सतानंद भट्टाचार्य / हैलाकांडी (असम)
बाइबिल की कहावत ‘ईश्वर की इच्छा पूरी होती है’ दक्षिण असम के सिलचर के एक परिवार पर बिल्कुल सटीक बैठती है, जो कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में बच गया. उनके लिए यह किसी “पुनर्जन्म” से कम नहीं है. एक ऐसा वाक्य जिसे वे बार-बार दोहराते रहते हैं. अब भी, परिवार को यह विश्वास करना मुश्किल लगता है कि वे अभी भी जीवित हैं.
असम विश्वविद्यालय सिलचर में बंगाली विभाग के प्रोफेसर डॉ देबाशीष भट्टाचार्य, उनकी पत्नी और बेटे ने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें कश्मीर जैसी जगह पर मौत के मुंह से लौटना पड़ेगा. उन्हें जो चीज बचा पाई, वह थी परिवार का मुस्लिम इलाके में पालन-पोषण और इस्लाम के बारे में थोड़ी जानकारी.
जब आतंकवादियों ने उनका धर्म पूछकर उन पर गोली चलानी शुरू की तो उन्होंने अपनी सूझबूझ का इस्तेमाल करते हुए कलमा (इस्लामी आस्था की घोषणा) पढ़कर अपनी जान बचाई. आतंकवादियों ने उन्हें मुसलमान समझकर छोड़ दिया..
सिलचर के शिवालिक पार्क में रहने वाले प्रोफेसर भट्टाचार्य अपनी पत्नी और बेटे के साथ छुट्टियाँ मनाने पहलगाम के बैसरन गए थे. परिवार आतंकवादी हमले से बच गया, क्योंकि भट्टाचार्य को कलमा पढ़ना आता था.
घटनास्थल पर पहुंचने के करीब पांच मिनट बाद आतंकवादियों का एक समूह भट्टाचार्य के पास पहुंचा. उन्हें बंदूक की नोक पर धमकाया और उन्हें कलमा पढ़ने का आदेश दिया.. चूंकि उन्हें कलमा पता था, इसलिए उन्होंने दो पंक्तियां पढ़ीं, जिसके बाद आतंकवादी उन्हें छोड़कर दूसरे लोगों की ओर चले गए.
श्रीनगर के एक होटल में शरण लिए भट्टाचार्य ने बताया कि आतंकवादियों ने अंधाधुंध गोलीबारी की. गोलीबारी शुरू करने से पहले कई पर्यटकों से उनके धर्म के बारे में पूछा.
परिवार के एक सदस्य ने बताया कि उन्होंने कुछ दूरी पर गोलियों की आवाज सुनी. जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उनके गाइड ने बताया कि यह आवाज जानवरों को डराने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पेलेट गन की थी.
हालांकि परिवार ने पेड़ों और झाड़ियों के पीछे छिपने की कोशिश की, लेकिन आतंकवादी वहां भी पहुंच गए. उन्होंने हथियारबंद आतंकवादियों का सीधा सामना किया. बंदूक की नोक पर उन्हें कलमा पढ़ने का आदेश दिया गया. यह भी पूछा गया कि क्या वे भगवान राम का नाम जप रहे हैं.आतंकवादियों ने प्रोफेसर भट्टाचार्य से पूछा.
"क्या आप भगवान राम का नाम जप रहे हैं?" -
संपर्क करने पर भट्टाचार्य ने कहा, "मुस्लिम इलाके में पले-बढ़े होने के कारण हम कलमा से परिचित हैं. हमने इसे पढ़ा और शायद इसी वजह से हमारी जान बच गई." चौंकाने वाली बात बताते हुए उन्होंने बताया कि एक अन्य पर्यटक जो कलमा नहीं पढ़ पाया था, उसे मौके पर ही गोली मार दी गई..
उन्होंने कहा, "हमने अपने जीवन में ऐसा कुछ कभी नहीं देखा या कल्पना भी नहीं की थी. गोलीबारी से अफरा-तफरी का माहौल बन गया. हम किसी तरह पास की एक इमारत की दीवार के सहारे आगे बढ़े और मुख्य सड़क पर पहुंचे.."
उन्होंने कहा, "हमें कोई शारीरिक चोट नहीं आई, लेकिन हम अभी भी चैन से नहीं बैठ सकते. हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे जीवन में ऐसा कुछ हो सकता है." उन्होंने आगे कहा कि उनका पूरा परिवार अभी भी सदमे में है..
हालांकि, सोशल मीडिया पर कई लोगों को यह बचने की रणनीति रास नहीं आई है. कुछ लोगों ने इसे नापसंद किया है, जबकि कुछ ने तो यहां तक कह दिया है कि वह व्यक्ति कलमा पढ़ना जानता था क्योंकि वह 'कम्युनिस्ट' था.
लेकिन, जो लोग स्थिति को समझ सकते थे, उन्होंने टिप्पणी की है कि परिवार अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके बच गया, और यह राजनीति का समय नहीं है. कई लोगों ने यह भी कहा है कि सभी को एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए.