जितेंद्र पुष्प / रामपुर, धनबाद ( झारखंड)
रामपुर के छोटे से गांव में एक अद्भुत प्रेम कहानी बुनती है, जो धर्म और संस्कृतियों की दीवारों को तोड़कर मानवता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है.70 वर्षीय गुजरी देवी, जो निःसंतान हैं, पिछले 35 वर्षों से एक मुस्लिम युवक, एनुल अंसारी के दीर्घायु के लिए जितिया व्रत कर रही हैं.
गुजरी देवी के पति स्वर्गीय रतन रजक के बाद, उन्होंने मानिक रजक को गोद लिया और उसे अपने बेटे की तरह पाल पोसकर बड़ा किया.मानिक और एनुल की बचपन से गहरी दोस्ती है, और गुजरी देवी ने दोनों की दीर्घायु की कामना के लिए जितिया व्रत करने का निश्चय किया.उनका मानना है कि जब मानिक के लिए व्रत कर सकती हैं, तो एनुल के लिए क्यों नहीं?
बुधवार को अष्टमी तिथि पर गुजरी देवी ने दोनों युवकों को रक्षा सूत्र बांधकर उनके लिए लंबी उम्र की कामना की और फिर व्रत तोड़ा.गुजरी देवी कहती हैं, "मेरे मन में कभी यह नहीं आया कि एनुल दूसरे धर्म से है.वह मेरे लिए हमेशा एक बेटा रहा है."
एनुल भी गुजरी देवी को मां की तरह मानता है.वह अपने पारिवारिक त्योहारों में गुजरी देवी के घर जाकर उन्हें प्रणाम करता है.आशीर्वाद लेता है.एनुल का कहना है, "गुजरी देवी ने मुझे कभी कमी महसूस नहीं होने दी.उन्होंने मुझे अपने बेटे की तरह प्यार और देखभाल दी."
गुजरी देवी का यह अनूठा व्रत और उनके प्रति एनुल का स्नेह इस बात का प्रमाण है कि सच्चा प्रेम और संबंध किसी भी धर्म और संस्कृति से परे होते हैं.यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चे रिश्ते सद्भाव और समझ से बनते हैं, जो समाज में एकता और भाईचारे की मिसाल पेश करते हैं.
गुजरी बताती है दोनो में प्रगाढ़ दोस्ती के वजह से दिल से दोनो को पुत्र के समान ही प्यार देती रही हूं.दोनो दोस्त है तो सदा सुखी रहे, स्वस्थ रहे, दीर्घायु रहे ताकि दोनो की दोस्ती समान रूप से कायम रहे. इस लिए हिंदू पर्व त्योहार में मानिक और एनूल दोनो के साथ एक समान व्यवहार किया जाता है.
यह क्रम विगत 35 सालों से चला आ रहा है.गुजरी देवी बताती है कि एनुल अब बाल बच्चेदार हो गया है, लेकिन हमारे सामने वह तब भी बच्चा था और अभी भी बच्चा ही है.गुजरी देवी अपने बेटे की तरह उसे बुलाती है.एनुल भी गुजरी देवी के साथ मां के समान व्यवहार करता है.
अभी एनुल गांव से कुछ दूर रामपुर मोड़ पर रहता है, लेकिन पर्व त्योहार में काम छोड़कर हाथ बटाता है.दुर्गा पूजा में उनके घर जाकर हिंदू पुत्र की भांति पैर छूकर उनसे आशीर्वाद और प्रसाद ग्रहण करता है.कहता है कि उसने भले ही अपने गर्भ से जन्म नहीं दिया लेकिन प्यार खूब पाया.जब छोटा था तो वह खूब खिलाती पिलाती थी.जिसके कारण आज भी हमारे माता के समान है, और वह हमें प्यार और सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी है.