ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
विफ़लता सिखाती है गिर कर उठना और उठ कर संभलना और ज़िंदगी में और अधिक बेहतर कार्य हैं तुझको करना. बस तुझे है चलते रहना. इन पंक्तियों को सार्थक कर रहे हैं एक अधेड़ उम्र के कलाकार जो सड़क पर अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए चटाई पर बिछाकर रखते हैं छोटी-छोटी मोटरसाइकिल, रिक्शे और साइकिल.
एक कलाकार की आत्मा और विचार उसके शिल्प में हमेशा नजर आते हैं. अब्दुल मजीद एक ऐसे शिल्पकार है जो अपने कुशल हाथ से छोटी-छोटी मोटरसाइकिल, रिक्शे और साइकिल बनाते हैं. जिनसे वे यह संदेश दे रहे हैं कि जिंदगी चलने का नाम है.
शिल्पकार अब्दुल मजीद उत्तर प्रदेश में जिला उन्नाव के बांगरमऊ के निवासी हैं.अब्दुल मजीद यहां कैथेड्रल स्कूल के मुख्य द्वार के बाहर शाम 4 बजे से बैठते हैं. उसका काम असाधारण है, फिर भी उन्हें मिलने वाली प्रशंसा की तुलना में उसकी कमाई मामूली है. एक छोटी सी खरीदारी या एक दयालु शब्द भी उसका दिन बना सकता है.
शिल्पकार अब्दुल मजीद का कहना है कि "इस काम में रोटी कम है और तारीफ ज्यादा है, सभी को मेरा काम काफी पसंद आता है. लेकिन इसके दाम मुझे काफी कम मिलते हैं क्यूंकी शायद वे मेरी म्हणत से अज्ञान होते हैं. मेने अपनी छोटे भाई से इस कला को सीखा था और अब इस उम्र में भी मैं इसे करना जारी रखता हूँ क्योंकि मुझे खाली बैठना पसंद नहीं है.
शिल्पकार अब्दुल मजीद की यह दास्ता कड़ी मेहनत, जुनून और अस्तित्व से भरपूर है. ये वे कारीगर हैं, जिनके काम में एक आत्मा होती है, एक ऐसी कहानी जिसे कोई मशीन से बना उत्पाद दोहरा नहीं सकता. इनकी जिंदगी इन हस्तनिर्मित कृतियों में बस्ती है.
हमेशा से ही हाथ से बनी वस्तुऐं हमें खास आकर्षित करती हैं. उनमें कुछ अनोखापन होता है, एक खास ऊर्जा होती है जो निर्माता के समर्पण को दर्शाती है. लेकिन दुख की बात है कि इन कारीगरों को शायद ही कभी उनके काम के लायक भुगतान किया जाता है. एक कारण ब्रांडिंग की कमी है; दूसरा यह है कि लोग इस फैशन के दौर में अब हस्तनिर्मित वस्तुओं को उतना महत्व नहीं देते.
फिर भी, जब आप इन कारीगरों से बात करते हैं, तो आपको पता चलता है कि उनकी कहानियाँ कितनी उल्लेखनीय हैं. ये ज़िंदा दिल की कहानियाँ हैं, मुश्किलों के बावजूद हार न मानने की. यह सोचना दिल दहला देने वाला है कि उनकी कला और भावना अक्सर किसी की नज़र में नहीं आती.
एक पीढ़ी के तौर पर, उनका जश्न मनाना और उनका समर्थन करना हमारी ज़िम्मेदारी है. चाहे उनके उत्पाद खरीदकर, उनकी कहानियाँ साझा करके या उनकी कृतियों को अपनी परियोजनाओं में शामिल करके, हर छोटा-मोटा काम मदद करता है. डिज़ाइनर, डेकोरेटर और क्रिएटर, खास तौर पर, इन शिल्पों को अपने काम में शामिल करके बदलाव लाने की शक्ति रखते हैं.
अब्दुल मजीद एक ऐसे शिल्पकार है जो हाथ से छोटी-छोटी मोटरसाइकिल, रिक्शे, साइकिल बनाते हैं. वह कैथेड्रल स्कूल के मुख्य द्वार के बाहर शाम 4 बजे से बैठते हैं. उसका काम असाधारण है, फिर भी उन्हें मिलने वाली प्रशंसा की तुलना में उसकी कमाई मामूली है. एक छोटी सी खरीदारी या एक दयालु शब्द भी उसका दिन बना सकता है.
आवाज द वॉयस ने इस कहानी को आपके समक्ष पेश किया केवल इस नजरिए से कि ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन कला रूपों या कारीगरों को लुप्त न होने दें. सड़क के किनारे जब हम ऐसे कारीगरों को देखें तो रुकें, उन्हें नमस्ते कहें और जब भी संभव हो उनका समर्थन करें. उनकी कहानियाँ साझा करें, उनकी आवाज़ को बुलंद करें और बदलाव का हिस्सा बनें.
अगर आप ऐसे ही कारीगरों को जानते हैं, तो उनकी कहानियाँ आप हमें मेल कर सकते हैं. हमें उनकी आवाज़ को बड़े दर्शकों तक पहुँचाना अच्छा लगेगा.