मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
आध्यात्मिक संत, हजरत निजामुद्दीन औलिया चिश्ती का यौम ए वफात के अवसर पर आयोजित पांच दिवसीय 720 वां उर्स पूरे उत्साह के साथ खत्म हो गया. उर्स को लेकर दरगाह प्रशासन की तरफ से विशेष पंडाल लगाकर दरगाह को सजाया गया था, साथ ही रंग बिरंगे बिजली की रोशनी से इसकी खूबसूरती में इजाफा था.
उर्स समापन के मौके पर दरगाह के इमाम इस्लाम निजामी ने देश के उज्जवल भविष्य, शांति, फलस्तीन में अमन स्थापित के लिए दुआ कराई, जिसमें सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया. आखरी रोज दिल्ली सरकार के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री इमरान हुसैन शामिल हुए और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरफ से पारंपरिक चादर चढ़ाई. इस दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री की तरफ से दिल्ली और देशवासियों के लिए सुख-समृद्धि, अमन-चैन और भारत को दुनिया का नंबर 1 देश बनाने की दुआ मांगी.
पाकिस्तान समेत विदेश से भी पहुंचे थे जायरीन
कव्वाली की श्रृंखला के जरिए औलिया हिंद हजरत निजामुद्दीन को शानदार श्रद्धांजलि दी गई. अंत में लंगर बांटा गया और दुआएं दी गईं. मालूम हो कि इस साल उर्स समारोह में देश और दुनिया के कोने-कोने से जायरीन और श्रद्धालु शामिल हुए, जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत कई देशों से भी जायरीनों पहुंचे.
दरगाह हज़रत निज़ामुद्दीन के संरक्षक काशिफ़ अली निज़ामी ने बताया कि इस साल भी पाकिस्तान से तीर्थयात्री आए हैं, जिनकी संख्या करीब 130 था, इनमें से ज्यादातर पहाड़गंज के होटलों में ठहरे हुए थे. हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का वार्षिक उर्स रबी-उल-सानी के महीने की 16 तारीख को शुरू होता है और पांच दिनों तक चलता है.
उनका संदेश समाज निर्माण के साथ-साथ मानवता का मार्ग प्रशस्त
इस अवसर पर खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री इमरान हुसैन ने कहा कि सूफी संतों का योगदान न सिर्फ हमारे सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करता है बल्कि उनके विचार भी अनुकरणीय होते हैं. निजामुद्दीन औलिया आज भी लोगों के दिलो दिमाग में एक खास मुकाम बनाए हुए हैं.
आज भी उनके विचार और आदर्श बड़ी संख्या में लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. उर्स हजरत निजामुद्दीन औलिया के जीवन और विचारों का उत्सव है. उनके संदेश समाज के निर्माण के साथ-साथ मानवता का मार्ग प्रशस्त करते हैं.
1 नवंबर को हुआ था उर्स की शुरुआत
मालूम हो कि 1 नवंबर को, नात और कुरान की तिलावत और उर्स समारोह की औपचारिक शुरुआत की गई थी. गुरुवार को बड़ी रात के मौके पर रात आठ बजे कुरान की तिलावत के बाद रुजा शरीफ में विशेष नमाज अदा की गई, फिर लंगर व तबरुक का आयोजन किया गया. जबकि तीन नवंबर शुक्रवार को सुबह ग्यारह बजे कुरान की तिलावत शुरू हुई.
इसी तरह शनिवार की सुबह कुरान की तिलावत कर दुनिया भर में अमन-चैन और खुशहाली की दुआ की गई और पूरी रात कव्वाली हुई.
विभिन्न धर्मों के लोग यहां माथा टेकते हैं
अलतमश निज़ामी ने आगे बताया कि इस साल भी उर्स समारोह में भाग लेने के लिए पाकिस्तान से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आ रहे हैं. दरगाह के एक अन्य सेवक सैयद ओमान निज़ामी ने कहा कि उर्स के अवसर पर, विभिन्न धर्मों और सभी स्वभावों के लोग यहां मत्था टेकने और सिर झुकाने आते हैं.
कौन थे हजरत निजामुद्दीन औलिया
हजरत निजामुद्दीन औलिया का जन्म 1238 में उत्तर प्रदेश के बदायूं नामक एक छोटे से स्थान पर हुआ था. उन्होंने चिश्ती संप्रदाय का प्रचार और प्रसार करने के लिए दिल्ली की यात्रा की थी. यहां वह ग्यारसपुर में बस गए और लोगों को प्रेम, शांति और मानवता का पाठ पढ़ाया.
निजामुद्दीन औलिया ने हमेशा यह प्रचार किया कि सभी धर्मों के लोगों को अपनी जाति, पंथ या धर्म से बेपरवाह होना चाहिए. उनके जीवनकाल के दौरान हजरत नसीरुद्दीन महमूद चिराग देहलवी और अमीर खुसरो सहित कई लोग उनके अनुयायी बने.
हजरत निजामुद्दीन के वंशज करते हैं देखभाल
निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु 3 अप्रैल, 1325 को हुई, इसके बाद तुगलक वंश के प्रसिद्ध शासक मुहम्मद बिन तुगलक ने हजरत निजामुद्दीन औलिया के दरगाह का निर्माण किया. वह हजरत निजामुद्दीन का बहुत बड़ा अनुयायी था. कई सौ सालों के बाद भी आज हजरत निजामुद्दीन के वंशज ही दरगाह की देखभाल करते हैं