मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: भारत के पहले शिक्षा मंत्री और एकता के प्रतीक

Story by  फिदौस खान | Published by  onikamaheshwari | Date 12-11-2024
All religions bind us in one thread: Maulana Azad
All religions bind us in one thread: Maulana Azad

 

फ़िरदौस ख़ान 

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के लिए पूरी दुनिया ही एक परिवार थी और इसमें रहने वाले सभी लोग परिवार के सदस्य. उनका कहना था- “सारी मानव जाति को उसी ख़ुदा ने बनाया है, जिसने इतिहास के विभिन्न कालों में पृथ्वी के हर कोने में अनेक पैग़म्बरों को भेजा है, इसलिए सबका यही एक अलौकिक स्रोत है. यह पूर्ण मानवता किसी भी धार्मिक समुदाय की सीमा से परे है और अन्त्तत: राष्ट्रीय विभाजनों के विरुद्ध है.

दुनिया का, जो पहले ही अनेक देशों की सीमाओं में बटी है, जाति, धर्म आदि के आधार पर और ज़्यादा बटवारा करना मानवता के सच्चे सिद्धांत के बिल्कुल विपरीत है.” उनका यह भी कहना था- “धर्म की एकता एक बड़ा सत्य है जो कि क़ुरआन का मूलभूत आधार है.
 
सभी धर्मों का उद्देश्य विभाजित लोगों को एक सूत्र में बांधना होता है.” वे गर्व से कहते थे- “हमने किसी पर आक्रमण नहीं किया है. हमने किसी पर विजय प्राप्त नहीं की है. हमने उनकी ज़मीन, उनकी संस्कृति, उनके इतिहास को नहीं पकड़ा है और न उन पर हमारे जीवन के तरीक़े को लागू करने की कोशिश की है.”
 
मौलाना आज़ाद बहुआयामी प्रतिभा के धनी और विद्वान थे. वे न सिर्फ़ एक कामयाब राजनीतिज्ञ व स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वे बहुत अच्छे साहित्यकार, शायर और पत्रकार भी थे. उन्होंने बतौर शायर दिल को छू लेने वाली शायरी की.
 
उन्होंने पत्रकार के तौर पर ज्वलंत मुद्दों को उठाया और लेखक के रूप में विभिन्न विषयों पर ज्ञानवर्धक लेख लिखे. उनके लेखों में इस्लामी दर्शन के साथ-साथ सामाजिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता की भी झलक मिलती है. उनकी प्रमुख रचनाओं में तर्जुमान-उल-क़ुरआन, तज़्किरा, ग़ुबार-ए-ख़ातिर और इंडिया विन्स फ़्रीडम आदि शामिल हैं.
 
किताब ग़ुबार-ए-ख़ातिर उनके मौलाना हबीबुर्रहमान ख़ान शेरवानी को लिखे ख़तों का संग्रह है. इंडिया विन्स फ़्रीडम उनकी आत्मकथा है. 
 
मौलाना आज़ाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को तत्कालीन उस्मानिया साम्राज्य यानी वर्तमान सऊदी अरब के मक्का शहर में हुआ था. उनका असल नाम मुहिउद्दीन अहमद था. उनके वालिद मौलाना सैयद मुहम्मद ख़ैरुद्दीन फ़ारसी थे और उनकी माँ आलिया अरबी मूल की थीं. उन्हें बुनियादी तालीम अपने घर से ही मिली.
 
उच्च शिक्षा उन्होंने मिस्र के क़ाहिरा में स्थित अल अज़हर विश्विद्यालय से हासिल की. इसके बाद उनका परिवार कलकत्ता आ गया. यहीं से उनका सियासी और सहाफ़ी सफ़र शुरू हुआ. उन्होंने अलहिलाल नाम से एक साप्ताहिक अख़बार निकाला. यह पहला सचित्र सियासी साप्ताहिक था.
 
यह अख़बार बहुत लोकप्रिय हुआ. उन्होंने अपने अख़बार के ज़रिये ब्रिटिश हुकूमत के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की. इसका नतीजा यह हुआ कि अंग्रेज़ी हुकूमत ने अख़बार पर पाबंदी लगा दी. मौलाना हार मानने वाले नहीं थे. इसलिए उन्होंने अल बलाग़ नाम से दूसरा अख़बार निकालना शुरू कर दिया. उन्होंने नैरंग-ए-आलम, पैग़ाम और लिसान-उल-सिद्क़ का भी प्रकाशन किया. इनके अलावा वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से भी जुड़े रहे.
 
मौलाना आज़ाद ने जंगे आज़ादी में हिस्सा लिया. उन्होंने असहयोग आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन और ख़िलाफ़त आन्दोलन में भी शिरकत की। महात्मा गांधी से मुलाक़ात करने के बाद वे कांग्रेस से जुड़ गए. वे मुस्लिम लीग के भी सदस्य थे,
 
लेकिन मुस्लिम लीग द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन की निन्दा करने के बाद उन्होंने इसे छोड़ दिया. वे देश के बंटवारे के भी ख़िलाफ़ थे. जब मुहम्मद अली जिन्ना की अगुवाई में लाहौर में पाकिस्तान संकल्प पारित हुआ, तो मौलाना आज़ाद ने कहा- “मैं भारतीय राष्ट्रीयता को अविभाज्य एकता का हिस्सा मानता हूं.
 
मैं इस महान राष्ट्र के लिए अपरिहार्य हूं तथा मेरे बिना भारत का यह वैभवशाली स्वरूप अपूर्ण है. मैं भारत का निर्माण करने वाला अपरिहार्य तत्व हूं. मैं इस दावे से कभी पीछे नहीं हट सकता.”
 
वाक़ई उन्होंने ऐसा ही किया. उन्होंने देश की एकता और अखंडता के लिए काम किया. वे प्रभावशाली राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरे. वे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी रहे. वे कई बार जेल गए और उन्होंने अंग्रेज़ों के ज़ुल्म सहे, लेकिन अपने मक़सद से ज़रा-सा भी पीछे नहीं हटे.   
 
मौलाना आज़ाद का शिक्षा के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान है. वे देश के पहले शिक्षा मंत्री थे. वे शिक्षा, प्राकृतिक संसाधन एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्री भी रहे. उन्होंने देश में आधुनिक शिक्षा प्रणाली की बुनियाद रखी.
 
उन्होंने अनुसंधान को ख़ूब बढ़ावा दिया. उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद्, भारतीय शिक्षा आयोग, माध्यमिक शिक्षा आयोग, विश्वकविद्यालय अनुदान आयोग, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी आदि संस्थानों की स्थापना की.
 
केन्द्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने सरकार से केंद्र और राज्यों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया. उन्होंने चौदह साल तक की उम्र के सभी बच्चों के लिए शिक्षा मुफ़्त और अनिवार्य करने की वकालत की. उन्होंने लड़कियों की शिक्षा, कृषि शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसे सुधारों के लिए भी काम किया.  
उनका कहना था- “शिक्षा एक बहुत ही अहम शक्ति है जो जीवन को बेहतर बनाने में मदद करती है. शिक्षा हमें आज़ाद, ज़िम्मेदार और बेहतर इंसान बनाती है. शिक्षा हमें सपने साकार करने, जीवन में सफ़ल होने और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करती है.
 
शिक्षा हमें एक समृद्ध और ख़ुशहाल जीवन जीने में मदद करती है. 
शिक्षाविदों को छात्रों में जिज्ञासा, रचनात्मकता, उद्यमशीलता और नैतिक नेतृत्व की भावना का निर्माण करना चाहिए. दिल से दी गई शिक्षा समाज में क्रांति ला सकती है.” 
 
उन्होंने 22 फ़रवरी 1958 को दिल्ली में आख़िरी सांस ली. उनकी क़ब्र दिल्ली की जामा मस्जिद के परिसर में है. उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था- “हम आज ऐसे महान व्यक्तित्व के निधन पर शोक व्यक्त कर रहे हैं, जो एक प्रखर बुद्धि वाला और मेधावी था और जिसमें समस्या की जड़ तक पहुंचने की अद्भुत क्षमता थी.
 
प्रखर शब्द का प्रयोग शायद मैं उनकी बुद्धि की प्रशंसा हेतु सबसे अच्छे शब्द के रूप में कर रहा हूं. जब हम एक ऐसे साथी, मित्र, सहकर्मी, कामरेड, नेता और शिक्षक से जुदा होते हैं और उनको अपने बीच नहीं पाते हैं तो हमारे जीवन और कार्यों में एक भारी शून्यता आ ही जाती है.      
 
मौलाना आज़ाद का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है. भारत सरकार ने साल 1992 में उन्हें मरणोपरान्त देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया. उनके सम्मान में कई संस्थानों के नाम उनके नाम पर रखे गए हैं, जिनमें नई दिल्ली का मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज, भोपाल का मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, हैदराबाद का मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय आदि शामिल हैं.
 
बेशक मौलाना अबुल कलाम आज़ाद सभी के लिए सदा प्रेरणा का स्रोत रहेंगे और देश उन्हें हमेशा याद रखेगा.