अभिषेक कुमार सिंह
आज देश में मंदिर और मस्जिद को लेकर जितने विवाद चल रहे हैं, वैसे में पूरा वातावरण नकारात्मकता से भरा लगता है, लेकिन जब इंसान सच्चे मन से अंधकार से बाहर निकलने की कोशिश करता है, तो रोशनी भी मिल जाती है. सांप्रदायिक जहर के माहौल में बिहार के समस्तीपुर में एक जगह ऐसी भी है, जो पूरे देश को सौहार्द का संदेश दे रही है. समस्तीपुर के ‘बाबा खुदनेश्वर धाम मंदिर’ ऐसा अनोखा मंदिर है जिसके गर्भगृह में शिवलिंग और मजार दोनों हैं.
बिहार के समस्तीपुर जिला मुख्यालय से करीब 17 किलोमीटर दूर मोरवा प्रखंड में स्थित खुदनेश्वर धाम मंदिर ऐसी जगह है, जहां शिवलिंग के साथ मजार की पूजा-अर्जना एक ही छत के नीचे की जाती है.
खुदनेश्वर धाम मंदिर में जहां गर्भगृह में शिवलिंग हैं, तो ठीक दो हाथ की दूरी पर (तीन हाथ दक्षिण में) एक मुस्लिम महिला की मजार है. गंगा-जमुनी तहजीब का यह नजारा देश के बाकी हिस्सों में बेहद ही दुर्लभ है.
खुदनेश्वर धाम मंदिर में मजार और शिवलिंग के एकसाथ मौजूद होने को लेकर एक कहानी यहां के लोग सुनाते हैं, जो दिलचस्प तो है ही काफई प्रेरणादायी भी है. ऐसा माना जाता है इस्लाम में किसी महिला की मजार की इबादत की परंपरा नहीं है, लेकिन यहां पर भगवान शिव की भक्त खुदनी बीवी की पवित्र मजार की लोग श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं. यह देव स्थान पूरे विश्व का एक दुर्लभ धरोहर है. जिसकी गाथा पूरे विश्व में कही जाती है.
खुदनेश्वर धाम मंदिर को बिहार के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों की सूची में रखा गया है. यह सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिवलिंग के साथ मजार की पूजा-अर्जना की जाती है.
स्थानीय लोग इसे बाबा खुदनेश्वर धाम, खुदनेश्वर स्थान, खुदनेश्वर महादेव मंदिर सहित कई नामों से पुकारते हैं. इस मंदिर का नाम एक मुस्लिम महिला के नाम से रखा गया है. बताया जाता है कि खुदनी बीवी मुस्लिम होने के बाद भी शिवजी की अनन्य भक्त थीं. वह बचपन से ही इस शिवलिंग की पूजा करती थीं.
पहले यह मंदिर छोटा था, लेकिन आज यहां भव्य मंदिर है, जहां सावन के अलावा बसंत पंचमी और शिवरात्रि में मेले का आयोजन होता है. मोरवा सहित आसपास के लोग यहां शादी-ब्याह, मुंडन, या रिश्ते के लिए आपस में पारिवारिक रूप से मिलने जैसे मांगलिक कार्यों के लिए भी पहुंचते है, जिसके लिए सारी व्यवस्था की गई है.
यहां आने वाले सभी लोग शिवलिंग की पूजा करते हैं और फिर उसके बाद उसी नियम से मजार की भी पूजा करते हैं. इस अनोखे धाम में आने वाले लोगों की भगवान महादेव सारी मनोकामना पूरी करते हैं.
ब्रिटिश काल के दौरान, 1858 में नरहन एस्टेट ने इस मंदिर की नींव रखी थी. तब से अब तक यह मंदिर काफी बदल गया है. इसका विकास धार्मिक न्यास बोर्ड की देखरेख में किया गया है.
कुछ दशक पहले तक मोरवा प्रखंड के इस मंदिर वाली जगह पर घनघोर जंगल था. वहां लोग अपने ढोर-मवेशी चराने आते थे. वहीं पीर बख्श और खैरुन्निसां नाम के गरीब मुस्लिम दंपति रहते थे, जिनकी बेटी का नाम था खुदनी.
खुदनी रोज इस जंगल में गायें चराने जाती थी. खुदनी के गायों के झुण्ड में एक काली गाय थी. एक शाम जब वह गायों को वापस घर ले आई और उस काली गाय का दूध दुहने बैठी, तो गाय ने दूध नहीं दिया. ऐसा अगले कई दिनों तक होता रहा.
खुदनी के अम्मी-अब्बू को आशंका हुई कि कहीं उनकी बेटी ने दूध बेचना या उसको खैरात में किसी को देना तो शुरू नहीं कर दिया? इसके बाद, खुदनी ने गाय पर निगरानी करनी शुरू की, तो उन्होंने देखा कि वह काली गाय एक एक निश्चित स्थान पर ही अपना सारा दूध गिरा रही है.
तब यह प्रत्येक दिन का सिलसिला-सा हो गया. खुदनी ने जब इस बारे में अपने माता-पिता को बताया, तो उन्होंने इस स्थल की खुदाई करवाने की सोची. खुदाई चालू हुई तो फावड़ा एक पत्थर पर लगा और शिवलिंग पर फावड़ा लगते ही उससे रक्त की धारा फूट पड़ी.
लोग डर गए और पश्चाताप करने लगे. फिर स्थानीय लोगों की प्रार्थना और पूजा अर्चना के बाद मुश्किल से रक्त की धारा बंद हुई. इस घटना के बाद से वहां पूजा-अर्चना होने लगी. खुदनी उस शिवलिंग की तभी से भक्ति भाव के साथ पूजा-अर्चना करनी लगी. इसके बाद रहमत अली नाम के युवक से उनका निकाह हुआ.
इस्लाम में बुतपरस्ती यानी मूर्तिपूजा की मनाही है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि शिवलिंग पूजा के कारण खुदनी बीवी के पति रहमत अली को दिल्ली के सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक ने कैद कर लिया था.
इसे खुदनी बीबी की शिव भक्ति कहें या स्वयं बाबा खुदनेश्वर की कृपा, इस कहानी के अंत में खुद सुल्तान ने खुदनी बीबी के पति को इस जगह की जागीरदारी सौंपी और रहमत अली को ससम्मान रिहा कर दिया गया.
इस घटना से प्रभावित होकर खुदनी बीबी जीवन के अंतिम क्षणों तक बाबा खुदनेश्वर की भक्ति में समर्पित रहीं. मरने के बाद अंतिम इच्छा के अनुसार बाबा भोलेनाथ के शिवलिंग के पास खुदनी बीबी को दफनाकर मजार बनाया गया. उसी समय से शिवलिंग के साथ पाक मजार की पूजा होती चली आ रही है.
मंदिर के पास पूजा का सामान बेचने वाले अब्दुल सत्तार और उनके पड़ोसी दुकानदार भाइयों का मानना है कि इस मंदिर को हिन्दू और मुस्लिम एक ही नजर से देखते हैं. खुदनेश्वर धाम मंदिर हिन्दू और मुस्लिम दोनों की आस्था का केंद्र है. हालांकि मंदिर परिसर और इलाके के विकास के लिए सरकार से कुछ नहीं किये जाने का मलाल उन्हें है.