मैं तो मर गई थी, मगर गालिब ने मुझे जिंदा कर दिया, याद करते हुए बोली उमा शंकर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-12-2024
I was dead, but Ghalib brought me back to life, said Uma Shankar while remembering
I was dead, but Ghalib brought me back to life, said Uma Shankar while remembering

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

सर्द और ठिठराती शाम के बीच इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में मिर्जा गालिब की याद में शमां देर रात तक जलती रही और प्रशंसक गुलजार हॉल में तालियां बजाकर शायरों को दाद देते रहे. दरअसल, दिल्ली सरकार और साहित्य कला परिषद के तत्वावधान में तीन दिवसीय यादगार-ए-गालिब प्रोग्राम आयोजित कर उन्हें याद किया जा रहा है.

चांदनी चौक स्थित ‘गालिब की हवेली’ को आजाद कराने में पेश रहने वाली उमा शंकर ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए कहा कि हवेली को आजाद कराना परेशानियों का बोझ था. इसके बावजूद मैं और बहुत सारे लोगों ने चांदनी चौक स्थित गली मीर कासिम जान में गालिब की हवेली को आजाद करवाकर आम लोगों के लिए समर्पित कर दिया है. मैं तो मर गई थी, लेकिन गालिब ने मुझे जिंदा कर दिया. जब तक जिंदा हूं, गालिब के लिए काम करती रहूंगी.

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शायरी के कार्यक्रम की शुरुआत नौजवानों के दिलों की धड़कन, मशहूर शायर अजहर ने मिर्जा गालिब को श्रद्धांजलि पेश करते हुए कहा कि उनकी शेर और गजलें आज भी भारतीय उपमहाद्वीप की साहित्यिक धरोहर का अहम हिस्सा हैं. उनकी की शायरी में प्यार, दर्द, टूटे हुए दिल, और जीवन के नश्वर सत्य को प्रमुखता से व्यक्त किया गया है. उनके शेरों में एक अद्भुत सोच और गहरी मानसिकता की झलक मिलती है.

अजहर इकबाल ने शहरों की जिंदगी और गांव की हवा को याद करते हुए पेश किया -

दम घुटता है इन कब्रनुमा शहरी घरों में

गांव में पड़ी रह गई अंनाई हमारी

एक शख्स के जख्मों को नहीं भर पाया अभी तक

किस काम के हैं दोस्त ये मसीहाई हमारी


मुशायरे की अध्यक्षता इकबाल अशहर ने पेश करते हुए कहा कि हमें इस बात पर फख्र होना चाहिए कि हमारे मुल्क में गालिब जैसे शायर हुए, जिसे हम दुनिया के सामने दिखा सकते हैं. उनके ऊपर कुछ भी कहा जाए, लिखा जाए बहुत कम है.

इकबाल अशहर बोले-

दीद-ए-तर ने लगा रखी है तहरीरों पर मुहर

सांसें याद आए कि याद आया है तू कब-कब मुझे

 

हास्य कवि के लिए दुनिया भर में मशहूर इकबाल मेरठी ने लोगों को खूब हंसाया -

तू मुझे अपनी मां की तरह डांटती क्यों हो

ये लान तान हरीफों के रूबरू किया है

हर एक हर्फ मलामत के तीर हो जाएंगे

तुम ही बताओ के ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है

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अज्म शाकरी -

खुद को सस्ता बेच कर वो उम्र भर जिंदा रहा

हम शरीफुन नफ्स थे नायाब हो कर मर गए

 

शाहिद अंजुम -

हम भी दरिया के किनारे प्यारे हैं

हम समझते हैं कर्बला क्या है

हमने मकतल में दिन गुजारे हैं

हमको मालूम है खुदा क्या है

 

मोईन शादाब -

कोई नजर न नजरिया, न कुछ लबो-लहजा

हम ऐसे शख्स से किया खाक गुफ्तगू करते

 

नदीम शाद -

ये करिश्मा है हमारे खून की तासीर का

रंद लिखा जा रहा है टूटी हुई शमशीर का

 

जश्न-ए-अदब के संस्थापक कुंवर रंजीत चौहान ने पेश किया -

तस्वीर की नजर से तुझे देखता हूं मैं

रूबरू तो है हुबहू कहां

 

इससे पहले कहकशां त्यागी ने दर्शकों और शायरों का शुक्रिया अदा किया और आखिर में उमा शंकर ने सभी का आभार व्यक्त किया.