जानिए, मिस्र के दार अल-इफ्ता के बारे में

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 26-06-2023
जानिए, मिस्र के दार अल-इफ्ता के बारे में जिसके ग्रैंड मुफ्ती से मिले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
जानिए, मिस्र के दार अल-इफ्ता के बारे में जिसके ग्रैंड मुफ्ती से मिले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

 

मलिक असगर हाशमी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मिस्र के ग्रैंड मुफ्ती की मुलाकात के साथ ही एक बार फिर ‘दार अल-इफ्ता मिस्रिय्याह’ सुर्खियों में है.दरअसल, ‘दार अल-इफ्ता अल-मिस्रिया ’ वह इस्लामिक संस्थान है, जिसकी मान्यता न केवल मिस्र में, बल्कि दुनिया के तमाम सुन्नियों के बीच है. मिस्र में इस इस्लामिक संस्थान की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश में जब भी किसी व्यक्ति को फांसी की सजा सुनाई जाती है तो इससे पहले इसके ग्रैंड मुफ्ती की राय ली जाती है.

यही नहीं, यह वह आला इस्लामिक स्थान है जिसके ‘जकात’ पर दिए गए फतवे के बाद भूख के शिकार दूसरे देशों के नागरिकों को लाभ पहुंच रहा है. यह इस्लामी कानूनी का अनुसंधान केंद्र भी है. दुनिया के अव्वल दर्जे के फतवा देने वालों संस्थानों में से दार अल-इफ्ता का माना है कि जकात को दूसरे देशों के लोगों को देने में कोई हर्ज है.
 
इसका मानना है कि इस्लामी कानून कभी-कभी प्राकृतिक व्यक्तियों और कानूनी व्यक्तियों के बीच अंतर करता है. संस्थान का तर्क है कि यूएनएचसीआर एक कानूनी व्यक्ति है और गैर-मुसलमानों के माध्यम से जकात वितरित करने पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने वाली राय प्राकृतिक व्यक्तियों पर लागू होती है.
 
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कानूनी व्यक्तियों पर नहीं. इसके आधार पर दार अल-इफ्ता शरणार्थियों को जकात देना जायज मानता है. इसके लिए उसने आठ शर्तें निर्धारित की हैं. दार अल-इफ्ता का निष्कर्ष है कि कोई भी व्यक्ति  शरणार्थियों और विस्थापितों के बीच यूएनएचसीआर को अपने एजेंट के रूप में नियुक्त कर जकात वितरित कर सकता है,बशर्ते कि प्राप्तकर्ता आवश्यक शर्तों को पूरा करता हो.
 
इस शर्त में जकात से यूएनएचसीआर की हिस्सेदारी को दूर रखा गया है. जकात वितरण में सुरक्षा उपाय यूएनएचसीआर को ही करने होंगे. दार अल-इफ्ता के इस फतवे का ही असर है कि आज इस्लामिक देशों के जकात के पैसे यूएनएचसीआर के माध्यम से अन्य गरीबों तक पहुंच रहे हैं.इस इस्लामी अदारे ने ही औरतों को बिना मर्द के हज पर जाने को लेकर फतवा दिया था.
 
दार अल-इफ्ता अल-मिस्रिया की इस्लामिक हैसियत 

यह मिस्र का इस्लामी सलाहकार, न्यायिक और सरकारी निकाय है. इसे 1313 एएच 1895 में मिस्र में इस्लामी कानूनी अनुसंधान के केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था. यह मुसलमानों के रोजमर्रा और समसामयिक मुद्दों पर फतवा जारी करने के माध्यम से धार्मिक मार्गदर्शन और सलाह प्रदान करता है. 
 
दार अल-इफ्ता समकालीन मुसलमानों से संबंधित विषयों पर फतवा देने के लिए इतिहास, कुरान, हदीस और इस्लामी न्यायविदों की मिसालों का सहारा लेता है. इसके फतवे मिस्र और दुनिया भर में सुन्नी मुसलमानों के बीच प्रभावशाली हैं.
 
दार अल-इफ्ता की स्थिति स्थापित होने के बाद, मिस्र का यह इस्लामी कानूनी अनुसंधान केंद्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख केंद्र बन गया है. यह समकालीन मुस्लिमों को मजहबी सिद्धांतों के संपर्क में रखकर, सही रास्ता स्पष्ट करके, मजहब और सांसारिक जीवन से संबंधित सन्देहों को दूर करके और समकालीन जीवन के नए मुद्दों के लिए धार्मिक कानूनों को प्रकट करके अपनी ऐतिहासिक और नागरिक भूमिका को पूरा करता है.
 
20 वीं शताब्दी के दौरान, मिस्र के समाज में दार अल-इफ्ता को इस्लाम में एक केंद्रीय खिलाड़ी के रूप में वर्णित किया गया है.
 
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मिस्र में इस्लामी न्याय

मिस्र में इस्लामी न्यायशास्त्र को तीन संस्थानों के साथ सबसे अधिक निकटता से पहचाना गया है. अल-अजहर विश्वविद्यालय, दार अल-इफ्ता और कानून की अदालतें. ये संस्थान मामलों पर फैसला देते हैं. यही नहीं ये मिस्री जनता को फैसले और न्यायपालिका के लिए परामर्श देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
 
दार अल-इफ्ता की स्थापना 1895 में हुई थी. अल-अजहर की तरह, यह देश के समर्थन से संचालित होता है, लेकिन इसे कुछ हद तक स्वायत्तता भी मिली हुई है. यह विभिन्न इस्लामी मामलों में देश की एजेंसियों को सलाह देता है. यह भूमिका पहले हनफी प्रमुख मुफ्ती के पास थी.
 
मिस्र का दार अल-इफ्ता मिस्र के न्याय मंत्रालय के प्रभागों में से एक है. इसकी परामर्शी भूमिका को देखते हुए, मृत्युदंड की सजा समेत अन्य सजाओं को मिस्र के दार अल-इफ्ता के पास भेजा जाता है. इन सजाओं के संबंध में ग्रैंड मुफ्ती की राय मांगी जाती है. दार अल-इफ्ता की भूमिका केवल मिस्र तक सीमित नहीं, बल्कि इसका प्रभाव संपूर्ण इस्लामी जगत पर है.
 
इसकी अग्रणी भूमिका को समझना हो तो इसकी स्थापना से लेकर आज तक दिए गए इसके फतवों के रिकॉर्ड को देखकर समझा जा सकता है. दार अल-इफ्ता की मान्यता केवल इस्लामी दुनिया में नहीं, बल्कि इस्लामी कानून के विदेशी छात्रों के बीच भी बहुत है.
 
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दार अल-इफ्ता की भूमिका इस्लामी कानून और समाज की जरूरतों के बीच एक स्थिरता बनाने के लिए विरासत में मिले फिक्ह से प्राप्त फैसलों को समझने में एक उदार पद्धति अपनाने के लिए विकसित हुआ. दार अल-इफ्ता एक वर्ष में 500-1000 फतवे जारी करता है.
 
इसने संचार और परिवहन के आधुनिक दौर में अपने अंदर कई गुणात्मक परिवर्तन लाए हैं. यहां एक आधुनिक दूरसंचार केंद्र भी स्थापित किया जा रहा है.