पुरानी दिल्ली की कहकशां: ऊंट की हड्डियों से बनातीं हैं अनमोल आभूषण और सजावट

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 30-09-2024
State Awardee Kahkashan: The magic of decoration with camel bones
State Awardee Kahkashan: The magic of decoration with camel bones

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

ऊंट की हड्डियों का इस्तेमाल सैकड़ों सालों से आभूषणों और घर में सजावट के तौर पर किया जाता रहा है. हाल ही में  पुरानी दिल्ली की उस्ताद शिल्पकार कहकशां से मुलाकात हुई, जो 52 वर्षीय महिला हैं. और अपने पुश्तैनी हस्तशिल्प को सहेजने वाली चौथी पीढ़ी हैं. वे पारंपरिक रूप से ऊंट की हड्डियों से आभूषण, घर के सजावटी आइटम्स, आदि बनाने में माहिर हैं.

कारीगर कहकशां ने आवाज द वॉयस को बताया कि उनके पूर्वज ईरान से इस कार्य को करते थे. उन्होनें बताया कि "परंपरागत रूप से, हम पहले हाथी दांत से आभूषण बनाते थे". “लेकिन लगभग 30 साल पहले हाथीदांत पर प्रतिबंध के बाद से, अब हम चंदन, भैंस की हड्डी और ऊंट की हड्डी पर काम करते हैं. हम अपने ऊँट की हड्डियाँ राजस्थान से प्राप्त करते हैं.''
 
हाथीदांत और ऊंट की हड्डी के आभूषणों के बीच अंतर के बारे में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि पहले वाले आभूषण में हल्का सफेद रंग होता है.
 
 
Jewellery made by Kahkashan from camel bones

परंपरागत रूप से, हाथी दांत का उपयोग करके हड्डियों पर नक्काशी का अभ्यास किया जाता था, जिसे 17वीं से 19वीं शताब्दी के दौरान अवध के नवाबों के लिए सजावटी वस्तुओं में बदल दिया गया था.कहकशां ने बताया कि "भारत में कई अन्य क्षेत्र हैं जहाँ दुल्हन के लिए विवाह समारोह के दौरान हाथीदांत की चूड़ियाँ पहनना अनिवार्य है."
 
इस अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप हाथियों को उनके दाँतों के लिए लगातार मारा जाने लगा. हाथियों की आबादी में लगातार गिरावट के कारण 1989 में हाथीदांत की बिक्री पर दुनिया भर में प्रतिबंध लगा दिया गया.
 
“प्रतिबंध के बाद से हम ऊँट की हड्डियों का उपयोग कर रहे हैं,” कहकशां ने हड्डी से बने एक उत्कीर्ण टुकड़े के चारों ओर कुछ मोतियों को एक साथ पिरोते हुए कहा.
 
कहकशां ने बताया, “कुछ लोग हैं जो हड्डियों का नाम सुनते ही घबरा जाते हैं और सोचते हैं कि हम उन्हें हासिल करने के लिए जानवरों को मारते हैं ! यह उनके लिए काफी हैरतंगेज पल होता है जब हम उन्हें (ग्राहकों) बताते हैं कि हम मृत जानवरों की हड्डियों का उपयोग करते हैं.
 
 
Bangles, broaches, showpiece made from camel bones 

कहकशां ने नई दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय एवं हस्तकला अकादमी में अपनी एक प्यारी और छोटी स्टाल सजा रखी है. उनके द्वारा बनाए गए आइटम्स ग्राहकों को काफी आकर्षित कर रहे हैं. टेबल पर आभूषणों के साथ शोपीस, बुकमार्क्स, कीचेन्स, आदि सामान भी था.
 
कहकशां ने बताया कि "दक्षिण अफ्रीका में भी हड्डी और मनके के आभूषणों का अच्छा बाजार है. भारत में, इसकी बहुत अधिक मांग नहीं है, हालाँकि मुगलों के शासनकाल में इसे कभी-कभी बहुत संरक्षण प्राप्त हुआ था. आज, भारत में ज्यादातर उच्च-समाज की महिलाएँ ही इसके नियमित ग्राहक हैं."
 
कहकशां ने बताया कि वे 12वीं पास हैं और तब से ही वे इस कार्य में हैं.  इसमें वह समुद्री क्रिस्टल से ज्वेलरी भी बनाती हैं. लोग इसे खूब पसंद करते हैं.
 
कहकशां ने बताया कि वे अपने इन आभुषणों की प्रदर्शनी सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले भी लगा चुकी है. कहकशां और उनके पति मोहम्मद शारिक दोनों स्टेट अवार्डी हैं.
 
यह जोड़ा ऊंट की हड्डियों से आभूषण, बक्से, पेपर कटर और अन्य उपहार वस्तुएं बनाता है. कीमतें 50 रुपये (कंगन) से लेकर 5,000 रुपये (शोपीस) तक होती हैं.
 
कहकशां कहती हैं, "बकरीद पर ऊंट की बलि देने वाले लोग जानवरों की खाल और हड्डियाँ कारीगरों को बेचते हैं. चूंकि हड्डियों के साथ काम करने वाला कोई और नहीं है, इसलिए कई लोग हड्डियाँ बेचने के लिए हमारे पास आते हैं."
 
 
Artisan Kahkashan and her husband Mohammad Shariq

कहकशां ने बताया कि कैसे वे ऊंट की हड्डियों को साफ करते हैं जिनसे वे आभूषण बना सकें. कहकशां ने बताया कि चूँकि ऊँट की हड्डी हाथीदांत से ज़्यादा सघन होती है और पॉलिश करने पर उसमें चमक भी ज़्यादा होती है, इसलिए नक्काशी करने वाले इसे ज़्यादा पसंद करते हैं क्योंकि यह हाथीदांत की तरह महसूस होती है और वज़न में भी वैसी ही होती है. इसलिए, आभूषण बनाते समय ऊँट की हड्डी का इस्तेमाल करना अच्छा रहता है.
 
कहकशां ने बताया कि आभूषण बनाने में काफी मेहनत लगती हैं, इसमें अंदर तक कार्विंग की जाती है इसीलिए इनकी कीमत ज्यादा होती है.
 
 
कहकशां ने बताया कि उनका बेटा ओसामा दुबई में इस खास शिल्प की ट्रेनिंग देता है. हड्डी के आभूषणों के बाजार के बारे में बोलते हुए, कहकशां ने बताया कि मांग ज्यादातर यूरोप के बाजारों से आती है. "उन्हें इस तरह के आभूषण पसंद हैं, जो उनके परिधान के साथ शानदार ढंग से मेल खाते हैं.
 
कहकशां को अहमदाबाद के राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान के साथ-साथ दिल्ली के आसपास के कला संस्थानों और शिल्प केंद्रों में छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए नियमित रूप से आमंत्रित किया जाता रहा है. कहकशां को अक्सर दक्षिण अफ्रीका के केंद्रों द्वारा आमंत्रित किया जाता है. "वह एक ऐसा देश है जहाँ हमें अच्छी प्रतिक्रिया मिली है," उन्होंने कहा. "मेरे पति भी इस शिल्प पर प्रशिक्षण देने के लिए वहाँ जाते हैं."
 
कहकशां ने आवाज द वॉयस के माध्यम से सरकार से गुहार भी लगाई कि उनके जैसे पुश्तैनी कारीगरों के लिए अच्छे मंचों की योजना सरकार द्वारा भविष्य में बनें तो उनको इससे और ऊर्जा मिलेगी और उनका संघर्ष सही माईनों में लोगों तक धरोहर के रूप में पहुंचेगी.