भारत में 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए धर्मगुरुओं की ऐतिहासिक बैठक

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 21-03-2025
Historical meeting of religious leaders to end child marriage in India by 2030
Historical meeting of religious leaders to end child marriage in India by 2030

 

आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली

भारत में बाल विवाह की कुप्रथा के खात्मे के लिए एक ऐतिहासिक पहल की शुरुआत हुई है. 10 धर्मों और आस्थाओं के 30 प्रमुख धर्मगुरुओं ने एक बैठक में भाग लिया, जिसमें 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने के लिए राष्ट्रस्तरीय फोरम बनाने की संभावना पर चर्चा की गई.

 

 

इस बैठक का आयोजन इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन (आईसीपी) ने किया था, जो जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन संगठन का सहयोगी है.  बैठक में धर्मगुरुओं ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता फैलाने, और कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन में सक्रिय सहयोग देने की दिशा में चर्चा की.

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धर्मगुरुओं का साथ: बाल विवाह के खिलाफ ऐतिहासिक एकजुटता

बैठक में विभिन्न धर्मों के प्रमुख धार्मिक नेताओं ने बाल विवाह के खात्मे के लिए एकजुट होने का संकल्प लिया. इन धर्मगुरुओं ने सर्वसम्मति से तय किया कि कोई भी धर्म बाल विवाह का समर्थन नहीं करता, और किसी भी धर्म के पुरोहित या धार्मिक नेता बाल विवाह संपन्न नहीं कराएंगे.

इसके अलावा, धर्मगुरुओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि बाल विवाह को खत्म करने के लिए धर्म और आस्था के प्रभाव का इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि जनमानस की मानसिकता में बदलाव लाया जा सके.

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक भुवन ऋभु ने इस बैठक की अहमियत को रेखांकित करते हुए कहा, "सभी धर्मों के धर्मगुरुओं का साथ आना बाल विवाह के खात्मे की दिशा में एक ऐतिहासिक और परिवर्तनकारी कदम है.

बाल विवाह अपराध है और अनैतिक है। यह बच्चों से बलात्कार जैसा है." उन्होंने आगे कहा कि यह वैश्विक आंदोलन का हिस्सा बन चुका है, और अब सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि बाल विवाह मुक्त विश्व की दिशा में भी हम आगे बढ़ रहे हैं.

धर्मगुरुओं की भूमिका

राम कृष्ण मिशन के स्वामी कृपाकरनंद ने इस मुद्दे पर अपने विचार रखते हुए कहा, "बाल विवाह एक शैतानी प्रथा है जो सभ्यता के प्रारंभ से ही चली आ रही है. इसे समाप्त करने के लिए अब समाज और समुदाय को जागरूक करने के प्रयास किए जा रहे हैं." उन्होंने यह भी कहा कि बाल विवाह के खात्मे के लिए सशक्तीकरण और जागरूकता की आवश्यकता है.

डाइसिस ऑफ फरीदाबाद के आर्क बिशप मार कुरियाकोसे भरानीकुलांगारा ने भी बाल विवाह के खिलाफ अभियान को समर्थन देते हुए कहा, "विवाह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है. एक बच्चा माता-पिता की जिम्मेदारी का बोझ नहीं उठा सकता." उन्होंने समुदायों को सशक्त बनाने और विवाह पंजीकरण को अनिवार्य बनाने की बात की.

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मुस्लिम समुदाय का समर्थन

इस पहल को आल इंडिया इमाम आर्गनाइजेशन के सचिव फैजान मुनीर और मदरसे के प्रिंसिपल मुफ्ती असलम ने भी समर्थन दिया. उन्होंने कहा कि इस्लाम में बाल विवाह की अनुमति नहीं है, और यह एक गंभीर अपराध है.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह संदेश पूरे देश के समुदायों और माता-पिता तक पहुंचना चाहिए ताकि वे बाल विवाह को न मंजूरी दें और न प्रोत्साहित करें.

ब्रह्मकुमारी की भूमिका

ओम शांति रिट्रीट की ब्रह्मकुमारी बहन हुसैन ने भी इस पहल का समर्थन करते हुए कहा कि समाज में जड़े जमाए इस घृणित प्रथा के खात्मे में धर्म और आस्था की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है.

राष्ट्रीय और क्षेत्रीय फोरम का गठन

बैठक में यह भी तय किया गया कि राष्ट्रीय स्तर के अलावा, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर भी फोरम गठित किए जाएं, ताकि उन जिलों और राज्यों में ‘चाइल्ड मैरेज फ्री इंडिया’ अभियान को जमीनी स्तर पर पहुंचाया जा सके, जहां बाल विवाह की दर अधिक है.

इसके साथ ही यह भी निर्णय लिया गया कि धार्मिक संगठनों के स्थानीय नेताओं का सहयोग लिया जाएगा, ताकि जागरूकता अभियान को सशक्त किया जा सके.

बाल विवाह के खिलाफ सशक्त कदम

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के 250 से अधिक सहयोगी संगठन देश के 416 जिलों में मंदिरों, मस्जिदों, चर्चों और अन्य पूजा स्थलों के माध्यम से बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता फैला रहे हैं.

अब तक इन संगठनों ने 2,50,000 बाल विवाह रुकवाए हैं. यह संगठन स्थानीय धार्मिक नेताओं के सहयोग से बाल विवाह को रोकने की शपथ दिलवा रहे हैं, जिससे यह अभियान अधिक प्रभावी बन रहा है.

बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

भारत में बाल विवाह को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह की रोकथाम और बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए), 2006 पर प्रभावी दिशानिर्देश जारी किए हैं.

इस दिशा में यह पहल महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है, क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप भारत की प्रतिबद्धता को और मजबूती प्रदान करती है, जिसके तहत 2030 तक बाल विवाह को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य है.

बाल विवाह के खिलाफ धर्मगुरुओं की इस एकजुटता से एक नई आशा का संचार हुआ है, और यह दर्शाता है कि समाज के सभी वर्गों को इस मुद्दे पर एकजुट होने की आवश्यकता है.

धर्मगुरुओं के सहयोग से ‘चाइल्ड मैरेज फ्री इंडिया’ अभियान को सशक्त बनाने और इसे जमीनी स्तर तक फैलाने का प्रयास एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे भारत में बाल विवाह की कुप्रथा को समाप्त करने में मदद मिल सकती है.