हुसैन के आशिकों ने तलवारों के ' हाइदौस' कला से पेश किया करबला का जीवंत मंजर

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 18-07-2024
दिल्ली में आशूरा के मौके पर मातम करती नन्ही बच्ची/फोटो अमित कैप्चर के एक्स हैंडल से
दिल्ली में आशूरा के मौके पर मातम करती नन्ही बच्ची/फोटो अमित कैप्चर के एक्स हैंडल से

 

फरहान इसराइली साथ में आवाज द वाॅयस ब्यूरो, अजमेर/ नई दिल्ली

देश के तकरीबन हर शहर और कस्बे में मुहर्रम की 10 तारीख यानी आशूरा के दिन ताजिया और अलम जुलूस निकाला गया. इस दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए विशेष तैयारी की गई थी. दिल्ली में मुहर्रम जुलूस को लेकर सुरक्षा के पोख्ता इंतजाम किए गए हैं.

एनडीटीवी की एक खबर के अनुसार, देश के कई ऐसे गांव भी हैं जहां मुसलमान नहीं रहते, इसके बावजूद वहां रहने वाले हिंदू समुदाय के लोगों ने मुहर्रम की रस्में अदा कीं और ताजिया जुलूस निकाला.
 

सोशल मीडिया पर भी ताजिया और अलम जुलूस को लेकर कई तस्वीरें शेयर की गईं जिसमें जुलूस के साथ चलने वाले हाथों में तिरंगा लिए नजर आ रहे हैं. एक्स पर एक यूजर ने लिखा-‘घर के बाहर से निकल रहे मुहर्रम के जुलूस में लहराता तिरंगा.

मुहर्रम के जुूलस के बहाने कश्मीर में फिलिस्तीन का झंडा लहराया गया और फिलिस्तीनियों के समर्थन में नारे लगाए गए. एक ने सोशल मीडिया पर लिखा है-‘कश्मीर फिलिस्तीन के साथ खड़ा है.श्रीनगर जम्मू और कश्मीर में ऐतिहासिक मुहर्रम जुलूस निकाले गए.
 

इस बीच बिहार के कटिहार से खबर है कि पूर्णिया से मरीज दिखा कर लौट रही स्कॉर्पियो के चालक ने हॉर्न बजाकर जब रास्ता मांग तो मोहर्रम की उन्मादी भीड़ ने उन्हें प्रताड़ित किया. हालांकि, ऐसे वीडियो या तस्वीरों की आवाज द वाॅयस पुष्टि नहीं करता.
 

उधर, अजमेर से खबर है कि  जिले में मोहर्रम महीने की 10 तारीख,बुधवार को मुस्लिम समुदाय में मातम का माहौल रहा. दोपहर बाद ताजियों का जुलूस शुरू हुआ. ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के बड़े ताजिया का जुलूस रात दस बजे इमामबाड़ा से निकलेगा और गुरुवार अलसुबह झालरा में सैराब किया जाएगा.

दोपहर में अजमेर के अंदरकोट में तलवारों से 'हाइदौस' खेलते हुए डोला शरीफ निकाला गया. तारागढ़ और दौराई में  मातम के साथ ताजिया की सवारी निकाली गई. दोनों स्थानों पर शिया मुस्लिमों ने रोज़े रखे.

अंदरकोट में आशिकान-ए-हुसैन ने नंगी तलवारों से बड़ा हाइदौस खेल कर करबला की जंग का मंजर साकार किया. हाइदौस के दौरान तोप के गोले दागे जा रहे थे और अकीदतमंद विशेष आवाज निकाल रहे थे. जंग के मैदान की तरह ही बिगुल बजाया जा रहा था.

एक गोल घेरे में तलवारों की पैंतरेबाज़ी का प्रदर्शन करते हुए अकीदतमंद आगे बढ़ रहे थे. हाइदौस खेलने वालों को नियंत्रित रखने के लिए कार्यकर्ता लठ और हॉकी लेकर व्यवस्था बनाए हुए थे. पुलिस ने हाइदौस की वीडियोग्राफी कराई.


talwarbazi

बुधवार को मोहर्रम की 10 तारीख होने के कारण सुबह 8 बजे से लंगरखाना स्थित इमाम बारगाह, छतरी गेट सहित दरगाह परिसर के बाहर कई स्थानों पर बयान-ए-शहादत हुआ. दोपहर एक बजे बाद मन्नत वाला चांदी का ताजिया दरगाह के निजाम गेट पर रखा गया.

जौहर की नमाज के बाद ढोल ताशे बजाकर ताजियों की सवारी शुरू हुई. इस दौरान दरगाह के निजाम गेट के बाहर अखाड़े के लोगों द्वारा पट्टेबाज़ी की गई.अंजुमन के बड़े ताजिया को छोड़कर शेष सभी ताजिए बुधवार शाम सात बजे से पहले सैराब कर दिए जाएंगे.

अंजुमन का ताजिया की सवारी ख्वाजा साहब की दरगाह का आस्ताना बंद होने के बाद इमामबाड़ा से शुरू होगी, जो गुरुवार की सुबह 5 बजे झालरा पहुंचेगी. वहां ताजिया सैराब कर दिया जाएगा.

अजमेर के अंदरकोट में शुरू हुई हाइदौस की परंपरा पाकिस्तान में भी बड़े आदर के साथ निभाई जाती है. राजस्थान के अजमेर शहर को यह गौरव प्राप्त है कि ऐतिहासिक ढाई दिन के झोंपड़े के पास (अंदरकोट) से शुरू हुई हाइदौस की परंपरा सरहद पार पाकिस्तान में भी बड़ी आस्था के साथ निभाई जाती है.

मोहर्रम के मौके पर जिस तरह से अंदरकोट में मोहर्रम की 9 तारीख को रात में और 10 तारीख को दिन में हाइदौस खेल कर करबला की जंग का मंजर साकार करने की कोशिश की जाती है, वैसा ही मंजर पाकिस्तान के हैदराबाद सिंध में भी साकार किया जाता है.

देश के बंटवारे से पहले मोहर्रम के मौके पर विश्वभर में केवल अंदरकोट में ही हाइदौस खेला जाता था. बंटवारे के समय अंदरकोट के ही कुछ लोग पाकिस्तान चले गए. पाकिस्तान में जा बसे अंदरकोट बिरादरी के ही लोग अपने देश में हाइदौस खेलते हैं. पाकिस्तान में हैदराबाद सिंध के खाता चौक में यह हाइदौस होता है और ताराचंद अस्पताल के पास तक खेलते हुए जाते हैं.

पाकिस्तान में हाजी कमाल मोहम्मद, हाजी शरीफ जमील, हाजी आबिद हुसैन, मुंशी वजीरुद्दीन आदि ने हाइदौस शुरू किया था. जो अब भी हर साल होता है.  सोसायटी पंचायत अंदर कोटियान के पूर्व अध्यक्ष हाजी चांद खान बताते हैं कि बुजुर्गों से सुना है कि मराठों के काल से अंदरकोट में हाइदौस खेली जाती है.

लेकिन इसका कोई लिखित दस्तावेज अभी उपलब्ध नहीं है. हाजी चांद खान ने बताया कि नंगी तलवारों के साथ ही बिगुल भी बजाया जाता है.अंदरकोट में नंगी तलवारों से हाइदौस खेल कर करबला का मंजर साकार किया.


dola
 

डोले शरीफ की सवारी 

हाइदौस खेलने के साथ ही डोले शरीफ की सवारी निकाली जाती है. मोहर्रम की 9 तारीख की रात को ढाई दिन के झोपड़े से डोले शरीफ की सवारी शुरू होती है जो सीढ़ियों से होकर हताई चौक तक सवारी को लाया जाता है.

उसके बाद हाइदौस खेला जाता है. उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन की माता बीबी फातमा का यह डोला शरीफ होता है. बिरादरी के लोगों की डोला शरीफ में गहरी आस्था है. सवारी के दौरान बिरादरी के लोग डोला शरीफ की जियारत करते हैं और मन्नते मांगते हैं. बिरादरी के लोगों का अकीदा (विश्वास) है कि डोला शरीफ की जियारत से उनकी हर जायज मन्नत पूरी होती है.
 

सदर शामीर खान बताते हैं कि अगले दिन जोहर की नमाज के बाद परंपरागत रूप से तोप चलाई जाती है, उसके बाद डोला शरीफ की सवारी की शुरुआत होती है. हताई चौक से त्रिपोलिया गेट तक डोले शरीफ की सवारी पहुँचती है.

यहां से हाइदौस खेलने की भी शुरुआत होती है. आगे अलम (झंडे) रहता है और पीछे हाइदौस खेलते हुए सैकड़ों बिरादरी के लोग चलते हैं. डोले शरीफ की सवारी आम्बा बावड़ी तक जाती है जहां डोले शरीफ को सैराब (ठंडा) किया जाता है.