शहीदों की अनकही कहानियों को सामने लाने की मुहिम में विंग कमांडर एम.ए. अफराज

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-08-2024
I seek solace in the stories of martyrs to transform the emotions of my aging age: Retd. Wing Commander M.A. Afraz
I seek solace in the stories of martyrs to transform the emotions of my aging age: Retd. Wing Commander M.A. Afraz

 

राजीव कुमार सिंह

जो सरकार न कर सकी वो विंग कमांडर अफराज ने कर दिखाया, 26 हजार से ज्यादा शहीदों की शहादत को सहेजने का रिकॉर्ड बनाया.फौजी सेवा से भले ही रिटायर हो जाए, लेकिन अंतिम सांस तक वह अपने अंदर के सैनिक को रिटायर नहीं होने देता. इसकी जबरदस्त मिसाल हैं बेंगलूरू के एम.ए. अफराज. भारतीय वायुसेना से विंग कमांडर के ओहदे से रिटायर एम.ए. अफराज ने वह काम कर दिखाया, जिसे देश की सरकारें नहीं कर सकीं.

आजादी के बाद से शहीद हुए 26 हजार से ज्यादा सैनिकों की शहादत को सहेजने के लिए विंग कमांडर अफराज ने देश भर से शहीदों और उनके परिवारों का डाटा जुटाया और honourpoint.in पोर्टल पर उनकी कहानियों का दस्तावेज तैयार कर दिया.

विंग कमांडर अफराज कहते हैं, “पढ़ाई और नौकरी के दौरान मैंने बहुत से देश के विभिन्न मेमोरियल्स का दौरा किया. हिंदुस्तान में लगभग 200 से ज्यादा मेमोरियल्स हैं . उनमें से आधे से ज्यादा यानी 100 के आसपास मिलिट्री कन्टोन्मेंट्स में हैं. मै वहां जाकर शहीदों का ब्योरा इकट्ठा करता था.”

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विंग कमांडर अफराज का पारिवारिक बैकग्राउंड आर्म्ड फोर्सेज का रहा है. उनके पिता आर्मी में थे. उनकी पत्नी भी वायु सेना में थीं. उनके साले और बहुत से करीबी आर्म्ड फोर्सेज में थे.  ऐसे में, उनका बचपन मिलिट्री कन्टोन्मेंट्स में ही बीता. दरअसल, देश के लिए सर्वोच्च बलिदान करने वाले लोगों की कहानी अभी तक अनकही और गुमनाम है.

विंग कमांडर अफराज फ्लाइंग ऑफिसर फारुख बुनशा की चर्चा करते हैं. बुनशा 1965 की जंग में शहीद हो गए थे. धीरे-धीरे शहीद बुनशा लोगों के जेहन में भी नहीं रहे. लेकिन जब विंग कमांडर अफराज ने ऑनलाइन दुनिया में उनकी कहानी सुनाई तो पता चला कि उनकी मंगेतर भी थीं, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी उनकी याद में उनके शब्दों के सहारे गुजार दी.

फारुख बुनशा की मंगेतर आज तक़रीबन 75 साल की हैं. उन दोनों के परिवारों ने उनका रिश्ता कभी नहीं स्वीकारा. लेकिन जब उनकी कहानी विंग कमांडर एमए अफराज ने लिखी तब उनके परिवार एक-दूसरे से मिले.

वह कहते हैं, “जब कारगिल का युद्ध हुआ तब मै एयरफोर्स में था. तब मैंने ये बहुत करीब से देखा कि मीडिया में शहीदों का तो कवरेज होता था, लेकिन बदकिस्मती से दो या तीन दिन के अंदर ही हम अपने शहीदों को गुमनामी में धकेल देते थे और हम उनका नाम तक भूल जाते थे.

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तभी हमें ये आभास हुआ कि हमारे गुमनाम शहीदों को कैसे याद रखना है. रिटायरमेंट के बाद मैंने सोचा कि अब अपने इस सपनों को धरातल पर लाने का समय आ गया है.”विंग कमांडर अफरोज ने इसके लिए honourpoint.in के नाम से एक पोर्टल की शुरुआत की.

वह बताते हैं, “हमने इस पर 2015 से काम करना शुरू किया. पोर्टल को 2017 में लॉन्च किया. 1947, 1962, 1965, 1971 और 1999 के युद्धों में शहीद लेकिन विस्मृत कर दिए गए जवानों का आंकड़ा जुटाना, खासकर जिन्हें कोई अवॉर्ड नहीं मिला था, ये हमारे लिए एक बहुत बड़ी समस्या थी. उस समय तो ना ही इंटरनेट था, न ही वैसी कोई जानकारी.”

चुनौती इसलिए भी बड़ी थी कि शहीद जवानों के बारे में न तो किताबों में ज्यादा लिखा मिलता है और वैसे भी उनका परिवार दूर-दराज के गांवों में होता है. अफरोज कहते हैं, “हमारी जवानों से क्या अपेक्षाएं हैं यह तो साफ है, लेकिन शहीदों की क्या अपेक्षाएं हैं देशवासियों से यह भी कोई नहीं जानता.”

वह बताते हैं कि शहीदों के परिवारों से बातचीत के दौरान कई सालों बाद जब देश हमारे शहीदों के बलिदान को याद करता है और उनका सम्मान करता है, तब उन्हें कितना गौरवान्वित महसूस होता है यह शब्दों में बताना मुश्किल है. यह गौरव महसूस करना उनके परिवारवालों के लिए इतना महत्वपूर्ण है कि उसको कोई मैडल या वित्तीय सहायता भी नहीं दे सकती है.

विंग कमांडर एम.ए. अफराज कहते हैं, “इस पोर्टल को शुरू करने में हमें पूरे दो साल लग गए. आखिरकार 2017 से हमने इसका आगाज़ कर दिया और ये महज एक शुरुआत है.”

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विंग कमांडर अफराज ने अपने रिटायरमेंट के 15 साल बाद, 26 हजार से ज्यादा सैनिकों की शहादत को सहेजकर और शहीदों और उनके परिवारों का डेटा जुटाया और honourpoint.in पोर्टल पर उनकी कहानियों का दस्तावेज तैयार कर दिया.

विंग कमांडर अफराज कहते हैं, “देश के हरेक नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह देश के लिए अपना योगदान दे, वह योगदान किसी भी तरह का हो सकता है. देश को हर नागरिक के योगदान की जरूरत है.”

honourpoint.in पोर्टल के माध्यम से विंग कमांडर अफराज की टीम फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया मंचों पर शहीदों की कहानियां तक़रीबन रोज ही पोस्ट करते हैं. वह बताते हैं, “हम ऑफलाइन भी जागरूकता फैला रहे हैं.

मसलन, स्कूलों, कॉलेजों और कॉर्पोरेट के साथ सीएसआर पार्टनर के तहत लोगों और छात्रों को जागरूक कर रहे और इस पर निरंतर काम कर रहे हैं. साथ ही हम मैराथन, रेडियो, प्रिंट मीडिया और टेलीविज़न के माध्यम से भी लोगो से जुड़ रहे हैं.”

अफराज की टीम अखिल भारतीय स्तर पर 'रंग दे वीर' के नाम से कार्यक्रम आयोजित करवाते हैं. छह सालों से आयोजित हो रहे इन कार्यक्रमों में भारत के ही नहीं, बल्कि विदेशों में स्थित स्कूल के छात्र भी हिस्सा लेते हैं. इस इवेंट्स की शुरुआत 26 जुलाई यानी कारगिल दिवस से होती है और समापन 15 अगस्त को होता है.

विंग कमांडर एम.ए. अफराज सिर्फ जागरूकता नहीं फैला रहे बल्कि उन शहीदों के परिवार के लिए कुछ ठोस पहल भी करना शुरू कर चुके हैं. वह कहते भी हैं, “इस काम में सिविल सोसायटी को आगे आना चाहिए.

उन्हें इन परिवारों के संपर्क में आना चाहिए. सरकार तो बस उनकी पेंशन और स्कीम्स दे सकती है. शहीदों की कहानियां सामने आने पर समाज में लोग उनके परिवारों के लिए खड़े हो रहे हैं, जिन्हें मदद की जरुरत है. उनके परिवारों को वकील मुफ्त में उनका केस लड़ रहे हैं, डॉक्टर्स फ्री इलाज कर रहे हैं. इसके लिए समाज के दूसरे क्षेत्र के लोग भी सामने आ रहे हैं.”

विंग कमांडर एम.ए. अफराज एक दूसरी मिसाल फ्लाइंग ऑफिसर फ्लाइट लेफ्टिनेंट आकाश यादव का देते हैं. हरियाणा के रेवाड़ी जिले के कोसली गांव के फ्लाइंग ऑफिसर फ्लाइट लेफ्टिनेंट आकाश यादव नवम्बर, 2010 को महज 26 साल की आयु में शहीद हो गए थे.

आकाश हेलीकाप्टर पायलट थे. इनका हेलीकाप्टर भारत-चीन सीमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. आकाश अपने माँ-बाप के एकलौते थे. इतनी काम उम्र के अपने बेटे को खोने के गम में उनके माँ और पिताजी दोनों ही अवसाद में चले गए थे. उन्होंने अपने आगे की जिंदगी जीने का कोई मकसद ही नहीं बचा था. वे समाज से काट गए और बिलकुल ही अकेले जीने लगे, ऐसे में वह अवसाद में चले गए.

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2017 में एम.ए. अफराज के पोर्टल ने शहीदों के परिवारवालों और सिविल सोसाइटी दोनों को आपस में जोड़ने के कार्यक्रम में फ्लाइट लेफ्टिनेंट आकाश यादव के परिवार को आमंत्रित किया था. कार्यक्रम के बाद उनकी स्थिति में बदलाव आया. उन्होंने तय किया कि वह अब अपनी बाकी जिंदगी को सकारात्मक तरीके से जिएंगे और समाज के लिए कुछ करेंगे.

फ्लाइट लेफ्टिनेंट आकाश यादव के माँ-पिताजी ने अपने कोसली गांव में ही 'फ्लाइट लेफ्टिनेंट आकाश यादव युवा प्रेरणा समिति' नाम की एक संस्था की स्थापना की. इस संस्था के जरिए वह अपने आस-पास के गांव जाकर युवाओं को सेना में भर्ती होकर देश की सेवा के लिए प्रोत्साहित करते हैं.

उन्होंने अपने आस-पास की झुग्गी-झोपड़िओं के बच्चों को गोद लिया और उनको पढ़ाया, लिखाया और उनका एडमिशन स्कूलों में करवाया. उनका ये प्रयास आज भी निरंतर चल रहा हैं. वह अब पूरी तरह से समाजसेवा में जुट गए हैं.  

संपादक की टिप्पणीः अगर हमारे पाठक भी देश के शहीदों के लिए कुछ करना चाहें तो honourpoint.in पोर्टल के जरिए विंग कमांडर एम.ए. अफराज से संपर्क कर सकते हैं.