झारखंड में महिलाओं की होगी अपनी मस्जिद,अपना दरबान,अपना इमाम

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 20-07-2023
झारखंड में महिलाओं की होगी अपनी मस्जिद,अपना दरबान,अपना इमाम
झारखंड में महिलाओं की होगी अपनी मस्जिद,अपना दरबान,अपना इमाम

 

सेराज अनवर/पटना

महिलाओं के लिए अलग से मस्जिद,सुनने में थोड़ा अजीब लगता है.मगर यह हक़ीक़त में बदलने जा रहा है.डेढ़ एकड़ में डेढ़ करोड़ की लागत से यह आलीशान मस्जिद झारखंड के जमशेदपुर में बन रही है.देश की यह पहली मस्जिद होगी जिसमें एक साथ 500महिलाएं पांच वक्त की नमाअदा कर सकेंगी.मर्दों के लिए यह पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी.यानि पुरुष यहां नमाज़ अदा नहीं कर सकते. मस्जिद का नाम सैय्यदा जोहरा बीबी फातिमा है.

फ़ातिमा पैगंबर मुहम्मद (सअ)की बेटी हैं.उन्हें खातून-ए-जन्नत भी कहा जाता है.जन्नत में जाने वाली पहली महिला होंगी.भारत की यह पहली मस्जिद का ढांचा कुछ हद तक खड़ा हो गया है.साल के अंत तक तामीर का काम मुकम्मल हो जायेगा. जमशेदपुर से सटे कपाली के ताजनगर में इसका काम जोरों से चल रहा है.

महिलाओं के लिए बन रही देश की पहली मस्जिद को स्थानीय समाजसेवी डॉ.नूरज्ज्मां खान बनवा रहे हैं.यह पहले भी महिलाओं के लिए एक मदरसा संचालित करते रहे हैं.जहां 25 से अधिक मुस्लिम महिलाएं दीनी और दुनियावाी तालीम हासिल कर रही हैं.

इस मस्जिद को लेकर विवाद भी है.विरोध करने वालों की दलील है कि महिला मस्जिद शरीयत के ख़िलाफ़ है.उधर,मस्जिद बनने पर महिलाओं का कहना है कि अब उन्हें घर में कैद होकर इबादत नहीं करनी होगी.वह भी पुरुषों की तरह मस्जिद में नमाज़ पढ़ने जा सकेंगी.औरतों को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से इस्लाम रोकता नहीं है.पर्दा लाज़मी है.मस्जिद के बनने से इलाके की महिलाएं खुश हैं.

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मस्जिद का प्रबंध किसके हाथ में होगा ?

जनवरी-2021 में नींव रखी इस मस्जिद की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के ही हाथ होगी. इस मस्जिद में एक साथ 500महिलाएं पांच वक्त की नमाज़, सामूहिक तरावीह और इज्तेमा यानी सामूहिक बैठक कर सकेंगी. इसमें महिलाओं को दीनी तालीम भी दी जायेगी. यहां इमाम से लेकर दरबान तक सभी महिलाएं होंगी .

महिला दरबानों को विशेष रूप से ट्रेनिंग दी जाएगी, ताकि वह यहां आने वाली महिलाओं की सुरक्षा कर सकें. इस मस्जिद में पुरुषों के प्रवेश पर पाबंदी रहेगी. जाएगी. मस्जिद के साथ स्कूल में खेल मैदान, हॉस्टल, कंप्यूटर लैब, डिजिटल लाइब्रेरी होगी.

इसमें प्रतियोगी परीक्षाओं, विश्वविद्यालयों, झारखंड जैक बोर्ड के सिलेबस पर आधारित किताबें मौजूद होंगी. डॉ नूरुज्जमां खान कहते हैं कि जब स्कूल के बाजू की जमीन पर महिलाओं के लिए मस्जिद बनाने की बात शुरू हुई तो कुछ लोगों ने यह जमीन नमाज पढ़ने के लिए ले ली. मैंने हार नहीं मानी. समाज के प्रबुद्ध लोगों का साथ मिला.कई लोगों ने स्कूल से सटी जमीन दान में दे दी ताकि महिलाओं की इबादतगाह बन सके.

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कौन हैं डॉ नूरुज्जमां खान ?

डॉ नूरुज्जमां खान एक समाज सेवी हैं.अल-इमदाद एजुकेशन वेलफेयर एंड चैरिटेबल सोसायटी बनाकर करीब 25 साल से गरीब बच्चियों के लिए हाईस्कूल चला रहे हैं. वे सोसायटी के महासचिव भी हैं. उनका कहना है- जब महिलाएं पुरुषों के साथ हज कर सकती हैं तो मस्जिद जाने में एतराज किस बात का.

 इस मस्जिद में महिलाएं बिना किसी बंदिश के धार्मिक रीतियों के पालन करने के साथ ही आपस में मिलकर नई-नई चीजों को सीखकर जीवन के नए पहलुओं को सीखेंगी और अंधविश्वास को दूर भी करेंगी.डॉ. नूरजमां के मुताबिक जब महिलाओं के लिए इस मस्जिद को बनाने का निर्णय लिया था तो कई लोगों ने इसका विरोध भी किया था, मगर मैंने ठान रखा था कि इस काम को जरूर पूरा करना है.

डॉ नूरुज्जमां खान बताते हैं कि  जब स्कूल के बाजू की जमीन पर महिलाओं के लिए मस्जिद बनाने की बात शुरू हुई तो कुछ लोगों ने यह जमीन नमाज पढ़ने के लिए ले ली. लेकिन मैंने हार नहीं मानी.समाज के प्रबुद्ध लोगों का साथ मिला तो कई लोगों ने स्कूल से सटी जमीन दान में दे दी ताकि महिलाओं की इबादतगाह बन सके.

खातून-ए-जन्नत सैय्यदा जोहरा बीबी फातिमा ( पैगंबर मुहम्मद नबी की बेटी) को समर्पित इबादतगाह का मकसद इस्लामी बेदारी है .यहां क़ुरआन की रोशनी में व्यावहारिक जीवन की शिक्षा दी जाएगी.समाज में किस तरह रहना है. मुल्क, राज्य, शहर और बस्ती की आबादी तथा माहौल के तकाजा से रूबरू कराया जाएगा.

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विवाद क्यों हो रहा है ?

इस्लामिक धर्म गुरुओं का कहना है कि महिलाएं इमामत (आगे खड़े होकर नमाज पढ़ना) नहीं कर सकती. इसलिए इसका विरोध भी शुरू हो चुका है. फतवा भी आ रहे हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेवली ने जमशेदपुर में बन रही मस्जिद को हन्फी मसलक के खिलाफ बताया है.उनका कहना है कि महिलाओं की मस्जिद और और महिला इमाम को बनाना हन्फी मसलक के हिसाब से दुरुस्त नहीं है.

वह कहते हैं कि पैगम्बरे इस्लाम के जमाने में महिलाएं नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद जाती थीं, लेकिन फिर खलीफा हजरत उमर फारुक़ ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस प्रतिबंध के पीछे कुछ शिकायतें थी,खास तौर पर ये डर था कि कहीं फितना व फसाद न हो जाए.मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी के मुताबिक भारत में ज्यादा आबादी हन्फी मसलक मानने वालों की है.हालांकि दूसरे अहले हदीस मसलक में महिलाओं को जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने की आजादी है.

जमशेदपुर में महिलाओं के लिए जो मस्जिद बन रही है वह भारत के एक नए शगूफा को जन्म देने जैसा है. वहीं इनाम मदीना मस्जिद मानगो आज़ाद नगर के मुफ्ती अब्दुल मालिक मिस्बाही कहते हैं कि महिलाओं को मस्जिद जाने की मनाही है. ई. (586–590 – 644) में खलीफा हज़रत उमर फारूक-ए-आज़म (रअ) ने अपने जमाने से ही रोक लगा दी थी.उनके मस्जिद जाने से फितना फसाद बढ़ने लगा था.

उनकी सुरक्षा के लिए यह फैसला लिया गया था.इमारत ए शरिया के पूर्व क़ाज़ी और अभी सामाजिक,शरई इदारा अल-हम्द के अध्यक्ष  मुफ्ती सुहैल अहमद क़ासमी कहते हैं कि इस्लाम महिलाओं को मस्जिद में नमाज अदा करने की इजाजत देता है. वे कहते हैं, "बड़ी तादाद में मुस्लिम औरतें मस्जिदों में नमाज अदा करती हैं. कुछ

दिनों के लिए जब औरत नापाक (माहवारी के दौरान) होती है, तो मस्जिद में आना मना है. तब उनके लिए नमाज भी माफ है.नापाकी की हालत में मर्द हो या औरत कोई मस्जिद नहीं आ सकता."वे आगे कहते हैं उमर फ़ारूक़ के ज़माने अंदेशे के तहत महिलाओं को मस्जिद में आने पर रोक लगायी गयी,आज हालात उससे भी ख़राब हैं.इस्लाम  फितना से बचने को कहता है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर कहा है कि मस्जिद में मुसलमान महिलाओं के नमाज़ पढ़ने पर कोई रोक नहीं है लेकिन मस्जिद में महिला और पुरुष को मेल-मिलाप की इजाज़त नहीं है. पुणे स्थित एक महिला फ़रहा अनवर हुसैन शेख़ ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और नमाज़ पढ़ने की अनुमति को लेकर याचिका दायर की थी.

नमाज इस्लाम धर्म के पांच स्तंभों में से एक है. दिन में पांच बार नमाज अदा करनी होती है. जुमे के दिन विशेष नमाज होती है.मस्जिद में जमात के साथ नमाज अदा करने के अलग नियम हैं. लेकिन ज्यादातर मस्जिदों का संचालन पुरुषों के हाथ में है. मस्जिद में एक मुआज्जिन्न (अजान देने वाला) होता है और एक इमाम (जो नमाज पढ़ाता है).

ये दोनों पुरुष ही हैं और शायद ही कहीं औरत नमाज की इमामत करती हो.रांची विश्वविधालय के व्याख्याता शफक़ अम्मार के अनुसार इस्लाम में औरत को बराबरी का दर्जा दिया गया है और वे नमाज पढ़ सकती हैं. उनके अनुसार बहुत सी ऐसी मस्जिदें हैं जहां औरतें जा कर नमाज पढ़ती हैं.

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मानगो में पहले से है महिलाओं की एक मस्जिद

मानगो में ओल्ड पुरुलिया रोड पर एक मस्जिद पूरी तरह महिलाओं के लिए बनाई जा रही है.ये मस्जिद ओल्ड पुरुलिया रोड पर मस्जिद-ए-अहले हदीस परिसर में ही बनी है. इस मस्जिद का चैनल गेट गली में खुलता है. जबकि, अहले हदीस मस्जिद का गेट ओल्ड पुरुलिया रोड पर है. गेट अलग होने से महिलाओं को आने- जाने में सहूलियत होती है.इस मस्जिद में महिलाओं का वजू खाना भी अलग है.

औरतें गली वाले चैनल गेट से दाखिल होने के बाद अपनी ही मस्जिद में वजू करती हैं और नमाज अदा करती हैं. पेश इमाम के नमाज पढ़ाने की आवाज यहां तक जाए इसके लिए यहां लाउड स्पीकर लगाए गए हैं. इस मस्जिद में औरतों की नमाज जमात से होती है.ये औरतें अहले हदीस मस्जिद के पेश इमाम मोहम्मद उमैर सलफी की इमामत में ही नमाज पढ़ती हैं.पेश इमाम के नमाज पढ़ाने की आवाज यहां तक जाए इसके लिए यहां लाउड स्पीकर लगाए गए हैं.

महिलाओं की मस्जिद की दो मंजिला इमारत पूरी तरह बंद है.मस्जिद में दूसरी मंजिल पर लगी खिड़कियों में परदे हैं.शहर में अहले हदीस मसलक की सात और मस्जिदें हैं. इन मस्जिदों में भी महिलाएं तरावीह की नमाज अदा करती हैं. इनमें चेपा पुल के करीब प्रोफेसर कॉलोनी मस्जिद, आजाद नगर क्रास रोड नंबर आठ अहले हदीस मस्जिद, कपाली में कबीर पोलीटेक्निक मस्जिद, शास्त्रीनगर की सलफी मस्जिद, जुगसलाई में झोपड़ा मस्जिद के पास अहले हदीस मस्जिद और टेल्को के बारीनगर की अहले हदीस मस्जिद हैं.