मलिक असगर हाशमी/नई दिल्ली
‘‘देश को स्वच्छ रखने में हमारी भी भूमिका है.सभी कर रहे हैं. हम भी कर रहे. मगर कभी ऐसा नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है.‘‘यह कहना है वकील हसन का. यह वही शख्स हैं जिन्होंने ध्वस्त टनल के आखिरी 18 मीटर की खुदाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ‘रैट माइनिंग’, जिसे पुलिस और माइनिंग डिपार्टमेंट कोयला ‘चोरी तकनीक कहते हैं, का इस्तेमाल किया.
वकील हसन बातचीत में कहते हैं,‘‘ खुदाई के रास्ते में पत्थर ही पत्थर थे. छोटे पत्थर, बड़े पत्थर. पाइप भी. गार्डर भी थे. इधर-उधर से सरिया भी निकली हुई थी. सभी को क्लीयर करने के बाद पाइप पुश करने का रास्ता बनाया गया.’’ अब नतीजा सामने है. 16 दिनों तक उत्तरकाशी के ध्वस्त टनल में फंसे 41 मजदूर न केवल सकुशल निकाल आए हैं, बल्कि अब वे अपने परिवार के साथ खुशियां मना रहे हैं.
Coal thieves use rat mining
रैट माइनिंग का इस्तेमाल करते हैं कोयला चोर
रैट माइनिंग को पुलिस और खनन विभाग कोयला चोरी तकनीक कहते है.इस बारे में वेस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड में इलेक्ट्रिकल, मेकेनिल चीफ इंजीनियर एवं एक्सपर्ट अंडर ग्राउंड एवं ओपन कास्ट माइनिंग के पद से सेवानिवृत्त गुलाम कादिर ने विस्तार से जानकारी दी.
गुलाम कादिर के अनुसार, रैट माइनिंग तकनीक किसी जमाने में वैध थी. चूंकि इस तरह की माइनिंग में सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं, इसलिए इसे बहुत पहले अवैध घोषित कर दिया गया है.वह बताते हैं कि इस तकनीक का इस्तेमाल अभी कोयाला चोर करते हैं.
— The Hindu (@the_hindu) November 28, 2023
कोयला चोर BCL,CCL में इस तकनीक का इस्तेमाल कोयल चोरी के लिए काफी कर रहे हैं. जिस माइन को बंद कर दिया जाता है. कोयला चोर वहां से कोयला चोरी करते हैं. वह बताते हैं, ‘‘ चूंकि ज्यादा कोयला निकालने के चक्कर में कोयला चोर अधिक चैड़ी खुदाई कर देते हैं.
इसके लिए कोई सपोर्ट का भी इस्तेमाल नहीं करते, इसलिए अक्सर बीसीएल, सीसीएल के ‘एबैंडेंट’ खदानों के ध्वस्त होने और कोयला चोरों के मरने की खबरें आती रहती हैं. कुछ दिनों पहले ही BCL में ऐसी घटना सामने आ चुकी है.
पहले कैसे होती थी अंडरग्राउंड माइनिंग
अंडर ग्राउंड और ओपन कास्ट माइनिंग के एक्सपर्ट गुलाम कादिर ने बताया कि करीब पांच दशक पहले अंडर ग्राउंड माइनिंग भी इतनी सुरक्षित नहीं थी. खुदाई के लिए 20 से 25 मीटर चैड़ा रास्ता बनाया जाता था. छत की ऊंचाई तकरीबन तीन मीटर रखी जाती थी.
सपोर्ट के नाम पर साइड में लकड़ी की बल्लियां लगाई जाती थीं. इसके अलावा बीच में रेल की पटरी जैसा ट्रैक बिछाया जाता था. मोटर के जरिए उसपर टब रखकर माइन के अंदर से कोयला बाहर निकाला जाता था. चूंकि ‘रूफ‘ के लिए किसी सपोर्ट सिस्टम का इस्तेमाल नहीं होता था, इसलिए अक्सर इन माइन में भी हादसे होते रहते थे.
अब कैसे होती है अंडरग्राउंड माइनिंग ?
गुलाम कादिर ने बताया कि पिछले दो दशकों से पुराने तरीके में ही सुधार कर इस्तेमाल किया जा रहा है. माइन की चैड़ाई, उंचाई वही रहती है, जैसे पहले थी. यहां तक कि दीवारों के साइड में लकड़ी के बल्लों का भी पहले की तरह ही सपोर्ट लगाया जाता है. इसके साथ ही लोहे के ‘C फ्रेम’ का भी इस्तेमाल होता है.
यदि ऊपर या साइड से कोयला गिरे भी तो कोई नुकसान न हो. Present scenario, में underground mining , सुरक्षा के अभाव और कम उत्पादकता को देखते हुए कम की जा रही है.जहां हो रही है, वहां सुरक्षा के नए और आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल हो रहा है.जैसे, hydraulic jacks /props, roof stichiching machines आदि.
उत्तरकाशी में क्यों कामयाब रहा ‘कोयला चोरी तकनीक’
अंडर एवं ओपन कास्ट माइनिंग के एक्सपर्ट गुलाम कादिर ने बताया, यहां रैट माइनिंग का इस्तेमाल बहुत समझदारी से किया गया. इसके लिए तकरीबन दो मीटर का रास्ता बनाया गया. इसके अलावा साथ में पाइप भी डाली गई. बेहद संकरे रास्ते में छत्त के ध्वस्त होने का खतरा नहीं रहता. इसके अलावा साथ में पाइप भी पुष की जा रही थी. इसलिए उत्तरकाषी के ध्वस्त टनल से 41 मजदूरों को निकालने में यह तकनीक बेहद कामयाब रही.