केरल में दलित मुसलमानों का संघर्ष: वक्फ नियमों में बदलाव की कहानी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 11-11-2024
Anees (extreme left) with members of MEEM
Anees (extreme left) with members of MEEM

 

श्रीलता मेनन / त्रिशूर

केरल के मुसलमानों ने अपने दलितों के लिए सम्मान और नागरिक अधिकार बहाल करने की दिशा में पहला कदम उठाया है, जिन्हें समुदाय द्वारा ऐतिहासिक रूप से सामाजिक रूप से बहिष्कृत माना जाता रहा है. राज्य वक्फ बोर्ड ने इस सप्ताह पुथुरपल्ली जुमा मस्जिद में अपनाई गई भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त कर दिया, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह चार शताब्दियों से भी अधिक पुरानी है.

परिवार के स्वामित्व वाली मस्जिद के पारंपरिक उपनियमों में कुछ समुदायों को मस्जिद/मोहल समिति में सदस्यता और मतदान के अधिकार से वंचित किया गया था. अक्टूबर में वक्फ बोर्ड ने मस्जिद के साथ इस उपनियम को समाप्त कर दिया.

वक्फ बोर्ड ने कहा कि ओसन (नाई), लब्बा और मुअद्दीन (मस्जिद कर्मचारी) के दलित मुस्लिम सदस्यों को अब मस्जिद समिति में सदस्यता और मतदान के अधिकार प्राप्त होंगे. केरल के एक मीडिया कॉलेज के कार्यकर्ता और निदेशक सद्दीक ममपद के अनुसार, पुथुरपल्ली मस्जिद में यह मुद्दा इसलिए बढ़ गया क्योंकि यह एक परिवार के स्वामित्व में थी और सदियों पहले तय किए गए उपनियमों का पालन करती थी.

केरल में कुछ पारिवारिक स्वामित्व वाली मस्जिदों में पारंपरिक उपनियम थे, जिसके कारण भेदभाव होता था. हालांकि, यह प्रथा अन्य मस्जिदों में आम नहीं है, उन्होंने कहा.

MEEM members with leaders of Samasta, a powerful Sunni Muslim clerics body during their campaiging for rights

कोविड-19के दौरान पुथुरपल्ली मस्जिद समिति के सदस्यों के साथ कड़वे अनुभव के बाद ओसन समुदाय ने समान व्यवहार की मांग के लिए कोट्टायम में खुद को संगठित किया था. उन्होंने एक आंदोलन भी शुरू किया और उनके सदस्य विभिन्न मंचों से संपर्क कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड का फैसला उनके संघर्ष का परिणाम है.

पुथुरपल्ली की पारंपरिक मस्जिद से बाहर रखे गए अन्य समुदाय थेलाबा और मुअद्दीन थे. ममपद कहते हैं, "वे ओसोस की तरह हाशिए पर नहीं थे. उन्हें केवल इसलिए बाहर रखा गया क्योंकि मस्जिद के सदियों पुराने उपनियमों में ऐसा कहा गया था."

असीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में समाजशास्त्री और शिक्षाविद खालिद अंसारी कहते हैं कि पुथुरपल्ली मस्जिद समिति से बहिष्कार की घटनाओं के बाद केरल में ओसान समुदाय के भीतर उनके अधिकारों के बारे में कुछ चर्चा हुई है. एक सदस्य को तो कारण बताओ नोटिस भी दिया गया क्योंकि वह जिज्ञासा से बैठक में गया था.

उन्होंने कहा, "अगर कुछ वर्गों को अब तक आध्यात्मिक अर्थव्यवस्था से बाहर रखा गया है तो यह गलत बात थी. अब जो हासिल हुआ है वह साधारण मानवीय समानता है जिसका हर कोई हकदार है."

केरल के मुसलमान कई स्तरों पर बंटे हुए हैं, सबसे ऊपर थंगल हैं, जो पैगंबर से पतन का दावा करते हैं, उसके बाद कोया और मोपला हैं. सामाजिक स्तरीकरण त्रिकोण का एक मोटा मध्य भाग मालाबारी के लिए है और सबसे नीचे की परत दलितों की है जो समाज में बहिष्कार का सामना करते हैं. उनका कहना है कि ओसान और मछुआरा समुदाय पुसलान बहिष्कार से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.

यूट्यूब चैनल दलित कैमरा के संस्थापक सदस्य रईस मोहम्मद कहते हैं कि अगर जातियाँ हैं, तो इसका मतलब है कि समुदाय नफरत पर बना है. दलित कैमरा पर रईस ने ओसान समुदाय के एक सदस्य का वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें वह बता रहा है कि कैसे समाज में उसके साथ हर दिन एक बहिष्कृत व्यक्ति जैसा व्यवहार किया जाता है. वह कहता है, "समाज में कोई भी हमें किसी भी चीज़ के लिए नहीं चाहता. मुसलमानों में जाति व्यवस्था न होने के बावजूद कोई भी मुस्लिम परिवार हमें शादी के लिए नहीं मानता. हम बहिष्कृत हैं." केरल में बहिष्कृत समुदायों को मस्जिद समितियों में सदस्यता का अधिकार दिया जा रहा है, लेकिन देश के अन्य हिस्सों में ऐसे समुदायों की स्थिति दयनीय है. मध्य प्रदेश के इंदौर के एक युवा मुस्लिम फैजान खान इन जातियों को महादलित बताते हुए कहते हैं कि उनके राज्य के कई हिस्सों में ये जातियां बेहद गरीबी में जी रही हैं.

 

Office Bearers of MEEM in front of the Kerala Waqf Board office  


“वक्फ समिति का सदस्य होना या मस्जिद की गतिविधियों में भाग लेना और धार्मिक ज्ञान प्राप्त करना एक बात है…लेकिन जीवित रह पाना दूसरी बात है. इंदौर के चांद नगर जैसे इलाकों में दलितों को हिंदी पढ़ने में भी दिक्कत होती है. वे पढ़-लिख नहीं सकते या अपने नाम पर हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते. वे वक्फ या मस्जिद समितियों का हिस्सा कैसे हो सकते हैं?” वे पूछते हैं. “उनके बच्चे मदरसे भी नहीं जाते क्योंकि वे जगह-जगह भटककर भोजन मांगते हैं. लोग उन्हें ‘मल’ या मल कहते हैं…इस तरह वे अधिकारहीन हैं,” खान कहते हैं, साथ ही उन्होंने कहा कि वे केरल में दलितों द्वारा जीते गए अधिकारों से खुश हैं.

मुस्लिम समानता और सशक्तिकरण आंदोलन या MEEM ने केरल में मुसलमानों के ओसान (नाई) समुदाय के लिए नागरिक अधिकारों के संघर्ष का नेतृत्व किया है. इसके महासचिव कुंजम्मद ने कहा कि ओसान के साथ भेदभाव और अलगाव सदियों पुरानी आदतों का नतीजा है. “हमने पीढ़ियों तक चुपचाप सहा लेकिन अब हम अन्याय बर्दाश्त नहीं करेंगे. हम अदालत जाएंगे.” यहाँ उनके शब्दों में चंगन्नास्सेरी के ओसानों की पथ-प्रदर्शक जीत की कहानी है:

आंदोलन कब शुरू हुआ?

“हमने 2016में आंदोलन शुरू किया था क्योंकि ओसान समुदाय के सदस्यों को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था, खासकर चंगन्नास्सेरी में पिथूरपल्ली मस्जिद की मोहाल (मस्जिद) समिति से.

भेदभाव बड़े पैमाने पर था. ओसान को किसी भी सामाजिक आयोजन का हिस्सा नहीं बनाया जाता. उन्हें पूरी तरह से बहिष्कृत कर दिया जाता है, समिति उन्हें कोई लाभ नहीं देती और उनसे कुछ भी शुल्क नहीं लेती, जबकि बाकी सभी को कुछ न कुछ देना पड़ता है. भेदभाव जन्म से ही शुरू हो जाता है और उनकी मृत्यु पर भी खत्म नहीं होता. उन्हें सामान्य कब्रिस्तान से दूर एक अलग दफन स्थान पर भेजा जाता है क्योंकि माना जाता है कि वे दूसरों को दूषित करते हैं.

MEEM members campaigning for the rights of communities facing discrimination 

मस्जिद की महल (मोहल्ला) समिति इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?

वे उस इलाके के लोगों के लिए विधान सभा की तरह हैं. हमारे जीवन से जुड़ी हर चीज़ के लिए उनकी मंज़ूरी की ज़रूरत होती है.

अगर शादी का प्रस्ताव आता है, तो लड़की का परिवार और लड़के का परिवार अपने-अपने इलाकों की मोहल्ल समितियों से प्रमाण पत्र मांगता है. मोहल्ल समिति अगर आपसे खुश नहीं होती है, तो दूसरे पक्ष को नुकसान पहुंचाने वाली रिपोर्ट भेज सकती है.

पुथुरपल्ली में यही हुआ, जिसके कारण लंबे समय तक मुकदमा चला और हाल ही में वक्फ बोर्ड ने आदेश दिया.

अनीस की कहानी

अनीस एक ओसान युवक था, जो अपने घर के बाहर अतिक्रमण से परेशान था. वह शिकायत करने के लिए पुथुरपल्ली की मोहल्ल समिति के पास गया. समिति ने उसे अपमानित किया और उसे जाने के लिए कहा, क्योंकि वह ओसान था और उसका वहाँ रहने का कोई काम नहीं था.

फिर जब परिवार के पास शादी का प्रस्ताव आया, तो समिति ने एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया कि लड़का नीची जाति का है और उसका आचरण नीचा है.

ओसान परिवार के खिलाफ इस सामाजिक अपमान को राज्य भर के अन्य सदस्यों ने उठाया.

आंदोलन मीम ने जुलाई 2023में वक्फ बोर्ड को एक याचिका भेजी. वक्फ बोर्ड ने एक अनुकूल फैसला दिया लेकिन मामले की फिर से जांच करने के लिए एक न्यायाधिकरण का गठन किया गया. हाल ही में न्यायाधिकरण ने बोर्ड और पुथुरपल्ली की मोहल समिति से मामले को तुरंत सुलझाने के लिए कहा.

मस्जिद के सदियों पुराने भेदभावपूर्ण उपनियमों को खत्म करने का फैसला एक सुखद परिणाम था.

अलग कब्रिस्तान

हमने अपने मामले में यह सब उल्लेख किया था. लेकिन हम इसे फिर से अलग से नहीं उठा सकते क्योंकि हम उपद्रवी की तरह दिखेंगे. हमने यह केवल इसलिए हासिल किया क्योंकि 2019में हम सभी मुस्लिम संगठनों के पास गए और उनकी सहमति से एक याचिका भेजी. हम अकेले नहीं थे. हमें नहीं पता कि हम कब्रिस्तान या ऐसे किसी मुद्दे के लिए फिर से लड़ सकते हैं या नहीं. लेकिन अगर कुछ होता है तो हम हमेशा अदालत जा सकते हैं.

केरल में अन्य मोहल समितियों के बारे में क्या? वक्फ बोर्ड ने सभी मस्जिदों को नोटिस भेजकर कहा है कि वहां ऐसी चीजें नहीं होनी चाहिए.

(लेखक आंध्र प्रदेश स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)