आवाज द वाॅयस /मुंबई
जकात इस्लाम के पांच स्तंभों में एक है. इसका मौलिक महत्व इस तथ्य में समाया हुआ है कि यह सामाजिक समानता की गुणवत्ता को बढ़ावा देता है.मुसलमानों के लिए जकात एक अनिवार्य दान है जिसे अदा करने के लिए इस्लाम में सख्ती से हिदायत दी गई हैं.
इस्लाम में कहा गया है कि यदि इंसान जीवन के सभी खर्चों और देनदारियों से मुक्त है तो वह अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा निर्धनों एवं जरूरतमंदों को दान कर दे.हालांकि ज्यादातर लोग जरूरी जकात की रकम अदा करने में पीछे नहीं, पर चूंकि इस धन का वितरण असंठित तरीके से होता है इसलिए इसका समुचित लाभ इस समुदाय के गरीबों के पिछड़ेपन को दूर करने में उस तरह से सहायक साबित नहीं हो रहा, जैसा कि उम्मीद की जाती है.
इसी खामी को दूर करने के प्रयास में लगा है 2013 में गठित गैर-लाभकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ मुस्लिम प्रोफेशनल्स (एएमपी). यह संगठन पिछले एक दशक से जकात को इकट्ठा कर शिक्षा और निर्धनों की जिंदगी आसान बनाने पर खर्च कर रहा है. वह भी बहुत पारदर्शी तरीके से.
एएमपी लंबे समय से जकात की क्राउडफंडिंग में लगा है. कोविड महामारी और लॉकडाउन के समय इस प्रक्रिया रफ्तार पकड़ ली थी. इस काम को आसान बनाने के लिए संस्था ने अप्रैल 2020में पहला जकात-आधारित क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म इंडिया जकात.कॉम लॉन्च किया. तब ये यह जकात चाहने वालों और जकात देने वालों के बीच पुल का काम कर रहा है.
एएमपी और इंडिया जकात.कॉम के अध्यक्ष आमिर इदरीसी ने कहा, इस परियोजना का उद्देश्य जकात देने और प्राप्त करने की पूरी प्रक्रिया को सुविधाजनक और पारदर्शी बनाना था. संगठन जकात देने वालों को निर्णय लेने में मदद करता है. साथ ही यह भी सुझाव देता है कि जकात का दान किस तरह और कहां खर्च करना चाहिए .
इसके अलावा इंडिया जकात.काॅम जकात और अन्य मुस्लिम दान (सदका, फितरा आदि) सहयोगात्मक तरीके से धन जुटाकर शिक्षा, चिकित्सा और गरीबों को आजीविका में मदद पहुंचाने के लिए खर्च करता है. यह फंड बिल्कुल चैनलाइज तरीके से खर्च किए जाते हैं. जकात के पैसे से आपदा राहत में भी कार्य किए जाते हैं.
इंडिया जकात. काम के ऑपरेशन हेड इफ्तिखार बिदकरने कहा, उनके संगठन के इस पहल को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है. अस्तित्व में आए 3वर्षों में ही इसने 5,000़ लोगों से 15करोड़ रुपये एकत्रित कर लिए. जबकि ये पैसे 32,000़ व्यक्तियों पर खर्च किए जिससे परिवार के 50,000़ सदस्यों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा.
मंच की सफलता का सबसे बड़ा कारण यह है कि यह 100 प्रतिशत पारदर्शी और मुफ्त है. दाता और दान प्राप्त करने वालों को वास्तविक समय के आधार पर लाइव अपडेट मिलते रहते हैं.मंच जकात देने या इसे प्राप्त करने वालों से कोई शुल्क या कमीशन नहीं लेता.
लाभार्थी को धन 100 प्रतिशत उपलब्ध कराया जाता है. ऐसा इसलिए संभव हो पा रहा है, क्योंकि एएमपी को चलाने के लिए संगठन के सदस्य वार्षिक रूप से एकत्र स्वैच्छिक धन के माध्यम से सभी प्रशासनिक, परिचालन और आईटी प्रबंधन पर खर्च करते हैं.
मंच के पूरे संचालन को एएमपी की छोटी बैकएंड टीम के साथ स्वयंसेवकों की मजबूत टीम लगी हुई है. एक तीन स्तरीय सत्यापन प्रक्रिया, केवाईसी, जरूरी दस्तावेज, आवेदक के लिए स्थानीय मस्जिदों से प्रमाणीकरण के बाद सहायता पहुंचाई जाती है.
एएमपी ने इस काम के लिए लंबा-चैड़ा नेटवर्क तैयार किया है, जो संगठन के संचालन और वाजिब जरूरतमंदांे तक पहंुचने में मदद पहंुचाते हैं.संगठन का एक सलाहकार बोर्ड भी है, जिसमें कुछ बहुत प्रतिष्ठित उलेमा, वित्त और कानूनी विशेषज्ञ शामिल हैं, जो नई नीतियों और सुझावों के माध्यम से इसके परिचालन में मार्गदर्शन करते हैं.
इस बारे में पाठकों को अधिक जानकारी इंडिया जकात. काम पर मिल जाएगी.अतहर शहाब बताते हैं कि इंडिया जकात. काॅम दान दाता को स्वतंत्रता देता है. केवल रमजान के महीने में ही नहीं, कभी भी संगठन की सहायता ले सकते हैं.
चूंकि संगठन किसी से कोई लाभ नहीं लेता, इसलिए दानदाता यह देखकर संतुष्टि होते हैं कि उनका योगदान सही लाभार्थियों तक सही तरीके से पहुंच रहा है. वह कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति संगठन के माध्यम से अपनी जकात की रकम, सदका या अन्य चैरिटी अपनी पसंद और स्थान पर खर्च कर सकते हैं.
इसमें भी संगठन उनकी भरपूर मदद करेगा. इंडिया जकात. काॅम की टीम में सलाहकार बोर्ड, जकात परिषद, कानूनी, तकनीकी, संचालन और मार्केटिंग टीम के सदस्य भी हैं, जो दिन-प्रतिदिन के कार्यों को अंजाम देते हैं. इसके अलावा, ऐसे अलावा कई स्वयंसेवक भी हैं जिन्होंने संगठन के पोर्टल को आगे बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है.
-नोट : एक न्यूज एजेंसी को यह कहानी पीएनएन ने उपलब्ध कराई है. इस लेख की सामग्री की awaz the voice की कोई जिम्मेदार नहीं.