मदरसा शिक्षा में बदलाव की जरूरत: एमएसओ वेबिनार में बौद्धिक नेतृत्व का समर्थन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 14-01-2025
Madrasa education needs change: Intellectual leadership supports MSO webinar
Madrasa education needs change: Intellectual leadership supports MSO webinar

 

आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली

मौलाना आज़ाद विश्वविद्यालय जोधपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर अख्तरुल वासेने कहा कि मदरसे भारतीय समाज में एक अहम भूमिका निभाते हैं.भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी अनदेखी नहीं की जा सकती.स्पष्ट किया कि मदरसों ने भारतीय समाज की बौद्धिक और आध्यात्मिक संरचना को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

प्रोफेसर अख्तरुल वासे मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया (एमएसओ) द्वारा “मदरसा शिक्षा प्रणाली: समय के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता” विषय पर आयोजितएक ज्ञानवर्धक और विचारपूर्ण वेबिनार में बोल रहे थे.

यह वेबिनार भारत में मदरसा शिक्षा प्रणाली के विकास, उसके महत्व और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तृत चर्चा करने का एक महत्वपूर्ण मंच था, जिसमें देश भर के प्रतिष्ठित विद्वानों, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया.

इस वेबिनार में विशेष रूप से दो प्रमुख वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए.पहले थे, मौलाना आज़ाद विश्वविद्यालय जोधपुर के पूर्व कुलपति और जामिया मिलिया इस्लामिया (जेएमआई) में प्रोफेसर एमेरिटस, प्रोफेसर अख्तरुल वासे, जिनकी विशेषज्ञता मदरसा शिक्षा और उसकी ऐतिहासिक भूमिका में है.

दूसरे थे, जेएमआई से इस्लामिक अध्ययन में पीएचडी करने वाले विद्वान, डॉ. अशरफुल कौसर मिस्बाही, जिन्होंने मदरसा शिक्षा प्रणाली की वर्तमान चुनौतियों और उसके समक्ष आने वाले आवश्यक परिवर्तनों पर अपनी राय रखी.

प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने मदरसों के ऐतिहासिक योगदान पर प्रकाश डाला

प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने अपने संबोधन में मदरसों की ऐतिहासिक भूमिका पर विस्तार से चर्चा की.उन्होंने कहा कि मदरसे भारतीय समाज में एक अहम भूमिका निभाते हैं और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी अनदेखी नहीं की जा सकती.

प्रोफेसर वासे ने स्पष्ट किया कि मदरसों ने भारतीय समाज की बौद्धिक और आध्यात्मिक संरचना को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.उनके अनुसार, मदरसा शिक्षा प्रणाली ने समय-समय पर अपने पाठ्यक्रम को समाज की जरूरतों के अनुरूप अनुकूलित किया है, और यही कारण है कि ये संस्थान आज भी प्रासंगिक हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि एक प्रगतिशील मदरसा प्रणाली के लिए यह आवश्यक है कि यह प्रणाली निरंतर अद्यतन हो और आधुनिक समय की आवश्यकताओं के अनुरूप स्वयं को ढाल सके.

डॉ. अशरफुल कौसर मिस्बाही ने समकालीन चुनौतियों और समाधान पर विचार साझा किए

डॉ. अशरफुल कौसर मिस्बाही ने मदरसा शिक्षा प्रणाली की समकालीन चुनौतियों पर गहरी चर्चा की.उन्होंने विशेष रूप से मदरसा पाठ्यक्रम में आधुनिक तकनीकों और कौशल-आधारित शिक्षा के समावेश कीआवश्यकता पर जोर दिया.उनके अनुसार, केवल पारंपरिक धार्मिक शिक्षा पर जोर देने से छात्रों को समग्र और आधुनिक दुनिया में प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार नहीं किया जा सकता

.उन्होंने एक संतुलित दृष्टिकोण की वकालत की, जिसमें इस्लामी शिक्षा के पारंपरिक मूल्यों को संरक्षित करते हुए आधुनिक कौशल, तकनीकी शिक्षा और रोजगार-उन्मुख प्रशिक्षण को शामिल किया जाए.

वेबिनार का संचालन और सहभागिता

यह वेबिनार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अंतिम वर्ष के कानून के छात्र असलम आज़ाद मिस्बाही और एमएसओ के संयुक्त सचिव द्वारा किया गया.दोनों ने कार्यक्रम का कुशलतापूर्वक संचालन किया और वक्ताओं और दर्शकों के बीच संवाद को प्रोत्साहित किया.

वेबिनार में बड़ी संख्या में छात्रों, शिक्षकों और समाज के विभिन्न वर्गों के नेताओं ने भाग लिया.वे सब मदरसा शिक्षा प्रणाली के सुधार और उसे समकालीन जरूरतों के अनुरूप ढालने के तरीकों पर विचार-विमर्श कर रहे थे.

एमएसओ की प्रतिबद्धता और समापन

एमएसओ ने इस वेबिनार के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य हाशिए पर स्थित समुदायों के लिए बेहतर शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति में सुधार करना है.इस वेबिनार ने यह भी संदेश दिया कि शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार लाने के लिए संवाद और सहयोग बेहद आवश्यक है.

वेबिनार का समापन एक महत्वपूर्ण आह्वान के साथ हुआ, जिसमें सभी हितधारकों से यह अपील की गई कि वे मदरसा शिक्षा के मूल्यों को संरक्षित करते हुए इसे आधुनिक दुनिया के अनुरूप बदलने के लिए मिलकर काम करें.

एमएसओ के इस प्रयास से यह स्पष्ट हुआ कि मदरसा शिक्षा प्रणाली का भविष्य बेहद उज्जवल है, बशर्ते इसे समय-समय पर अद्यतन किया जाए और सामाजिक और तकनीकी बदलावों के साथ इसे सामंजस्यपूर्ण तरीके से विकसित किया जाए.