1949 में पश्चिमी देशों की नजर में भारतीय संविधान

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-11-2024
Indian Constitution in the eyes of Western countries in 949
Indian Constitution in the eyes of Western countries in 949

 

साकिब सलीम

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन और उनके समर्थकों ने अक्सर यह दावा किया कि भारतीय एक बड़े और विविध देश को चलाने में सक्षम नहीं हैं. 15 अगस्त 1947 को जब भारत ने आजादी प्राप्त की, तो पश्चिमी देशों ने भारत की शासन क्षमता पर सवाल उठाने की कोशिश जारी रखी. लेकिन 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान के निर्माण और अंगीकरण ने इन आलोचकों को एक ठोस जवाब दिया.

पश्चिमी मीडिया की प्रतिक्रिया

भारतीय संविधान की सराहना करते हुए न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा:"भारत को अपने संविधान को अपनाने पर दुनिया के सभी हिस्सों से व्यापक बधाई मिलेगी और वह इसका हकदार भी है."अखबार ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान सिर्फ "सिद्धांतों की घोषणा" नहीं है, बल्कि यह एक विस्तृत और जटिल दस्तावेज है जिसमें वैधानिक कानून और लोकतांत्रिक मूल्यों का गहरा समावेश है.

न्यूयॉर्क टाइम्स ने संविधान के लोकतांत्रिक चरित्र की प्रशंसा की और इसे संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिनिधि सरकार और यूनाइटेड किंगडम की संसदीय प्रणाली का संयोजन बताया.

ऑस्ट्रेलियाई अखबार की राय

सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड ने 29 नवंबर 1949 के अपने संस्करण में लिखा:"संविधान में निहित लोकतांत्रिक सिद्धांतों और मौलिक अधिकारों की प्रशंसा हर जगह संवैधानिक विशेषज्ञ करेंगे."हालांकि, अखबार ने यह सवाल उठाया कि भारतीय नेताओं ने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने का निर्णय क्यों लिया.

संपादकीय ने चेतावनी दी कि राष्ट्रमंडल के प्रतीक (जैसे क्राउन) को त्यागना और एक गणराज्य बनना भारत के लिए कठिन साबित हो सकता है.

एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट

एसोसिएटेड प्रेस ने भारतीय संविधान को एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए भारतीय समाज में मौजूद चुनौतियों को भी रेखांकित किया. रिपोर्ट में कहा गया कि 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणराज्य का निर्माण 2,000 वर्षों के हिंदू, मुस्लिम और ब्रिटिश शासन के बाद हुआ.

हालांकि, इस रिपोर्ट ने संविधान सभा में हुई एकमात्र असहमति को जोर-शोर से उजागर किया। इसमें उल्लेख किया गया कि मौलाना हसरत मोहानी, जो संविधान के मसौदे से सहमत नहीं थे, ने इसे "आम आदमी के लिए वास्तविक स्वतंत्रता प्रदान करने में विफल" बताया. रिपोर्ट में मोहानी के मुसलमान होने पर जोर देकर यह संदेश देने की कोशिश की गई कि विभाजन के बाद भारत में एकता असंभव थी.

पश्चिम की आशंकाएं

पश्चिमी मीडिया ने भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर संदेह जताया. न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा,"संविधान का मुख्य कार्य एक मजबूत केंद्रीय सरकार स्थापित करना है.. लेकिन कुछ भारतीय केंद्र को दी गई अत्यधिक शक्ति से भयभीत हैं."इन आशंकाओं को विकासशील भारत की विविधता और भिन्नता से जोड़कर देखा गया.

समय ने क्या साबित किया?

पश्चिमी मीडिया की आलोचनाओं और शंकाओं के बावजूद, भारतीय लोकतंत्र ने न केवल खुद को स्थिर और सशक्त किया, बल्कि एशिया के उन गिने-चुने देशों में से एक बन गया जहां द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से चुनावी लोकतंत्र सुचारू रूप से चल रहा है..

आज, भारतीय संविधान दुनिया के सबसे लंबे और सबसे जटिल संविधानों में से एक है, जिसने भारत को एक मजबूत और विविध लोकतंत्र के रूप में स्थापित किया है. पश्चिमी देशों की तमाम आशंकाओं और आलोचनाओं को भारतीय जनता और नेताओं की दूरदर्शिता ने गलत साबित कर दिया.