श्रीनगर से रिपोर्ट और तस्वीरेंः बासित जरगर
श्रीनगर में कश्मीरी पंडित समुदाय द्वारा राम नवमी का त्योहार इस वर्ष विशेष उत्साह, आस्था और सांस्कृतिक एकजुटता के साथ मनाया गया. धार्मिक श्रद्धा और सामाजिक समरसता के इस उत्सव की प्रमुख झलक कथलेश्वर मंदिर, टंकीपोरा से निकली भव्य शोभा यात्रा में देखने को मिली, जिसने पूरे शहर को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया.
कथलेश्वर मंदिर से हुई शोभा यात्रा की शुरुआत
प्राचीन कथलेश्वर मंदिर से सुबह प्रारंभ हुई यह यात्रा श्रीनगर के प्रमुख स्थलों जैसे हब्बाकदल, लाल चौक, बर्बर शाह और जहांगीर चौक से होकर गुजरी और पुनः कथलेश्वर मंदिर में समाप्त हुई. राम भक्तों से सजी यह यात्रा भजन, कीर्तन और धार्मिक नारों से गूंजती रही, जिससे पूरा माहौल आध्यात्मिक उल्लास से भर गया.
बच्चों और युवाओं ने भी निभाई खास भूमिका
पारंपरिक कश्मीरी परिधान पहने छोटे-छोटे बच्चे, हाथों में भगवान श्रीराम की मूर्तियां लेकर जब शोभा यात्रा में शामिल हुए, तो देखने वालों की आंखें श्रद्धा से भर गईं. युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों ने मिलकर इस आयोजन को समुदाय का सामूहिक पर्व बना दिया.
मंदिरों की विशेष सजावट और पूजा-अर्चना
शोभा यात्रा के मार्ग में स्थित मंदिरों – विशेष रूप से बारबर शाह स्थित राम मंदिर और दुर्गा नाग मंदिर में विशेष पूजन और आरती की व्यवस्था की गई थी. इन मंदिरों को फूलों, रंग-बिरंगी लाइटों और पारंपरिक सजावट से सुसज्जित किया गया, जिससे धार्मिक वातावरण और भी आकर्षक हो गया.
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनी राम नवमी
इस वर्ष राम नवमी का उत्सव केवल धार्मिक न होकर, सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक भी बन गया. स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी इस आयोजन में भाग लिया और कश्मीरी पंडित भाइयों के साथ मिलकर त्योहार की खुशियाँ साझा कीं. यह दृश्य कश्मीर घाटी में गंगा-जमुनी तहज़ीब की जीवंत तस्वीर पेश करता है.
सुरक्षा के व्यापक इंतजाम
जुलूस की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पुलिस और सुरक्षा बलों की तैनाती पूरे मार्ग पर की गई थी. श्रीनगर पुलिस ने कानून-व्यवस्था को बनाए रखते हुए श्रद्धालुओं की सुरक्षित और निर्बाध यात्रा सुनिश्चित की.
समुदाय के नेताओं का संदेश
हिंदू वेलफेयर सोसाइटी ऑफ कश्मीर के अध्यक्ष चुन्नी लाल ने इस सफल आयोजन पर प्रशासन और समाज का धन्यवाद करते हुए कहा,"राम नवमी का यह पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि कश्मीरी पंडित समुदाय की आस्था, लचीलापन और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक है. यह आयोजन हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत और एकता की शक्ति की याद दिलाता है."
एकता, उम्मीद और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर कदम
कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों की पुनः स्थापित होती उपस्थिति के बीच, इस प्रकार के आयोजनों का महत्व और भी बढ़ जाता है। ये न केवल समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को सशक्त करते हैं, बल्कि भविष्य की एकता और आशावाद की नींव भी रखते हैं.
राम नवमी की शोभा यात्रा ने श्रीनगर को धर्म, संस्कृति और भाईचारे के एक जीवंत संगम में बदल दिया. यह आयोजन न केवल कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए भावनात्मक और आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि समाज में सौहार्द, सह-अस्तित्व और मिल-जुल कर रहने के मूल्यों को भी मजबूती देता है.