मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली
एक मरीज को नया जीवन मिलने के बाद भारतीय डॉक्टरों की पाकिस्तान में एक बार फिर वाहवाही हो रही है. आम पाकिस्तानियों का मानना है कि यदि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहतर हो जाएं तो बड़ी संख्या में पाकिस्तानी मरीजों को राहत पहुंच सकती है.पाकिस्तान में चिकित्सा व्यवस्था न केवल महंगी है, अस्पतालों में गंभीर रोगियों के इलाज का खास प्रबंध नहीं है. यही नहीं पाकिस्तान में खाद्य सामग्री की तरह इलाज भी बहुत महंगा है.
प्रत्यारोपण के मरीजों केलिए तो पाकिस्तान के बड़े से बड़े अस्पताल में भी खास इंतजाम नहीं है.दिल्ली के अपोलो अस्पताल में विदेशी मरीजों की इलाज की व्यवस्था देखने वाले एक स्टाफ का कहना है कि पाकिस्तान में चिकित्सा व्यवस्था इतनी खराब है कि प्रत्येक महीने पाकिस्तान से लगभग 500 मरीजों की रिपोर्ट उनके यहां आती है.
इनमें कई लीवर प्रत्यारोपण के मामले होते हैं. इसके इलाज पर भारत के अच्छे अस्पताल में 20 से 32 लाख रुपये खर्च आते हैं, जबकि पाकिस्तान में ऐसे मरीजों का इलाज संभव नहीं होने पर उन्हें यूरोपीय या अमेरिकी देश जाना पड़ता है, जो सभी मरीज के तीमारदार इसपर करोड़ रूपये खर्च करने की हालत में नहीं होते.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान पिछले कई सालों से भारी आर्थिक संकट से जूझ रहा है, जिसका बुरा प्रभाव सीधे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ रही है.यहां तक कि ऑपरेशन थिएटरों में भी हृदय, कैंसर और किडनी जैसी सर्जरी के लिए एनेस्थेटिक्स सामानों का स्टॉक दो सप्ताह से अधिक नहीं बचा है. पाकिस्तान बुरी तरह में डूबा है.
वित्तीय वर्ष 2022-23 में पाकिस्तान को विदेशी ऋण के तौर पर 23 बिलियन डॉलर का भुगतान करना पड़ा था, जिससे स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बुरी तरह प्रभावित हुई है. यहां तक कि पाकिस्तान को आवश्यक दवाओं के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है.चूंकि अस्पतालों में मरीजों को परेशानी हो रही है, स्थानीय दवा निर्माताओं को अपना उत्पादन कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की कमी के कारण डॉक्टर सर्जरी कम करने को मजबूर हैं.
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ऑपरेशन थिएटरों में हृदय, कैंसर और किडनी जैसी सर्जरी के लिए एनेस्थेटिक्स की भारी कमी है.पाकिस्तान दवा विनिर्माण अत्यधिक आयात पर निर्भर है और लगभग 95प्रतिशत दवाओं के लिए भारत और चीन सहित अन्य देशों से कच्चे माल की आवश्यकता होती है.पाकिस्तानी रुपये के तेज अवमूल्यन का भी दवा बनाने की लागत असर पड़ा है.
गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल के एक पीआर का कहना है कि इराक, ईरान, अरब, अफगानिस्तान, पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों से आने वाले विदेशी मरीज ज्यादातर दिल्ली-एनसीआर के अस्पतालों में इलाज कराना चाहते हैं. जबकि इस मामले में दक्षिणी शहर चेन्नई और बेंगलुरु पहले से अग्रणी है.
एक ‘फाइव स्टार’ अस्पताल के विदेशी सेल के एक अधिकारी ने बताया कि यदि पाकिस्तानी मरीजों को विजा मिलने में आसानी हो जाए तो वहां से बड़ी संख्या में लोग इलाज के लिए भारत आ सकते हैं. अभी विजा मिलने मंे कई तरह की अड़चनें हैं. शिकायत है कि वीजा मिलने में पाकिस्तानी मरीजों को कई-कई दिन लग जाते हैं.
भारत सरकार की पहल पर मुस्लिम देशों के अलावा लगभग 150देशों के मरीज यहां इलाज के लिए आते हैं. मरीजों के ई-वीजा के लिए देश को रोजाना कम से कम एक हजार आवेदन मिलते हैं.बड़े अस्पतालों का कहना है कि इसकी व्यवस्था में सुधार की जरूरत है. इसे दोषरहित बनाना होगा. वैसे, व्यवस्था बदलने में वर्षों लगेंगे.
स्वास्थ्य सेवा के लिए भारत ही क्यों ?
देश में हर साल मेडिकल टूरिज्म का विस्तार हो रहा है. इसके लिए देश के सभी बड़े अस्पतालांे में रोजा कितने आवेदन आते हैं, सही आंकड़ा किसी के पास नहीं है. एक अनुमान है कि साला दस लाख आवेदन आते हैं.यहां तक कि थाईलैंड और सिंगापुर से भी मरीज आने लगे हैं, जब कि वहां पहले से मेडिकल टूरिज्म की व्यवस्था है.
भारत में हाल के सालों में स्वास्थ्य फर्म दूसरा बड़ा व्यवसाय बनकर उभरा है. इसके चलते मेट्रो शहरों में कई अस्पताल डिटॉक्स केंद्र बन गए हैं. भारत में दूसरे देशों की तुलतान में चिकित्सा सस्ता है.दूसरे शब्दों में कहीं तो अन्य देश इलाज के नाम पर मरीजों की जेब ढीली कर रहे हैं, जबकि भारत के अस्पताल इलाज का उचित मूल्य वसूल रहे हैं.
भारतीय डॉक्टर का पाकिस्तान के मरीजों के लिए ‘ पीस क्लिनिक’
कुछ साल पहले भारतीय डॉक्टरों ने पाकिस्तानी मरीजों के लिए ‘पीस क्लिनिक’ का आयोजन किया था. एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के कराची के लीवर प्रत्यारोपण के रोगियों के लिए यह चिकित्सा शिविर लगाया गया था. हरियाणा के गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल के मुख्य लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. अरविंदर सिंह सोइन की देखरेख में यह ‘पीस क्लिनिक’ का आयोजन हुआ था.
कार्यक्रम में कराची के डॉ. जियाउद्दीन अस्पताल के डॉक्टरों ने शिरकत की थी. इस दौरान भारतीय डॉक्टरों ने पाकिस्तानी डॉक्टरों के साथ अपनी विशेषज्ञता साझा की थी. किडनी और लीवर प्रत्यारोपण के. डॉ सोइन ने कहा कि पाकिस्तानी मरीजों का इलाज करना उनके लिए एक अलग अनुभव है.
उन्होंने कहा, हमने जियाउद्दीन अस्पताल को अपने डॉक्टरों और पैरामेडिकल को मेदांता अस्पताल में प्रशिक्षण के लिए भेजने के लिए भी आमंत्रित किया है. दो देशों के रिश्ते बेहतर होने के बाद मेदांता अस्पताल के अन्य डॉक्टर भी भविष्य में पाकिस्तान जाएंगे और पाकिस्तानी मरीजों का इलाज करेंगे.
डॉ. सोइन ने कहा, हम इन मरीजों को यथासंभव सुविधा देना चाहते हैं. जियाउद्दीन अस्पताल के अध्यक्ष डॉ. असीम हुसैन ने कहा, यह शिविर दोनों अस्पतालों के बीच एक शांति कार्यक्रम के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया था. हम भारत से अधिक डॉक्टरों को आमंत्रित कर रहे हैं कि वे आएं और लिवर प्रत्यारोपण के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता और अनुभव हमारे साथ साझा करें.”
डॉ. हुसैन ने कहा कि जियाउद्दीन अस्पताल में एक संयुक्त किडनी-लिवर वार्ड स्थापित करने के लिए बातचीत चल रही है. उन्होंने कहा, हम इस संयुक्त वार्ड को नवीनतम आईटी बुनियादी ढांचे के माध्यम से मेदांता अस्पताल के विशेषज्ञों की सीधी सहायता से अपने डॉक्टरों द्वारा चलाना चाहते है.
जियाउद्दीन अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अनूप दावानी ने कहा कि यह अच्छी बात है कि दोनों देशों के चिकित्सा पेशेवर पाकिस्तान में मरीजों को विशेष रूप से किडनी और लीवर प्रत्यारोपण के क्षेत्रों में लाभ और विशेषज्ञता प्रदान करने के लिए कदम उठा रहे हैं.
उन्होंने कहा, इससे पाकिस्तान के स्वास्थ्य सेवा उद्योग में क्रांति लाई जा सकती है. उन्होंने कहा कि जियाउद्दीन अस्पताल पहले भी कराची में संयुक्त सर्जरी करने और दोनों देशों के डॉक्टरों को अपनी विशेषज्ञता और अनुभव साझा करने के लिए एक पीस क्लिनिक का आयोजन भारत के अपोलो अस्पताल के साथ मिलकर किया था.