बीता साल : ख्वाब को साकार करते मुस्लिम युवा, यूपीएससी और अन्य क्षेत्रों में बड़ी सफलता

Story by  फिरदौस खान | Published by  [email protected] | Date 19-12-2024
Last year: Muslim youth realizing their dreams, great success in UPSC and other fields
Last year: Muslim youth realizing their dreams, great success in UPSC and other fields

 

फ़िरदौस ख़ान

ये साल मुस्लिम युवाओं के लिए बहुत अच्छा रहा है. ख़ासकर संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा देने वाले युवाओं के लिए ये साल हमेशा यादगार रहेगा, क्योंकि ये साल 2023की संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा देने वाले मुस्लिम युवाओं के लिए ख़ुशख़बरी लेकर आया है. इस परीक्षा में 51मुस्लिम उम्मीदवारों का पास होना बहुत बड़ी कामयाबी है.

इन कामयाब मुस्लिमों की दर 5.01फ़ीसद है. इनमें से पांच ने टॉप-100 में जगह बनाई है. टॉप करने वालों में रूहानी, नौशीन, वरदा ख़ान, ज़ुफ़िशां हक़ और फ़बी रशीद शामिल हैं. टॉप-10में नौशीन को नौवीं रैंक हासिल हुई है. इस परीक्षा में देशभर से कुल 1016  लोग चयनित हुए हैं.

यूपीएससी के इस नतीजे ने मुस्लिम युवाओं की बहुत हौसला अफ़ज़ाई की है. उनका यक़ीन और पुख़्ता हो गया कि लगन और मेहनत से सबकुछ हासिल किया जा सकता है.क़ाबिले-ग़ौर है कि इससे पहले साल 2022में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में कुल 933 लोग पास हुए थे. इनमें 29 मुस्लिम थे, जिनकी दर 3.10फ़ीसद थी.

इसी तरह साल 2021 में कुल 685 लोगों में से सिर्फ़ 25 मुस्लिम ही पास हो पाए थे, जिनकी दर 3.64 फ़ीसद थी. साल 2020 में कुल 761 लोग चयनित हुए थे. इनमें 31 मुस्लिम थे, जिनकी दर 4.07 फ़ीसद थी. साल 2019 में कुल 829लोग पास हुए थे.

upsc

इनमें 44 मुस्लिम थे, जिनकी दर 5.30 फ़ीसद थी. साल 2018 में पास होने वाले कुल 759 लोगों में सिर्फ़ 28 ही मुस्लिम थे. इनकी दर 3.68 फ़ीसद थी. साल 2017 में कुल 980 लोग पास हुए थे. इनमें 50 मुस्लिम थे, जिनकी दर 5.10 फ़ीसद थी.

साल 2016 में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में कुल 1099 लोग चयनित हुए थे. इनमें 52 मुस्लिम थे, जिनकी दर 4.73 फ़ीसद थी. यह भी एक बड़ा आंकड़ा था. साल 2015 में 37मुस्लिम उमीदवार ही कामयाब हो पाए थे. साल 2014 में 40 मुस्लिम पास हुए थे, जबकि साल 2013 में 34 मुस्लिम उम्मीदवारों ने कामयाबी हासिल की थी.

इसी साल हरियाणा के नूंह की रहने वाली रुख़साना ने पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग की न्यायिक सेवा परीक्षा में कामयाबी हासिल की है. उनका चयन जज के ओहदे पर हुआ है. रुख़साना का कहना है कि स्कूल के दिनों से ही वे जज बनने का ख़्वाब देखा करती थीं.

उनके घरवालों ने उनका बहुत साथ दिया. उन्हें अच्छी तालीम और अच्छी कोचिंग दिलाई, जिसकी बदौलत वे अब जज बन पाई हैं. हालांकि हरियाणा का यह इलाक़ा बहुत पिछड़ा माना जाता है. लेकिन अब यहां के मुसलमान अपने बच्चों ख़ासकर लड़कियों को आला तालीम दिला रहे हैं, जिससे यहां बदलाव देखा जा सकता है.

ये एक ख़ुशनुमा अहसास है कि मुसलमानों में शिक्षा को बहुत अहमियत दी जा रही है. आज हर क्षेत्र में मुस्लिम युवा कामयाबी का परचम फहरा रहे हैं. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के नतीजे इस बात का सबूत हैं कि मुस्लिम समाज में बेहतर बदलाव आ रहा है.

ये एक तल्ख़ हक़ीक़त है कि देश के मुसलमान आज भी आर्थिक और सामाजिक तौर पर बहुत पिछड़े हुए हैं. दरअसल आज़ादी के बाद देश के मुसलमान हर क्षेत्र में पिछड़ते चले गए. बेशक शिक्षा सभ्य समाज की बुनियाद है. इतिहास गवाह है कि शिक्षित क़ौमों ने हमेशा तरक़्क़ी की है. किसी भी व्यक्ति के समग्र विकास के लिए शिक्षा बेहद ज़रूरी है. मुसलमान अब इस बात को समझने लगे हैं.

देश में बहुत से मुस्लिम शिक्षण संस्थान खुल रहे हैं, जो बच्चों को आला तालीम दिलाने में बहुत ही अहम किरदार निभा रहे हैं. वाजिब फ़ीस होने की वजह से ग़रीब बच्चे भी इनमें दाख़िला ले पा रहे हैं. इनके अलावा बहुत सी मुस्लिम स्वयंसेवी संस्थाएं बच्चों को कोचिंग मुहैया करवा रही हैं, ताकि वे प्रतियोगी परीक्षाओं में कामयाबी हासिल कर सकें.

upsc

दरअसल सच्चर समिति की रिपोर्ट आने के बाद मुसलमानों ने अपने हालात पर ग़ौर व फ़िक्र करनी शुरू की. क़ाबिले-ग़ौर है कि भारत में मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए नियुक्त की गई सच्चर समिति ने 17 नवम्बर 2007 को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की स्थिति अन्य समुदायों की तुलना में काफ़ी ख़राब है.

समिति ने मुसलमानों की स्थिति में सुधार के लिए शिक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में विशेष कार्यक्रम चलाए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अक्टूबर 2005में न्यायाधीश राजिन्दर सच्चर के नेतृत्व में यह समिति बनाई थी. इसकी रिपोर्ट 30नवम्बर 2006को संसद में पेश की गई थी.

सात सदस्यीय सच्चर समिति ने देश के कई राज्यों में सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थानों से मिली जानकारी के आधार पर बनाई अपनी रिपोर्ट में देश में मुसलमानों की काफ़ी चिंताजनक तस्वीर पेश की थी. रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि देश में मुस्लिम समुदाय आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा के क्षेत्र में अन्य समुदायों के मुक़ाबले बेहद पिछड़ा हुआ है.

इस समुदाय के पास शिक्षा के अवसरों की कमी है, सरकारी और निजी उद्योगों में भी उसकी आबादी के मुक़ाबले उसका प्रतिनिधित्व काफ़ी कम है.सच्चर समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि मौजूदा वक़्त में भारतीय पुलिस सेवा में 3,209 अधिकारी हैं, जिनमें से सिर्फ़ 128 मुस्लिम हैं यानी यह दर महज़ क़रीब चार फ़ीसद है.

लेकिन अफ़सोस की बात है कि गुज़रते वक़्त के साथ यह दर बढ़ने की बजाय घटती चली गई. जनवरी 2016में भारतीय पुलिस सेवा में सेवारत 3,754अधिकारियों में सिर्फ़ 120ही मुस्लिम थे. यह दर महज़ 3.19फ़ीसद ही थी.

सच्चर समिति की रिपोर्ट के आंकड़े इस बात को साबित करते हैं कि अन्य समुदायों के मुक़ाबले मुस्लिम महिलाएं सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से ख़ासी पिछड़ी हुई हैं, लेकिन ख़ास बात यह है कि तमाम मुश्किलों के बावजूद वे विभिन्न क्षेत्रों में ख्याति अर्जित कर रही हैं.

upsc

वे मुस्लिम समाज में बदलाव की प्रतीक हैं. पिछले कुछ अरसे से मुस्लिम समाज में भी तालीम की बयार बहने लगी है. इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाला वक़्त मुस्लिम युवाओं ख़ासकर महिलाओं के लिए शिक्षा की रौशनी से जगमगाती सुबह लेकर आएगा.

(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)