मुसलमानों के बिना भारत की कल्पना असंभव: सेमिनार में एकजुटता के सुर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 18-01-2025
It is impossible to imagine India without Muslims: Tone of unity in the seminar
It is impossible to imagine India without Muslims: Tone of unity in the seminar

 

मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली 

बातचीत का रास्ता ही आपसी दूरियों को खत्म कर सकता है, लेकिन बातचीत के लिए विश्वास होना चाहिए. बिना विश्वास के कोई बातचीत संभव नहीं. यह सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, सभी के लिए है. हमें एक-दूसरे के लिए आवाज उठानी होगी. मोहन भागवत ने जो कहा देश के बहुसंख्यक वर्ग को दिया गया संदेश एक बड़ी पहल है.

ये विचार देश के प्रमुख राजनेताओं और बुद्धिजीवियों ने  कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में न्यू वर्ल्ड नेशनल फोरम एक कार्यक्रम में व्यक्त किये. अधिकांश वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि सार्थक बातचीत के लिए शांति और सुलह  वास्तविक प्रयासों की आवश्यकता है, न कि केवल मौखिक आश्वासन की.

इस सेमिनार में आरएसएस के राकेश सिन्हा, सांसद मनोज झा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, सांसद इकरा हसन, मशहूर लेखक मुजीबुर रहमान और जाने-माने पत्रकार शाहिद अहमद सिद्दीकी समेत विभिन्न विचारधाराओं के राजनेता और बुद्धिजीवी शामिल हुए.

नई दुनिया फोरम के प्रमुख ने शिक्षा, मीडिया और अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर संवाद की एक श्रृंखला आयोजित करने की योजना की घोषणा की. कहा कि देश में मुसलमानों की समस्याओं को हल करने का तरीका संवाद है.

इस पद्धति को अपनाने की सख्त जरूरत है. यह पद्धति न केवल गलतफहमियां दूर करेगी, दूरियां भी मिटाएंगी. उन्होंने इस सेमिनार में हर विचारधारा  का समर्थन करने वाली शख्सियतों की भागीदारी को इस पहल की सफलता का संकेत माना.

 कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने अपने भाषण की शुरुआत बहादुर शाह जफर की इस शायरी से की.उन्होंने कहा कि आज इस बैठक में जिन बातों पर चर्चा हुई है, मैं चाहता हूं कि जो चर्चा इस सेमिनार में हो रही है, वह पूरे देश में हो, तो यह निश्चित तौर पर बड़ी बात होगी. मैं बातचीत जारी रखने की कोशिश करूंगा. 

हालांकि, उन्होंने कहा कि यह सच है कि संवाद की कमी है, लेकिन ऐसा क्यों है, यह सभी जानते हैं. जो डायलॉग अब तक चल रहे हैं वो ख़त्म हो जायेंगे. इसलिए इसके बारे में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है. हम जो महसूस करते हैं, जो समझते हैं, जानते हैं उसका जिक्र क्यों?

यदि आप इसका उल्लेख करते हैं, तो संवाद प्रभावित होगा और संवाद ही संकट में पड़ जाएगा. महत्वपूर्ण बात यह है कि संवाद के लिए भावना और दृढ़ विश्वास बहुत महत्वपूर्ण है.  उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत नेता नेल्सन मंडेला का जिक्र किया और कहा कि जब वह 25 साल जेल में रहने के बाद बाहर आए तो उन्होंने किसी के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा. हम बात करेंगे . हमें साथ रहना है. 

सलमान खुर्शीद ने कहा कि अगर हम भारत की बात करें तो हम हमेशा साथ थे, रहेंगे, लेकिन हमें हकीकत समझनी होगी कि सौ साल पहले किसने क्या किया? यह सच नहीं है. कोई हमें दोष नहीं दे सकता. आज जो हो रहा है उसके लिए हम आपको दोषी नहीं ठहराते, लेकिन हम उम्मीद कर सकते हैं कि आज जो हो रहा है उसे रोकने के लिए हम कुछ कर सकते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो कोई संवाद नहीं हो सकता. 

सलमान खुर्शीद ने कहा कि हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपने समुदाय और अपने प्रशंसकों को जो संदेश देने की कोशिश की है, वह बहुत अच्छी बात है, लेकिन आप अपनी स्थिति को देखें और हमारी स्थिति को देखें. 

हमारे पास ऐसा कोई संदेश देने वाला नहीं है. यह सुनना अच्छा लगता है जब कोई कहता है कि हम एक हैं और एक रहेंगे. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हम एक नहीं हैं. हकीकत यह है कि सड़कों पर क्या हो रहा है. 
उन्होंने कहा कि जो हुआ उसे हम भूल सकते हैं. लेकिन शर्त यह है कि ऐसा दोबारा न हो. उन्होंने राकेश सिन्हा को संबोधित करते हुए कहा कि  आप इस संबंध में पहल कर सकते हैं, इसलिए मैं आपके साथ खड़ा हूं.''

 समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन ने कहा कि जब मैंने इस सेमिनार का विषय देखा तो मेरे मन में जो विचार आया, उनके अनुसार हमें दो मोर्चों पर काम करने की जरूरत है. एक बाहरी मुद्दा है. जहां हमारा प्रतिनिधित्व हो रहा है.

बहुत खराब है. खासकर राष्ट्रीय मीडिया द्वारा. दूसरा आंतरिक मामला है, जो हमारी कमियों का मामला है, जिसके लिए हमें अपने अंदर झांकना होगा, जो कमियां हमें महसूस होती हैं, अगर उन्हें दूर किया जाए. ऐसा करने के लिए देश को एक साथ आना होगा.

मिल-बैठकर कमियों पर चर्चा करनी होगी. हम तय करें कि क्या हम और बेहतर कर सकते हैं, तो स्थिति बदल सकती है. इसका फायदा यह होगा कि हमें समुदाय के बाहर से शोर मचाने वाले लोगों से निपटना नहीं पड़ेगा. अगर हम बाहरी प्रतिनिधित्व की बात करें तो जहां एक गलत धारणा बन रही है,

उसे ठीक करने के लिए सबसे ज्यादा शिक्षा की जरूरत है. हमारे बीच से निकलें, हम सब प्रयास करेंगे. कड़ी मेहनत करेंगे ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को बेहतर शिक्षा मिल सके और ऐसी जगहों पर जा सकें, जहां वे अपना प्रतिनिधित्व बेहतर ढंग से दिखा सकें. 

इकरा हसन ने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि मेरे और किसी अन्य समुदाय के बीच कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं है. हम सभी का इतिहास एक ही है. हम एक देश के नागरिक हैं.  हमारे बीच जो नफरत का बीज बोया जा रहा है, वह सिर्फ कुछ लोग आगे बढ़ने की राजनीति कर रहे हैं. ऐसे समय में हम लोगों को संवाद को आगे बढ़ाना चाहिए. आपस में सौहार्द बढ़ाना चाहिए. ऐसा सिर्फ अपने समुदाय के साथ ही नहीं बल्कि दूसरे समुदाय के साथ भी करना चाहिए.

इकरा हसन ने आगे कहा कि मैं यह भी बताना चाहती हूं कि मैंने कैराना संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीता. लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस क्षेत्र में केवल 30% मुस्लिम और 70% गैर-मुस्लिमों से मुलाकात की और अपनी बात रखी.

चुनाव से पहले मुझसे कहा गया था कि आपको गैर-मुसलमानों के कम से कम डेढ़ लाख वोट हासिल करने होंगे. मैं हर जगह पहुंची. मैं हर समुदाय तक पहुंची. मैं सफल हुई. इकरा हसन ने कहा कि हमारे बीच बहुत सारी दीवारें खड़ी हो गई हैं.

हालांकि हमारे बीच कोई मतभेद नहीं है. इसके लिए संवाद की पहल जरूरी है. दरअसल, देश की मीडिया और राजनीति में कुछ लोग जहर फैला रहे हैं. इकरा हसन ने कहा कि मुसलमानों को समाज में आगे बढ़ने से रोका जा रहा है, जबकि मुसलमान खुद को इतना हीन महसूस करने लगते हैं, जिसके कारण वे यहूदी बस्ती का हिस्सा बन जाते हैं.

हालात ऐसे हैं कि हर कोई अपने समुदाय के अंदर ही रहना चाहता है, लेकिन यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है. जिसे हमें रोकना है. हमें निर्भीक होना होगा. निर्भीक होकर हमें हर उस स्थान पर उपस्थित होना होगा जहां से हम देश का बेहतर प्रतिनिधित्व कर सकें.

इस गंगा-जमुनी सभ्यता की रक्षा करने वाले लोगों को एकजुट करना होगा. हम सभी को एक-दूसरे के लिए आवाज उठानी होगी. यह भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होगा. महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसे लोग हैं जो जाति और धर्म से ऊपर उठते हैं.'' कर इस मंच पर मौजूद हैं जिससे न सिर्फ मुसलमानों बल्कि सभी का भविष्य बेहतर होगा.

प्रमुख बुद्धिजीवी डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद ने देश के इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि इन 75 सालों में हमने समस्या को बढ़ाया है. समस्या को उलझाया है, लेकिन समस्या का समाधान कितनों ने किया है. इस सवाल का जवाब आपको खुद ढूंढना चाहिए .

हमने हमेशा मुसलमानों की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं पर अनगिनत सेमिनार और कार्यक्रम आयोजित किए हैं, लेकिन क्या हुआ? वह लगभग 40 वर्षों तक हिंदू की बात नहीं सुनना चाहते थे. एक समय में मुस्लिम लीग के दो सदस्य थे.

उसी समय भाजपा के केवल दो सदस्य ही चुनाव हार गए. उन्होंने आगे कहा कि आप सब बलराज मधोक को जानते हैं. वे बहुत तीखा बोलने के लिए जाने जाते थे. जहां भी बोलते थे हिंदू, हिंदू, हिंदू ही कहते थे. जब वे चुनाव लड़ते थे तो उनके निर्वाचन क्षेत्र में नब्बे प्रतिशत हिंदू मतदाता होते थे. मिले 561 वोट. इसका मतलब था कि हिंदुओं ने स्वयं उनके आदर्शों और औचित्य को अस्वीकार कर दिया था.

 डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद ने कहा कि अफसोस की बात है कि हमने इस देश के मिजाज को नहीं समझा. मुसलमानों को मुसलमान बनाते वक्त हमने बहुसंख्यकों को हिंदू बनना सिखाया. आज हम उसी की सजा भुगत रहे हैं.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत का भविष्य उज्ज्वल है . इसके आंकड़े मौजूद हैं. इतना ही नहीं, अमेरिका हमारी बुद्धिमत्ता का लाभ उठाकर हर क्षेत्र में विकास कर रहा है. आप अमेरिका के बड़े संस्थानों को देखें, कंपनियों और उनके प्रमुखों को देखें.

भारतीय दिमाग हर जगह काम कर रहा है. उन्होंने मुसलमानों की राजनीतिक सोच की आलोचना करते हुए कहा कि हमने शिकायत की कि बीजेपी मुसलमानों को टिकट नहीं देती है, लेकिन जब उन्होंने टिकट दिया तो उन्होंने कहा कि इस उम्मीदवार को सफल नहीं होने देना चाहिए. अब स्थिति यह है कि यह खाई अब मजा दे रही है. इसका उपयोग किया जा रहा है. यदि आप आज भयभीत और चिंतित हैं तो यह इस सोच का धर्म है.

 सांसद मनोज झा ने कहा कि बातचीत निश्चित रूप से किसी भी समस्या के समाधान का सबसे अच्छा तरीका है, लेकिन जब मैंने सेमिनार का विषय देखा तो मैंने सोचा कि मैं शाहिद सिद्दीकी से शिकायत जरूर करूंगा, क्योंकि क्या आप मुसलमानों के बिना भारत की कल्पना कर सकते हैं?

मुसलमानों के बिना भारत के निर्माण की कल्पना नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि हालांकि राकेश सिन्हा और मेरे बीच राजनीतिक मतभेद हैं, लेकिन हम इस बात पर सहमत हैं कि मुसलमानों के बिना भारत का निर्माण संभव नहीं है.

इसकी कल्पना करना असंभव है . अगर आप इसकी कल्पना करेंगे तो यह  पाकिस्तान हो  जाएगागा. उन्होंने कहा कि यह देश कुछ खास है. पूरे देश में असंख्य भाषाएं. जातियां और धर्म हैं. जबकि प्राकृतिक रूप से हर क्षेत्र में अलग-अलग मौसम होते हैं. इस देश को एक खंड से कैसे जोड़ा जा सकता है?

उन्होंने कहा कि मुसलमानों के नाम पर बहस चल रही है. मैंने गूगल पर सर्च किया तो पाया कि पिछले दस सालों में इस विषय पर 28 किताबें लिखी जा चुकी हैं, जो इस बात का सबूत है कि यह मामला कितना महत्वपूर्ण था. मुसलमानों की राय विकृत?

इसका उदाहरण बॉलीवुड में मिलता है. मैंने इस प्रवृत्ति के बारे में सोचा और इस पर शोध किया. 1950 के बाद फिल्मों में मुसलमानों की भूमिका तेजी से बदली, एक समय में मुसलमानों को शतरंज के किरदार निभाते हुए दिखाया जाता था.

एक दशक बाद जीवन देने वाला किरदार सामने आया जो हीरो को बचाता था. उसके बाद प्रार्थना की आवाज सुनाई देती थी और फिर किसी को गले लगाते हुए दिखाया जाता था. पिछले दशक में बहुत कुछ बदल गया है. 

उन्होंने अमेरिका पर हमला देखा लेकिन यह कोई संयोग नहीं बल्कि एक सोची-समझी रणनीति थी. उन्होंने सवाल किया कि क्या मुसलमानों के बिना भारत की कल्पना की जा सकती है. उन्होंने जोर देकर कहा कि मुसलमानों के समर्थन के बिना देश के विकास की कहानी अधूरी है.

नफरत इस कदर व्याप्त है कि मुसलमानों की अनुपस्थिति में भी लोग अपने परिवार सहित दूसरों को नफरत करने के लिए पाएंगे. झा ने जोर देकर कहा कि भारत का भविष्य उसकी धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता से अविभाज्य है.

 आरएसएस के राकेश सिन्हा ने वैचारिक और राजनीतिक आधार पर संवाद पर जोर दिया. उन्होंने जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों से एक साथ आने और सार्थक बातचीत में शामिल होने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि बहुसांस्कृतिक समाज के बारे में बात करना आसान है लेकिन इसका अभ्यास करना कठिन है.

उन्होंने कहा कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने 2018 से लगातार देश की कहानी बदलने की कोशिश की है. दूसरों को सुनने की क्षमता की भी. धर्मनिरपेक्षता के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे पास अल्बानिया का उदाहरण है, जहां 70% मुस्लिम हैं और 30% ईसाई हैं, लेकिन उनकी धर्मनिरपेक्षता इतनी मजबूत है कि देश में दोनों संप्रदायों के बीच कोई मतभेद नहीं है.   उनके सामाजिक जीवन में कोई अंतर नहीं है. क्या भारत यह मॉडल प्रदान नहीं कर सकता? ,

सीएसडीएस के हिलाल अहमद ने कहा कि हम वक्ता हैं, मैं किसी से भी एक प्रश्न पूछूंगा और वह दो घंटे तक बोल सकता है, हम सभी वक्ता हैं लेकिन हममें से कोई भी यह नहीं जानता कि प्रश्न कैसे पूछा जाए, जब आप सही प्रश्न पूछेंगे तभी आपको  किसी समस्या का सही उत्तर  मिल सकेगा.

उन्होंने पिछले दशक के दौरान सीएसडी श्योर प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किये गये सर्वेक्षण का जिक्र करते हुए कहा कि कोई भी सर्वेक्षण अंतिम सत्य नहीं होता. लेकिन पिछले 10 सालों में हमने लोगों से एक सवाल पूछा है कि भारत सिर्फ हिंदुओं का है.

इसलिए 90% उत्तरदाता अभी भी मानते हैं कि भारत केवल हिंदुओं का नहीं, बल्कि इसके सभी नागरिकों का है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए धर्मों के बीच आपसी सम्मान आवश्यक है.