आवाज द वाॅयस/श्रीनगर/नई दिल्ली
जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) के बेहद करीब बसा सिमारी गांव, जो देश के लोकतंत्र में अपना नाम भारत के पहले मतदान केंद्र (बूथ नंबर-1) के रूप में दर्ज करवा चुका है, अब इतिहास के एक और अध्याय का गवाह बन गया है.
यहां के लोग अब 24 घंटे निर्बाध बिजली का लाभ उठा रहे हैं — और यह संभव हुआ है भारतीय सेना और पुणे स्थित असीम फाउंडेशन की साझेदारी से चलाए गए सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट के माध्यम से.
कर्नाह घाटी में स्थित सिमारी गांव का भूगोल जितना संवेदनशील है, उतनी ही मुश्किलें यहां के लोग वर्षों से झेलते आ रहे थे. गांव का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) की सीमा से सटा हुआ है, जिससे यह क्षेत्र रणनीतिक और सामाजिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण बन जाता है.
कर्नल संतोष महादिक की याद में सौर ऊर्जा से रोशन हुआ सीमांत गांव सिमारी
सेना के चिनार कोर और असीम फाउंडेशन ने मिलकर गांव में चार सोलर क्लस्टर स्थापित किए हैं, जो अब इस दुर्गम क्षेत्र को 24 घंटे बिजली की गारंटी देते हैं. गांव में कुल 53 घर हैं, जिनमें 347 नागरिक रहते हैं — अब सबके घरों में सौर ऊर्जा से संचालित बिजली उपलब्ध है.
बच्चों की पढ़ाई आसान, स्वास्थ्य में सुधार, रोजगार को गति
रक्षा प्रवक्ता ने जानकारी दी कि बिजली की कमी के कारण गांववासी लंबे समय से अंधेरे में जीने को मजबूर थे."बच्चों को रात में पढ़ने में दिक्कत होती थी, मोबाइल फोन चार्ज करना मुश्किल होता था और रोजगार के मौके भी सीमित थे. अब यह गांव रात में भी उजाले से चमकता है."
बिजली आने से बच्चों की पढ़ाई में सुधार हुआ है, युवा ऑनलाइन शिक्षा और रोजगार के अवसरों से जुड़ पाए हैं, और महिलाएं भी घर के कामों को आसानी से कर पा रही हैं.
एलपीजी कनेक्शन ने बदली जिंदगी, बीमारियां भी हुईं कम
बिजली के साथ-साथ गांव में हर घर को डबल बर्नर स्टोव के साथ नया एलपीजी कनेक्शन भी दिया गया है. इससे लकड़ी जलाने की मजबूरी खत्म हुई है, जिससे अब घरों में धुएं से होने वाली बीमारियों में भारी कमी देखी जा रही है.
एक स्थानीय महिला ने बताया, "अब हमें रोज जंगल जाकर लकड़ियां नहीं लानी पड़तीं। खाना जल्दी और साफ-सुथरे तरीके से बन जाता है. बच्चों की तबीयत भी अब कम बिगड़ती है."
इस ऐतिहासिक प्रोजेक्ट को शौर्यचक्र विजेता (मरणोपरांत) कर्नल संतोष महादिक को समर्पित किया गया है..कर्नल महादिक ने नवंबर 2015 में कुपवाड़ा में आतंकियों के खिलाफ अभियान के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी थी. उनके साहस, बलिदान और देशभक्ति की स्मृति में यह परियोजना 'राष्ट्र के नाम उजाला' के रूप में जानी जा रही है.
सिमारी बना आदर्श मॉडल, सीमावर्ती गांवों के लिए प्रेरणा
सिमारी गांव अब सिर्फ भारत के पहले वोटिंग बूथ का प्रतीक नहीं, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास और आत्मनिर्भरता का मॉडल बन चुका है.यह परियोजना दिखाती है कि अगर सरकार, सेना और समाजिक संस्थाएं मिलकर काम करें, तो दुनिया के सबसे कठिन इलाकों में भी रोशनी और प्रगति पहुंचाई जा सकती है.
सिमारी गांव की इस यात्रा ने यह साबित कर दिया है कि राष्ट्र निर्माण केवल शहरों में नहीं होता, बल्कि सीमाओं पर बसे हर छोटे गांव में भी विकास, रोशनी और आत्मनिर्भरता की कहानी लिखी जा सकती है. यह सिर्फ बिजली देने की बात नहीं, बल्कि लोगों की आशा, आत्मगौरव और सम्मान लौटाने की पहल है.