मालेगांव  का रमज़ान स्पेशल नान: लाखों का पसंदीदा, आपने खाया है ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 29-03-2025
Malegaon's Ramzan Special Naan: A favourite of millions, have you eaten it?
Malegaon's Ramzan Special Naan: A favourite of millions, have you eaten it?

 

आवाज द वाॅयस मराठी 

मालेगांव—ये शहर महाराष्ट्र का वो इलाक़ा है जहाँ मुस्लिम आबादी सबसे ज़्यादा है, और यहाँ की रौनक़ रमज़ान में कुछ और ही बढ़ जाती है। यहाँ की गलियों में रमज़ान के दिनों में एक ख़ास नान बनता है—बड़ा, मज़ेदार और सबके दिल को भाने वाला. बाक़ी ग्यारह महीने बेकरियाँ खारी, पाव, टोस्ट, ब्रेड बनाती हैं, मगर रमज़ान आते ही सब कुछ बदल जाता है. यहाँ का स्पेशल नान सिर्फ़ पेट नहीं भरता, बल्कि हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल भी बनता है. 

रमज़ान का ख़ास मेहमान: नान

सुबह-सुबह जब मुस्लिम भाई रोज़ा रखते हैं, तो चाय या दूध के साथ ये बड़ा नान उनका साथी बनता है. मालेगांव   की बेकरियों में हर रोज़ पाँच से छह लाख नान तैयार होते हैं.

भाकरी (बड़ी रोटी) जितना बड़ा ये नान कई क़िस्मों में आता है—20 रुपये से लेकर 100 रुपये तक. शहर से बाहर धुले, येवला, मनमाड, सटाणा और कसमादे तक इसकी खुशबू फैलती है. पूरे महीने लोग इसे शौक़ से खाते हैं, और ये स्वाद सबको एक साथ जोड़ता है. 

नान की वैरायटी, मज़े की गारंटी

यहाँ नान में दस-बारह तरह के मज़े हैं—काजू, मावा, मसाला, डब्बा, चेरी, स्पेशल, खोवा, वग़ैरह. शहर में बीस-पच्चीस बेकरियाँ हैं, जहां रात-दिन ओवन चलते हैं. 50-60 ग्राम मैदे से 20 रुपये का नान बनता है, और इसे तैयार करने में 15-20 मिनट लगते हैं.

रमज़ान में मालेगांव रातभर जागता है—दूध की दुकानें, किराना स्टोर, खजूर-फल बेचने वाले, हलवाई, और चौकों में हाथ गाड़ियों पर नान की बिक्री. ये नान साल में एक बार मिलता है, तो हर कोई इसे चखना चाहता है..

रोज़गार का ज़रिया, सबका ठिकाना

रमज़ान में नान की बिक्री से कई घरों का चूल्हा जलता है. छह लाख नान रोज़ बनते हैं, और ये काम कईयों को रोज़गार देता है. कुछ लोग दिन में दूसरा धंधा करते हैं, रात को नान बेचते हैं. 

मालेगांव  की ख़ासियत उसकी मुस्लिम आबादी ही नहीं, बल्कि यहाँ का मेल-जोल भी है. नवाब बेकरी के मालिक हबीब शेख बताते हैं, “यहाँ महीनेभर नान बनता है. हिंदू भाई भी इसे बड़े चाव से खाते हैं. बाहर से आने वाले भी नान ले जाना नहीं भूलते, इसीलिए बिक्री ज़बरदस्त होती है.” 

मामालेगांव : जहाँ स्वाद में बसती है विरासत

मालेगांव महाराष्ट्र का वो कोना है, जहाँ मुस्लिम आबादी की बहुलता इसे एक अलग पहचान देती है. रमज़ान में ये नान सिर्फ़ खाने की चीज़ नहीं, बल्कि साझी संस्कृति का हिस्सा बन जाता है.

हिंदू-मुस्लिम यहाँ साथ बैठकर इसे खाते हैं, और ये छोटी-सी बात बड़ी मिसाल क़ायम करती है. बेकरियों की भट्टियाँ न सिर्फ़ नान पकाती हैं, बल्कि मोहब्बत और भाईचारे को भी गर्म रखती हैं.