स्वतंत्रता संग्राम के बलिदानों को नई पीढ़ी तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य: मौलाना रहमानी

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 16-08-2024
It is our duty to convey the sacrifices of the freedom struggle to the new generation: Maulana Rahmani
It is our duty to convey the sacrifices of the freedom struggle to the new generation: Maulana Rahmani

 

मोहम्मद अकरम /नई दिल्ली 

मौलाना मोहम्मद रहमानी मदनी ने जामिया इस्लामिया सनाबिल में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले पूर्वजों के बलिदान को जिंदा रखना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि इतिहास को याद रखना और उसे नई पीढ़ियों तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है.

 स्वतंत्रता दिवस इसी श्रृंखला की एक कड़ी है, जिसे मनाकर हम उन महान बलिदानों को याद करते हैं.मौलाना ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हमारे विद्वानों ने कालापानी, कारावास, फाँसी और हत्या जैसी सज़ाओं का सामना किया. अंडमान में मुजाहिदीन की कब्रें और उनके नाम के शिलालेख इन बलिदानों के गवाह हैं.

उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने वाले कई विद्वानों जैसे हैदर अली रामपुरी, करामत अली, मौलाना इब्राहिम आरवी, मौलाना अब्दुल खबीर सादिकपुरी, मौलाना विलायत अली, इनायत अली सादिकपुरी, अल्लामा सनाउल्लाह अमृतसरी, दाऊद गजनवी, महमूद-उल-हसन देवबंदी, मोहम्मद अली जौहर, हकीम अजमल खान, मौलाना जफर अली खान और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद आदि के बलिदानों को याद किया. कहा कि इनके इतिहास को जीवित रखना हमारा प्राथमिक कर्तव्य है.


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उलेमा ए सादिकपुर और अन्य स्वतंत्रता सेनानी

मौलाना रहमानी ने अपने संबोधन में कहा कि हमें गर्व है कि देश के पहले शिक्षा मंत्री मुसलमानों के धार्मिक विद्वान थे. हमें उनकी शैक्षिक और राजनीतिक विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करना चाहिए. उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना से लेकर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम तक के विभिन्न महत्वपूर्ण घटनाओं और उसमें शामिल विद्वानों और स्वतंत्रता सेनानियों का उल्लेख किया.

आज़ादी की अहमियत

इस अवसर पर मौलाना अब्दुल्ला मोहम्मद सई ने कहा कि आज़ादी एक बहुत बड़ी नेमत है. इसकी अहमियत को समझने के लिए हमें कल्पना करनी चाहिए कि हम एक जेल में कैद हैं, जहां न जीने, बोलने, देखने, और न इबादत करने की आज़ादी है. उन्होंने बताया कि हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया और काले पानी की सज़ा भुगती, फांसी पर चढ़ाए गए, लेकिन आज़ादी की लड़ाई नहीं छोड़ी.

आजादी के लिए दी गई कुर्बानियों की मिसाल

मौलाना मोहम्मद सई ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों की कैद में पत्तियां और छाल चबाकर भी संघर्ष किया, लेकिन गुलामी स्वीकार नहीं की. उन्होंने कहा कि हमें अपने पूर्वजों के बलिदानों को याद रखना चाहिए और इस देश की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए.


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जुलेखा बेगम का योगदान

जामिया सनाबिल के खदीजा अल-कुबरा गर्ल्स पब्लिक स्कूल में भी स्वतंत्रता दिवस मनाया गया, जहां मौलाना रहमानी मदनी ने मौलाना अबुल कलाम आजाद की पत्नी जुलेखा बेगम का उल्लेख किया. उन्होंने बताया कि 1924 में मौलाना आजाद को एक साल की सजा सुनाए जाने पर जुलेखा बेगम ने गांधीजी को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा कि देश की आजादी के लिए यह सजा बहुत छोटी है और इसमें और वृद्धि होनी चाहिए.

कार्यक्रम का समापन

कार्यक्रम की शुरुआत मोहम्मद अदनान और मोहम्मद अखलाक की तिलावत से हुई, जिसके बाद फरहान अहमद अब्दुल हसीब और उनके दोस्तों ने हिंदी राष्ट्रगान प्रस्तुत किया.