ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
"मैं दशकों से थिएटर आर्टिस्ट हूँ और कई किरदार मेने स्टेज पर परफॉर्म किए हैं. मगर राम की भूमिका निभाना कठिन है. केवल रामायण का मंचन देखना काफी नहीं, आपको रामायण पढ़नी होगी, तभी आपको राम समझ आएंगे और अगर ! आप राम को समझ गए, तो मानिए की संसार के सभी कष्टों से आप मुक्त हो जाएंगें." ये कहना है जावेद का जिन्होनें मुस्लिम समुदाय से होने के बावजूद श्री राम का किरदार रामलीला में निभाया.
अब अपने राम लला के खातिर इतना ना कर पाओगे,
और शबरी का झूठा खाओगे तो पुरुषोत्तम कहलाओगे
श्री राम सेंटर और भारतीय रंगमंच विभाग और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की रंगशाला से एक्टिंग के गुर सीखने के बाद जावेद अबतक 100 से ज्यादा एक्ट प्ले कर चुके हैं साथ ही उनकी 5 बॉलीवुड फिल्मों में भी एंट्री हो चुकी है. ऐसे में आवाज द वॉयस ने उनसे जनकपुरी ईस्ट के रामलीला मैदान में मुलाकात की जहां वे प्रभु श्री राम का किरदार निभा रहे हैं. आवाज द वॉयस की संवाददाता ओनिका माहेश्वरी ने एक्टर जावेद का साक्षात्कार किया, जिसके कुछ अंश यहां पेश हैं.
मुस्लिम होने के बावजूद आपको भगवान राम की भूमिका निभाने के लिए किस बात ने प्रेरित किया?
राम का किरदार करने के लिए राम के गुण ही मेरी प्रेरणा बनें. श्री राम 16 गुणों के अलावा 12 कलाओं से युक्त थे. प्रभु श्रीराम को पुरुषों में सबसे उत्तम मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है. वे एक आदर्श व्यक्तित्व लिए हुए थे. एक धनुष और एक वचन धारण करने वाले थे. उन्होंने एक पत्नी व्रत भी धारण कर रखा था.
आप भगवान राम के चरित्र और मूल्यों से कैसे जुड़ते हैं?
श्री राम के किरदार के लिए मैं बिलकुल ही अलग यानी जुदा हूँ. राम एक सधा हुआ ईश्वर है, जिसमें शालीनता है, धैर्य है, दया है वहीँ मैं अपनी जिंदगी में बहुत फ़ास्ट हूँ, बहुत ही मजाकिया और जोली किस्म का हूँ. इसीलिए मुझे राम जैसे किरदार को करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी है.
मगर राम की भूमिका निभाना कठिन है. ये बात मैं इसीलिए कह रहा हूँ क्योंकि मेने उनको समझने की कोशिश की है और इस रामलीला के मंचन की प्रेक्टिस के दौरान मैं राम को शायद 1 प्रतीषत भी नहीं समझ पाया हूँ.
क्या आपको परिवार/दोस्तों/समुदाय से किसी तरह की शुरुआती आपत्ति या चिंता का सामना करना पड़ा?
दरअसल वे सभी बहुत ही भौचक्के रह गए ये जानकर कि मुझे श्री राम का किदार मिला है. और सभी ने मुझे यही सलाह दी कि मैं इस किरदार को उचित मायनों में अपने अंदर बसा कर फिर इसे परफॉर्म करूं. सभी काफी खुश थे ये जानकर कि मुझे पुरुषों में सबसे उत्तम मर्यादा पुरुषोत्तम का रोल रामलीला में निभाने का मौका मिला है.
मेरे दोस्तों ने मुझे बधाईयां दी और साथ ही मेरे परिवार ने मुझे इस बात से भी वाकिफ कराया कि ये वहीँ श्री राम हैं जिन्होनें शबरी के झूठे बेर खाये थें. शबरी भक्त थीं और उन्होंने अपने मन से बेर चुन चुनकर उन्हें श्री राम को सेवा करने के लिए प्रस्तुत किया. श्री राम जी ने भक्ति और विश्वास की दृष्टि से उन झूठे बेरों को प्रसन्नता से स्वीकार किया था.
आपको क्या लगता है कि यह भूमिका हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच की खाई को पाटने में कैसे मदद करती है?
देखिये ये कोई पहली बार तो नहीं जब कोई मुस्लिम किसी हिन्दू का किरदार मंच पर अदा कर रहा हों लेकिन ये बात निश्चित है कि समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें अब मैं भी शामिल हो गया हूँ जहां हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारे का प्रतीक साफ नजर आता है.
आप भगवान राम के अपने चित्रण के माध्यम से क्या संदेश देना चाहते हैं?
अगर आप राम को समझना चाहते हैं तो आपको रामायण पढ़नी होगी. क्योँकी अगर आप राम को समझ गए. तो वो तो इतने शालीन और मर्यादावान थे कि स्त्री का सम्मान उनके लिए प्रथम था, वहीँ वे अपनी प्रजा से कितना प्यार करते थे, वे पर्यावरण प्रेमी भी थे. तो मैं बीएस यहीं कहुंगाँ कि राम के सभी गुणों का सनुसरण हम सभी को भी करना चहिये तभी हमारे समाज का कल्याण होगा.
इस भूमिका की तैयारी के दौरान आपने क्या खास किया राम बनने के लिए ?
राम बनने के लिए मेने 7kg अपना वजन कम किया, शाकाहारी भोजन ही खाया, मेरे पैरों में छाले पड़ गए हैं, प्रेक्टिस के दौरान मेने अपने आप को बहुत कंट्रोल किया क्योंकि मैं बहुत ही फ़ास्ट हूँ लेकिन राम की तरह शालीन और धैर्यवान रहने के लिए मेने अपनी हाथ इधर उधर फेकना, डायलाग डिलेवरी के दौरान अपनी गर्दन की हरकत को भी समेत रखने के लिए कड़ी मेहनत की.
इस भूमिका की तैयारी के दौरान आपने राम के बारे में क्या सीखा?
यूँ तो हम कलाकारों से कहा जाता है कि एक रोल के लिए पिछले किरदार को त्यागना होता है. लेकिन श्री राम के बहुत से ऐसे गुण हैं जो मैं अपने जीवन में भी अपनाना पसंद करूँगा. 14 साल तक वनवास काटने के बाद भी उन्होंने मर्यादा, दया, सत्य, करुणा और धर्म जैसे आचरण को नहीं त्यागा. जिसके कारण वे श्रेष्ठ राजा कहलाए. श्री राम से हमे प्यार करना सीखना चाहिए अपनी प्रजा से अपने परिवारजनों से, शायद तब संसार में कोर्ट कचेरी के झंझट से भी मनुष्य मुक्त हो जाएगा.
आपको क्या लगता है कि अंतरधार्मिक समझ को बढ़ावा देने में कला/संगीत/रंगमंच का क्या महत्व है?
आज के समाज को उन कलाकारों का सम्मान करना जरूरी है जो धर्म से परे हटकर समाज में सद्भावना, प्रेम और भाईचारे का प्रतीक बने हुए हैं. और अंतरधार्मिक भेदभाव को पाटने के लिए अहम भूमिका ऐडा कर रहे हैं , जिन्हें सभी वर्ग के लोग देखते भी हैं और उन्हें सुनते भी है आम आदमी के मुकाबले स्टार्स की बात लोगों को ज्यादा अपीलिंग लगती है.
क्या आप सद्भाव को बढ़ावा देने वाली और भूमिकाएँ/परियोजनाएँ तलाशने की योजना बना रहे हैं?
मुझे मेरे श्री राम के रोल के कई लोगों ने सराहा है और यहीं कारण है कि मैं पहले विष्णु, शिव का रोल भी अदा कर चूका हूँ आगे भी मुझे जब भी ऐसे मोके मिले जहां से मुझे दोनों समुदायों से प्यार और सम्मान मिले मैं उस प्रोजेक्ट में अपनी भूमिका जरुर अदा करूँगा.