दिल्ली में गूँज रहीं अदबी महफिलें: तीन दिवसीय 'यादगार-ए-गालिब' का आगाज़

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 16-12-2024
दिल्ली में गूँज रहीं अदबी महफिलें: तीन दिवसीय 'यादगार-ए-गालिब' का आगाज़
दिल्ली में गूँज रहीं अदबी महफिलें: तीन दिवसीय 'यादगार-ए-गालिब' का आगाज़

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली इन दिनों अदब और तहजीब की महफिलों से सराबोर है. जहां एक ओर जश्न-ए-रेख्ता अपनी पूरी शान से मनाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर दिल्ली सरकार और साहित्य कला परिषद के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय 'यादगार-ए-गालिब' कार्यक्रम ने मिर्जा गालिब के चाहने वालों को उनके करीब ला दिया है. बल्लीमारान स्थित गालिब की हवेली में आयोजित इस कार्यक्रम में शायरी, कव्वाली, और गज़ल के जरिए उर्दू अदब के इस महान शायर को याद किया जा रहा है.

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गालिब की हवेली में श्रद्धांजलि

रविवार को बल्लीमारान की गली मीर कासिम जान में गालिब के प्रशंसकों की भीड़ उमड़ पड़ी. शाम को टाउन हॉल, चांदनी चौक से मोमबत्तियों के साथ एक मार्च निकाला गया, जो गालिब की हवेली पहुंचकर संपन्न हुआ. यहां गालिब की तस्वीरों के सामने श्रद्धा के फूल अर्पित किए गए. इस दौरान शायर और संगीतकारों ने गालिब की मशहूर शायरी और गज़लें पेश कर माहौल को और भी खूबसूरत बना दिया.

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मशहूर संगीतकार उस्ताद इमरान खान ने जैसे ही गालिब की ये पंक्तियां पेश कीं, हवेली तालियों की गूंज से भर गई:

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले.

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता.

तहज़ीब और गालिब की याद

इस मौके पर प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा,"गालिब को याद करने का मतलब उस तहज़ीब को याद करना है, जिसमें उनकी शायरी परवान चढ़ी। उनकी शायरी कल भी अमर थी और आने वाली पीढ़ियां भी इसे याद रखेंगी."

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रेडियो जॉकी सीमा वर्मा, जिन्होंने गालिब पर आधारित कई कार्यक्रम पेश किए हैं, ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा,"जब मैंने पहली बार रेडियो जॉइन किया, तब गालिब के बारे में पढ़ना शुरू किया. उनकी शायरी और व्यक्तित्व को समझने के बाद, मुझे महसूस हुआ कि वह कितनी अज़ीम शख्सियत थे/ आज जब मैंने गालिब की हवेली की दीवारों को छुआ, तो ऐसा लगा मानो वह खुद मेरे सामने आ जाएं."

गालिब की विरासत को संजोने वालों की तारीफ

मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति फिरोज अहमद बख्त ने कहा,"आज का यह आयोजन गालिब की विरासत और उर्दू अदब को संजोने का एक बेहतरीन प्रयास है. ऐसे लोग, जैसे उमा शर्मा और संजीव सर्राफ, गालिब और उर्दू भाषा को जिंदा रखने का काम कर रहे हैं."

आज का कार्यक्रम

'यादगार-ए-गालिब' के दूसरे दिन का कार्यक्रम इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित होगा, जहां शाम के वक्त मुशायरा 'गालिब की नज़र' होगा. इस मुशायरे में मशहूर शायर इकबाल अशहर, मोइन शादाब, अजहर इकबाल और कई अन्य कवि अपनी रचनाओं से गालिब को श्रद्धांजलि देंगे.
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गालिब की शायरी, तहज़ीब और अदब का जश्न

तीन दिवसीय इस कार्यक्रम ने न केवल गालिब की शायरी को जिंदा रखा है, बल्कि उर्दू अदब और दिल्ली की तहज़ीब को फिर से गुलजार कर दिया है. बल्लीमारान की गलियों से लेकर गालिब की हवेली तक, हर कोना गालिब के अज़ीम व्यक्तित्व और उनकी शायरी के रंग में रंगा नजर आ रहा है.



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