान करना शुरू कर दें तो 10 फीसदी लोगों की रक्त की जरूरत पूरी हो सकती है. हमारे बताने के बाद उन लोगों को भी इसका महत्व समझ में आया और उन्होंने हम पर रक्तदान करने का भरोसा किया.” 
 
समाज में मानवता बनाए रखने के लिए सभी को जाति, धर्म, संप्रदाय का विचार किए बिना कर्तव्य और वास्तविक आवश्यकता को समझकर रक्तदान करना चाहिए. आज के समय में रक्तदान ही मानवता की सच्ची अभिव्यक्ति है, यह राय व्यक्त करते हुए सपकाल ने कहा, ''रक्त किसी फैक्ट्री में नहीं बनता, यह सिर्फ इंसानों से प्राप्त होता है. जब रक्तदान करने का समय आता है तो कोई व्यक्ति की जाति नहीं देखता. असल में खून की कोई जाति-धर्म नहीं होती, इसलिए कोई नहीं जान सकता कि वह हिंदू है या मुसलमान. खून में सिर्फ इंसानियत होनी चाहिए. इसलिए लोगों को अधिक से अधिक रक्तदान करना चाहिए, क्योंकि किसी का समय कब आ जाए यह कोई नहीं बता सकता.”