India Islamic Culture Center: Afzal Amanullah of Bihar made the elections interesting
सेराज अनवर/पटना
दिल्ली के पॉश लुटियन ज़ोन में इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के चुनाव में इस बार हलचल कुछ ज़्यादा तेज़ है. प्रेसिडेंटशिप और अन्य पदों के लिए मतदान अगस्त के प्रथम सप्ताह में होना है लेकिन चुनाव प्रचार अभी से ज़ोरों पर है. मतदाताओं को रिझाने के लिए अपील और वीडियो जारी किये जा रहे हैं.
बिहार के पूर्व आईएएस अफज़ल अमानुल्लाह के अध्यक्ष पद पर उम्मीदवारी से चुनाव दिलचस्प हो गया है.चुनाव दिल्ली में है लेकिन बिहार में इसकी ख़ूब चर्चा हो रही है. बिहार सरकार में गृह सचिव रहे अमानुल्लाह अब पटना छोड़ दिल्ली में बस गये हैं. मगर बिहार से उनका सम्पर्क बना हुआ है.
यह दूसरे बिहारी हैं जो देश-दुनिया भर में मशहूर इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के चुनाव में कूदे हैं.इनसे पूर्व बिहार सरकार में मंत्री रहे शकील उज़ ज़मा अंसारी भी प्रेसिडेंट का चुनाव लड़ चुके हैं.
बिहार में इस्लामिक सेंटर के 30 से 35 सदस्य हैं.चुनाव के रोचक होने की एक वजह और है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री सलमान ख़ुर्शीद भी अध्यक्ष पद के लिए भाग्य आज़मा रहे हैं.चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि बीस साल से इस्लामिक सेंटर पर राज करने वाले सिराजुद्दीन क़ुरैसी इस बार अध्यक्ष पद चुनाव से बाहर हैं
.लेकिन,अपना दबदबा बरक़रार रखने के लिए उन्होंने डॉ. माजिद अहमद तालिकोटी को प्रेसिडेंट पद के लिए उतार रखा है.ऐसे तो इस पद के लिए सात उम्मीदवार मैदान में हैं.मगर चर्चा इन तीनों उम्मीदवारों की अधिक है.
आख़िर तक यही स्तिथि रही तो त्रिकोणीय लड़ाई की सम्भावना है.ऐसे तो कुल सदस्य 4200 है लेकिन वोटिंग राइट वाले सदस्यों की संख्या 2000 से अधिक है.जिसमें 300 के क़रीब हिन्दू मतदाता हैं.जो 11 अगस्त को अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे.नामांकन प्रक्रिया 18 जून को ख़त्म हुआ है.
यह चुनाव पहली बार हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में हो रहा है.दो महीना चुनाव प्रचार के लिए रखा गया है क्यों बड़ी संख्या में इस्लामिक सेंटर के सदस्य विदेशों में हैं. इस चुनाव पर पूरे देश के लोगों की निगाह है.
बिहार की भूमिका भी इसमें अहम मानी जा रही है.बिहार के एक सौ मतदाता दिल्ली में हैं.इस्लामिक सेंटर का चुनाव कई मायने में महत्वपूर्ण है.यह बौद्धिक मुसलमानों का इकलौता संगठन है.जहां धार्मिक दख़ल न के बराबर है.
पहले इस्लामिक सेंटर के बारे में
1980 में इस्लाम के एक हजार चार सौ साल पूरा होने पर पूरी दुनिया में जश्न चल रहा था. ठीक उसी वक्त तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने उपराष्ट्रपति जस्टिस हिदायतुल्ला खां की अगुवाई में एक कमिटी गठित की जिसमें पहली बार इस तरह का सेंटर बनाने का सुझाव दिया गया.1981 में सोसायटी का पंजीकरण कराया गया.जिसके हेड हकीम अब्दुल हमीद थे.सरकार ने 8 हजार गज जमीन एलॉट किया.
24 अगस्त 1984 में इंदिरा गांधी ने इसका शिलान्यास किया था.1996 में नये भवन का निर्माण शुरू हुआ, 12 जून 2006 में कांग्रेस अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी ने नये भवन का उद्घाटन किया.भवन काफी खूबसूरत है,जिस पर ईरानी छाप है. इस सेंटर में रहने के लिए कमरे,दो ऑडिटोरियम, कॉफी हाउस, रेस्तरां, लाइब्रेरी और कई अन्य सुविधा है.
यहां सभी धर्म के लोगों को सदस्यता दी जाती है.इस सेंटर में ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या भी कम नहीं है.यहां सभी धर्मों के महत्वपूर्ण त्योहार ईद से लेकर दीवाली,क्रिसमस तक मनाये जाते हैं.जो भारत की साझी विरासत से मेल खाता है.
इस्लामिक सेंटर एक सांस्कृतिक केन्द्र है.जो भारत के मुसलमानों की एक ख़ास पहचान है.यहां कार्यकारिणी का हर पांच साल पर चुनाव होते हैं.इस चुनाव से पहले तक दो ही पैनल होते थे.सेंटर के पुराने सदस्य और 2014 में प्रेसिडेंट का चुनाव लड़ चुके शकील उज़ ज़मा अंसारी कहते हैं कि इस बार कई चार-पांच पैनल है इसलिए चुनाव थोड़ा कठिन है.पहले आमने-सामने पैनल में चुनाव आसान था.
कौन-कौन उम्मीदवार हैं?
कुल 4 पदों के लिए 13 लोगों का चुनाव होना है.जिसमें 1 अध्यक्ष ,1 उपाध्यक्ष ,7 मेंबर ट्रस्टी,4मेंबर एक्जीक्यूटिव चुने जायेंगे.भारत सरकार के पूर्व सचिव सेवनिवृत्त आईएएस अफजल अमानुल्लाह,पूर्व केन्द्रीय मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सलमान खुर्शीद,भारत सरकार के पूर्व सचिव सेवनिवृत्त आईआरएस अबरार अहमद,आसिफ हबीब,डॉ माजिद अहमद तालिकोटी,वसीम अहमद ग़ाज़ी,सुहैल हिन्दुस्तानी अध्यक्ष पद के उम्मीदवार हैं.
जबकि उपाध्यक्ष पद के लिए अहमद रज़ा,बदरूद्दीन खान,अफ़रोज़ुल हक़,आसिफ़ कमाल,कलीमुल हफ़ीज़, मोहम्मद फुरक़ान,मोदस्सिर हयात ने नामांकन किया है.
पूर्व अध्यक्ष सिराजुद्दीन क़ुरैसी ने अपना पैनल का पूरा नाम जारी किया है.जिसके अनुसार अध्यक्ष पद के लिए डॉ.माजिद अहमद तालीकोटी,उपाध्यक्ष पद पर कलीमुल हफ़ीज़,मेम्बर्स ऑफ़ बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टी में डॉ.एमए इब्राहिमी,सिराजुद्दीन क़ुरैसी,मोहम्मद इरशाद अहमद,जमशेद ज़ैदी,साफ़िया बेगम,सरताज अली और हफ़ीज़ मतलूब करीम का नाम शामिल है.
कौन हैं अफज़ल अमानुल्लाह?
अफज़ल अमानुल्लाह मरहूम सांसद सैयद शहाबुद्दीन के दामाद और बिहार की पूर्व मंत्री परवीन अमानुल्लाह के पति हैं.पिछले साल परवीन अमानुल्लाह का इंतेक़ाल हो गया है.अफजल अमानुल्लाह बिहार के सबसे चर्चित अधिकारियों में से एक रहे हैं. बिहार में वे गृह सचिव से लेकर स्वास्थ्य सचिव का काम संभाल चुके हैं. केंद्र सरकार में भी कई विभागों के सचिव रह चुके हैं.
रिटायरमेंट के बाद नीतीश सरकार ने उन्हें बिहार रेरा का अध्यक्ष बनाया था.अफज़ल अमानुल्लाह दुमका के डीएम भी रहे.इनके बड़े भाई एहसान अमानुल्लाह सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हैं.कोविड के दौरान समाज को सचेत करने और उनकी मदद में अफज़ल अमानुल्लाह की भूमिका उल्लेखनीय थी.
असम,बिहार और पश्चिम बंगाल में बेसहारा बच्चों के लिए उन्होंने बहुत काम किये हैं.अफजल अमानुल्लाह सेंट स्टीफंस कॉलेज दिल्ली के पूर्व छात्र हैं, जिन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातक किया है.उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में एमए किया. उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर और पटना विश्वविद्यालय से विधि स्नातक भी किया है.
बिहार में उन्होंने गृह सचिव और प्रधान सचिव जल संसाधन,शहरी विकास और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग आदि के रूप में कार्य किया है. अमानुल्लाह ने केंद्र में अपने पहले कार्यकाल के दौरान फिल्म समारोहों के निदेशक और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में भी काम किया है.
अफज़ल अमानुल्लाह इस चुनाव को लेकर काफी गम्भीर हैं.उन्होंने एक वीडियो जारी कर इस्लामिक सेंटर के सदस्यों के नाम अपील की है.उनका कहना है कि प्रेसिडेंशल उम्मीदवार एक साथ मंच पर आयें और सदस्यों के समक्ष अपना एजेंडा रखें कि इसका इस्लामिक सेंटर के विकास की उनकी सोच क्या है.चुनाव यूएसए के प्रेसिडेंट की तरह होना चाहिए.
पहले डिबेट हो फिर चुनाव.मतदाताओं को अपनी पसंद के उम्मीदवार को समझने का मौक़ा मिलना चाहिए.अफज़ल अमानुल्लाह कहते हैं कि आज ज़रूरत है कि इस्लामिक सेंटर के स्ट्रकचर में बदलाव हो.
इस इदारा का क़द छोटा ही रह गया है ,बढ़ नहीं पाया है.दिल्ली में और भी इदारे हैं उसके तुलना में हमारा इदारा अदना सा है,रेंग रहा है,सवारी नहीं कर रहा है.उन्होंने मतदाताओं से गुज़ारिश की है कि यदि आप बदलाव चाहते हैं तो नये-नये लोगों को लायें,उन्हें मौक़ा दें,देखें कैसा करता है.
सबको ले देकर चलता हो.गुटबाज़ी,पैनल यह सब मोहमल बात है.11 अगस्त को इसी सोच के साथ वोट डालें.जो दिल्ली के बाहर हैं वह चेक करें कि पोस्टल बैलट मिल रहा है या नहीं.इदारा को बचाना है चमकाना है.
सलमान ख़ुर्शीद की अपील
पूर्व क़ानून और विदेश मंत्री सलमान ख़ुर्शीद का चुनाव प्रचार भी तेज़ है.उनके समर्थन में कांग्रेस के साथ सुप्रीम कोर्ट की पूरी अधिवक्ता की टीम लगी है.संस्था और उसकी पवित्रता को बचाने की अपील की जा रही है.उर्दू हिन्दी और अंग्रेज़ी में सलमान ख़ुर्शीद के दस्तखत से मतदाताओं के नाम एक अपील जारी की गयी है.
सलमान ख़ुर्शीद ने इस अपील में कहा है कि इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में इलेक्शन का दौर शुरू हो चुका है और जल्द ही आप दोस्तों को अपने कीमती वोट के ज़रिए से पूरी दुनिया में भारत के सेकूलर इस्लामी कल्चरल ट्रेडिशन की नुमाइंदगी करने वाले इस मशहूर इदारे की शान को बरकरार रखने में अपनी हिस्सेदारी पेश करने का सुनहरा मौक़ा मिलने वाला है.लिहाज़ा, अब ये वक़्त महज़ किसी ओहदे के लिए किसी खास उम्मीदवार के दावों को जांचने-परखने का नहीं है.
हालांकि, हम जानते हैं कि कुछ लोगों का जायज़ पर्सनल मक़सद भी हो सकता है.लेकिन उस मक़सद को पुख्ता करने के लिए उनके पास पब्लिक सर्विस करने का रिकार्ड और सनद भी होना ज़रूरी है. सिर्फ बुलंद इरादों का एलान करना ही काफी नहीं हो सकता.
हमारे इरादे और उसके तई हमारे नज़रियात को उन लोगों के ज़ेहन में रोज़े रौशन की तरह वाज़ेह कर देना है, जो हम से उम्मीद रखते हैं कि हमारे अंदर भारत के अज़ीम सेक्यूलर कल्चर और उसके ट्रेडीशन की ज़्यादा पुख्ता समझ है.
हमें आई आई सी सी को एक इदारे के तौर पर एक ऐसा प्लेटफार्म बनाना है, जहां साइंटिफिक सोच, कामयाबी की दिलचस्प कहानियां, समाजी हालात का तजुर्बा रखने वाले दानिशवर लोगों और आने वाले दिनों के रहनुमाओं के लिए एक मीटिंग प्वाइंट बन कर उभर सके.समाज में ख़राबी पैदा करने और बदनियती वाले तौर-तरीक़ों से काम करने वालों के लिए यहां कोई जगह नहीं होनी चाहिए.
हमदर्दी और शाइस्तगी को यहां सबसे ज्यादा तरजीह मिलनी चाहिए.इस इलेक्शन की बुनियाद दर-हक़ीक़त अवामी इदारों की बेहतरीन कारकरदगी के लिए होनी चाहिए, ना कि इस बात के लिए कि कौन पहले आया है और कौन बाद में.इस में शक नहीं कि सभी केंडिडेट का एक ही मक़सद है और वो मौजूदा हालात को बदलना चाहते हैं.
लेकिन हर तरह की कोशिशों के बावजूद भी बदलाव की चाहत रखने वाले सभी उम्मीदवारों में से किसी एक उम्मीदवार पर सबकी राय नहीं बन सकी.आपसी बात-चीत को अवाम के सामने पुख्ता इरादे के तौर पर तंगनज़री के साथ पेश किया गया.आने वाली नस्लें हमें कभी माफ नहीं करेंगी, अगर हम मुखालिफों के हाथों की कठपुतली बनने के मुजरिम साबित होते हैं. चंद ही नहीं बल्कि हम सबको साथ मिल कर जीतना है.लेकिन इसके लिए हमें अपने पर्सनल इंट्रेस्ट से ऊपर उठकर सोचना होगा.
याद रहे कि मैं प्रेसिडेंट के इलेक्शन में चंद नामवर और मुम्ताज़ मेम्बर्स की तरफ से बहुत ज़िद करने पर, इस उम्मीद में उतरा हूं कि आप का एतमाद और ट्रस्ट हासिल कर सकूं. यक़ीन जानिए कि अगर किसी नाम पर कंसेंसस बन जाता तो मैं पीछे हटने को तैयार था.
लेकिन अब मैं अपनी ड्यूटी और अपनी अख़लाक़ी ज़िम्मेदारी मानते हुए, आई आई सी सी को प्रिज़र्व और प्रोटेक्ट करने के कॉमन ऑब्जेक्टिव के साथ मुक़ाबले में हूं. इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर हकीम अब्दुल हमीद साहब, बेगम आबिदा अहमद और जस्टिस हिदायतुल्लाह जैसी नामी हस्तियों का ख़्वाब था, चौधरी साहब की अथक कोशिशों को कैसे कोई भूल सकता है.
हमारी नस्ल के सामने अपने वजूद को बचाए रखने के चैलेंजेज़ हैं. लेकिन आई आई सी सी को बनाने वालों के ख़्वाबों की हिफाज़त करना हमारे लिए हौसला देने वाली कहानी हो सकती है.
आईए, आई आई सी सी की अज़मत और बुलंदी को बहाल करके हम उसके बानियों की यादों का एहतराम करने के अपने इरादे को एक बार फिर ताज़ा करें. मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि आप सब के साथ दोस्ती और भाईचारे के जज़्बे के साथ काम करने की मेरी पूरी कोशिश है.
आप में से उन लोगों से एक अपील करना चाहता हूं, जिनके नाम वोटर लिस्ट में नहीं हैं, मुमकिन है, आपकी दिलचस्पी 'मर्कज़' में शायद कम न हो, क्योंकि हमारी तक़दीर मुशतरक है और हम मिल कर काम करने में यक़ीन रखते हैं.बराहे करम, इस बारे में अपनी क़ीमती राय हमें ज़रूर दें कि आप दोबारा वोटर कैसे बन सकते हैं.
डॉ. माजिद तालिकोटी विश्व विख्यात कैंसर सर्जन हैं.चिकित्सा के क्षेत्र में इनका 25 वर्षों का अनुभव है. अभी तक लगभग तीन लाख कैंसर रोगियों की देखभाल और चिकित्सा प्रदान कर चुके हैं.
15,000 से अधिक जीवन रक्षक कैंसर सर्जरी की, जिनमें से अधिकांश गरीबी रेखा से नीचे के रोगी थे. महामारी लॉकडाउन के दौरान न्यूनतम चिकित्सा बुनियादी ढांचे के साथ दूरदराज के स्थानों की यात्रा करके और अपनी सुरक्षा के जोखिम पर भी कैंसर/ब्लैक फंगस सर्जरी करके कीमती जीवन (लगभग 2000) बचाए.महामारी की आवर्ती लहरों से बचने के लिए टीकाकरण जागरूकता अभियान चलाए.
जीवन रक्षक कैंसर उपचार की आवश्यकता वाले प्रत्येक गरीब रोगी का इलाज किया.ब्लैक फंगस और कैंसर से संबंधित सर्जरी करने के लिए पूरे भारत की यात्रा की.साथ ही कैंसर और स्वास्थ्य देखभाल सलाहकार के रूप में अफ्रीका-घाना-कंबोडिया-किर्गिस्तान की यात्रा की, जहां उन्होंने अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए कैंसर उपचार प्राधिकरण के रूप में काम किया.डॉक्टर साहब कई महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं.
चिकित्सा के साथ उर्दू की भी सेवा कर रहे हैं.वर्तमान में मेडिकेंट अस्पताल और अनुसंधान केंद्र बोकारो झारखंड में सीएमडी चेयरमैन और प्रबंध निदेशक हैं.इसके अलावा जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफ़ेसर, इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर दिल्ली के सदस्य, उर्दू भाषा के प्रचार की संस्था एनसीपीयूएल के सदस्य भी हैं.
चिकित्सा के क्षेत्र में कई अवार्ड से नवाज़े जा चुके हैं.प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में तगड़े उम्मीदवार माने जा रहे हैं.2004 से 2024 दो दशक तक इस्लामिक सेंटर के अध्यक्ष रहे सिराजुद्दीन क़ुरैसी की इन्हें हिमायत हासिल है.
बिहार के मेम्बर हैं बंटे हुए
बिहार में सलमान ख़ुर्शीद और अफज़ल अमानुल्लाह की लहर पायी जाती है.इस्लामिक सेंटर के बिहारी मेम्बर्स शकील उज़ ज़मा अंसारी और डॉ.इज़हार अहमद वोटिंग के मामले में एक मत नहीं हैं.
बिहार के पूर्व मंत्री और कांग्रेस के क़द्दावर नेता शकील उज़ ज़मा अंसारी पूर्व मंत्री सलमान ख़ुर्शीद का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.जबकि पूर्व विधायक डॉ.इज़हार अहमद पूर्व नौकरशाह अफज़ल अमानुल्लाह को वोट करने का एलान कर चुके हैं.बिहार में इस्लामिक सेंटर के चुनाव को लेकर माहौल गरम है.शकील उज़ ज़मा अंसारी इस्लामिक सेंटर के पुराने मेम्बर हैं,इज़हार अहमद ने पिछले साल सदस्यता ग्रहण की है.
2014 में प्रेसिडेंट का चुनाव लड़ चुके शकील उज़ ज़मा अंसारी ने आवाज़ द वायस इस बार का चुनाव सबसे अलग है.पहले दो पैनल सिराज क़ुरैसी और उसके ख़िलाफ़ में होता था,इस बार चार-पांच पैनल है.
ऑबजर्वर की निगरानी में चुनाव हो रहा है.उन्होंने कहा कि हमलोग सलमान ख़ुर्शीद के साथ हैं.जबकि डॉ.इज़हार अहमद खुल कर कहते हैं कि उनसे सम्पर्क तो सभी प्रत्याशी कर रहे हैं मगर हमारा वोट अफज़ल अमानुल्लाह को जायेगा.उनसे हमारा घरेलू सम्बन्ध है.
उनकी पत्नी परवीन अमानुल्लाह सदन में हमारे साथ थीं.अफज़ल भाई के प्रचार में जहां भी जाना होगा जायेंगे.घर के आदमी हैं.बिहार के हैं.हम अफज़ल अमानुल्लाह साहब के साथ हैं वह वोट मांगे या नहीं मांगे.वह हर शख़्स के सुख-दुःख में साथ रहते हैं.मेरा फ़र्ज़ क्या बनता है.मालूम हो कि इज़हार अहमद इस्लामिक सेंटर के चुनाव में पहली बार वोट करेंगे.