महायुती ने महाराष्ट्र में कैसे हासिल की रिकॉर्ड जीत, जानें विस्तार से

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 25-11-2024
How did Mahayuti achieve a record victory in Maharashtra, know in detail
How did Mahayuti achieve a record victory in Maharashtra, know in detail

 

आवाज द वाॅयस मराठी टीम

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुती की जीत अभूतपूर्व है. भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बारे में सभी अटकलों को चुनाव परिणामों ने खारिज कर दिया.महायुती और महाविकास आघाड़ी के बीच यह मुकाबला बेहद करीबी और प्रतिस्पर्धी होगा, ऐसा पिछले दो महीनों से बार-बार कहा जा रहा था.
 
लोकसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी की भारी सफलता के कारण अब महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन कुछ ही कदम दूर था. इसलिए, विशेष रूप से सत्तारूढ़ महायुती ने हर कदम सावधानी से उठाया. वास्तव में, आज महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का परिणाम पूरी तरह से और एकतरफा महायुती के पक्ष में रहा है.
 
महायुती की इस अभूतपूर्व सफलता के कई कारण हैं, जिनमें हिंदुत्व का प्रचार भी शामिल है. 1990 के विधानसभा चुनाव के बाद से महाराष्ट्र में किसी भी पार्टी ने अपने दम पर सौ से अधिक सीटें नहीं जीती थीं. भाजपा ने यह उपलब्धि 2014, 2019 और अब 2024 में हासिल की है. इस साल के परिणामों ने महाराष्ट्र की राजनीति पर लंबे समय तक हावी रही कांग्रेस के इतिहास में सबसे खराब प्रदर्शन को चिह्नित किया है.
 
बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना को उद्धव ठाकरे से लेकर खुद मुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे को ठाकरे की विचारधारा का असली उत्तराधिकारी साबित करना था. अजित पवार के सामने भी यही चुनौती थी. उन्होंने शरद पवार से एनसीपी को लेकर सरकार में शामिल हो गए थे.
 
उद्धव ठाकरे और शरद पवार, उनके समर्थकों के साथ, शिंदे और अजित पवार की कार्रवाइयों को लगातार गद्दारी करार देते रहे. इसलिए, शिंदे और अजित पवार के सामने गद्दारी के कलंक को मिटाने और अपनी पार्टी की वैधता साबित करने की दोहरी चुनौती थी.
 
भाजपा के 125 सीटों के आंकड़े को पार करना, एकनाथ शिंदे की शिवसेना का महाविकास आघाड़ी से अधिक सीटें जीतना और आगामी विधानसभा का बिना विपक्ष के गठन होना, ये सभी रिकॉर्ड महायुती की जीत को अभूतपूर्व बनाते हैं.
 
शिंदे और अजित पवार पार्टी को जीत दिलाने और सत्ता में बैठने का काम कर रहे हैं. देश के राजनीतिक इतिहास में ऐसी उपलब्धि पहले कभी नहीं हुई है. महाराष्ट्र में तो ऐसा कभी नहीं हुआ. यह भी महायुती की अभूतपूर्व जीत का एक नया रिकॉर्ड है.
 
महाराष्ट्र के इन परिणामों का विश्लेषण लंबे समय तक होता रहेगा. लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन के खिलाफ लहर और उसके बाद के केवल छह महीनों में मतदाताओं की बदलती भावना कई शोधकर्ताओं के अध्ययन का विषय बनेगी. अगर महाराष्ट्र के मतदाताओं के मन में महाविकास आघाड़ी के प्रति इतना असंतोष था, तो वह दिखाई क्यों नहीं दिया, यह सवाल भी आघाड़ी के नेताओं को सताता रहेगा.
 
महायुती ने जून से नवंबर के बीच महाराष्ट्र में कौन सी जादू की छड़ी घुमाई कि महाविकास आघाड़ी का सफाया हो गया, इस पर चर्चा होती रहेगी. चुनावों में बढ़ते पैसे के बेहिसाब उपयोग पर भी आलोचना होती रहेगी. कल्याणकारी योजनाओं और चुनावी राजनीति के बीच संबंध को बार-बार जांचा जाएगा. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को भी संदेह के केंद्र के रूप में देखा जाएगा.
 
संभावित विश्लेषणों के संभावित कोण पहले से ही महायुती की अभूतपूर्व जीत की ओर इशारा करते हैं. महाराष्ट्र ने 1995 से गठबंधन सरकार को स्वीकार किया है. 1990 के बाद महाराष्ट्र ने एकल पार्टी को बहुमत नहीं दिया है. उसी समय, ध्रुवीकरण की पारंपरिक चौखट को तोड़ने वाले गठबंधन भी 2019 से पहले नहीं देखे गए थे. उद्धव ठाकरे ने 2019 में कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाई, जो मतदाताओं के लिए चौंकाने वाला था.
 
पहले के झटके को पचा चुके महाराष्ट्र को 2023 में अजित पवार ने एनसीपी को लेकर भाजपा के साथ सरकार में शामिल होकर एक नया झटका दिया था. 2019 से 2024 के बीच महाराष्ट्र ने इतना राजनीतिक अस्थिरता और नकारात्मकता देखी है कि 2024 में कोई भी नई राजनीतिक संरचना अस्तित्व में आई होती, तो भी कोई बड़ा झटका नहीं लगता. हालांकि, महायुती ने जिस ताकत से सत्ता प्राप्त की, उसने सभी संभावित संभावनाओं को समाप्त कर दिया. इसलिए, यह कैसे हुआ, इसका विश्लेषण होता रहेगा.
 
महायुती, विशेष रूप से भाजपा द्वारा किए गए सूक्ष्म नियोजन को चुनावी सफलता का श्रेय न देना संकीर्णता होगी. लोकसभा चुनाव में भारी हार के बाद इस पार्टी ने तीन प्रमुख काम किए. पहला, उन्होंने अध्ययन किया कि लोकसभा चुनाव में किन विधानसभा क्षेत्रों में किन कारणों से पिछड़ गए. उन्होंने नेतृत्व की झलक को किनारे रखकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और पार्टी के कैडर की मदद ली, आत्मचिंतन किया.
 
दूसरा, उन्होंने पहले भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और फिर तुरंत अजित पवार को साथ लिया, इस आरोप का सामना करते हुए उत्पन्न हुई हीन भावना को किनारे रखा. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को समझाना शुरू किया कि अजित पवार को साथ लेना आवश्यक था. चुनावों के मुहाने पर मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाया. तीसरी महत्वपूर्ण बात भाजपा ने यह की कि सीट बंटवारे पर अड़े नहीं रहे. इन तीनों का एक ही परिणाम था. महायुती विधानसभा चुनाव में विवादों और शिकायतों को किनारे रखकर उतरी।
 
इसके विपरीत, महाविकास आघाड़ीने बड़बोले नेताओं को खुला छोड़ दिया. मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर चर्चा की. लाडकी बहिन योजना शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रिय हो रही थी, लेकिन योजना के भविष्य पर संदेह उठाए. सीट बंटवारे को जितना हो सके खींचा. महायुती में भी वाचाल नेता हैं; लेकिन चुनाव के दौरान उनके मुंह पर ताला लगा था. अनावश्यक नाराजगी में मध्य स्तर के नेता फंसते गए. इसका परिणाम यह हुआ कि तीनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के एक साथ खड़े होने की जगह सिकुड़ती गई.
 
चुनाव में एक-एक गाव और मोहल्ले में जाकर लोगों से मिलकर अपनी बात रखनी चाहिए थी. इसके बजाय, नेता लोकसभा की तरह एक ही मुद्दे की तलाश में रहे. तब तक प्रचार का समय समाप्त हो गया. साथ ही मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में संगठित मराठा आंदोलन का राजनीतिक मोड़ लेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना-राज ठाकरे की नई चुनाव-नई नीति और वंचित बहुजन आघाड़ी का गिरता राजनीतिक भविष्य भी परिणाम पर प्रभाव डालता रहा.
 
अब महायुती महाराष्ट्र में मजबूत बहुमत के साथ सरकार बनाएगी. तब चुनावी वादों और चुनाव पूर्व की स्थिति की स्पष्ट समझ नई सरकार को होनी चाहिए. कृषि से लेकर आरक्षण और शिक्षा से लेकर रोजगार तक के मुद्दों को नजरअंदाज करके चुनावी जीत के जश्न में महाराष्ट्र को नहीं चलाया जा सकता. यह बहुमत निर्णय क्षमता दिखाने के लिए दिया गया है, इसे मानकर महायुती सरकार को काम करना चाहिए.
 
नई सरकार पर महापालिकाओं और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के चुनावों का कानूनी रास्ता साफ करने की जिम्मेदारी भी होगी.
 
केवल लाडकी बहिन, लाडका भाई जैसी योजनाओं के बल पर महाराष्ट्र को विकास के रास्ते पर अग्रणी नहीं रखा जा सकता, यह नई सरकार को समझना चाहिए. यहां का उद्योग-व्यापार सुरक्षित और यहीं रहना चाहिए, इसके लिए सरकार को हर क्षेत्र को विश्वास देना चाहिए. वादों की बौछार करते समय अपेक्षाओं का बोझ उठाने की हिम्मत भी सरकार को दिखानी होगी.