मुहर्रम की ‘ मेहंदी’ देखी है आपने

Story by  सेराज अनवर | Published by  onikamaheshwari | Date 15-07-2024
Muharram of Bihar: Gaya is famous for the boat-shaped mehndi
Muharram of Bihar: Gaya is famous for the boat-shaped mehndi

 

सेराज अनवर / पटना
 
मुहर्रम का महीना और गया के कश्तीनुमा मेहंदी का ज़िक्र न हो ऐसा हो नहीं सकता.बिहार का यह प्रमुख शहर सातवीं की रात मेहंदी जुलूस को लेकर काफी मशहूर है.इस रात कर्बला से निकलने वाला जुलूस में मेहंदी को देखने दूर-दराज़ से लोग आते हैं.

इसकी वजह है, देश में कश्तीनुमा मेहंदी सात मुहर्रम को सिर्फ गया के कर्बला से ही निकलती है.इस कारण यहां की मेहंदी काफी खास है.हजरत इमाम हुसैन के भतीजे हजरत इमाम क़ासिम की याद में सात मुहर्रम को शहर के कर्बला से टावर चौक तक निकलने वाली कश्तीनुमा मेहंदी की जियारत करने बिहार से ही नहीं बल्कि झारखंड, यूपी और बंगाल से जायरीन गया पहुंचते हैं. 
 
 
अकीदत व एहतराम के साथ जायरीन कश्तीनुमा मेहंदी का दीदार करते हैं.मुहर्रम का चांद नज़र आने के साथ ही मेंहदी बनाने का काम शुरू हो जाता है.मेहंदी ताज़िया की शक्ल का होता है लेकिन,कश्तीनुमा होने से इसकी ख़ूबसूरती देखते बनती है.कहते हैं कि सूरज की रौशनी पड़ने से पहले तक मेहंदी हरी-भरी रहती है.सूर्य का प्रकाश पड़ते ही मेहंदी मुरझा जाती है. 
 
हज़रत क़ासिम की याद में निकलती है मेहंदी
 
मुहर्रम पर मेहंदी हजरत कासिम अलैहिसलाम की याद में निकाली जाती है.शहर के इक़बाल नगर स्थित कर्बला के खादिम डॉ. सैयद शाह शब्बीर आलम कादरी आवाज़ द वायस से बातचीत में कहते हैं कि कर्बला की जंग से एक रात पहले हजरत इमाम क़ासिम को दुल्हा बनाया गया था और दुल्हा बनकर मैदान-ए-जंग में शहीद हो गए. उनकी इस शहादत पर सात मुहर्रम को मेहंदी सेहरा से सजा हुआ गाजे-बाजे के साथ कर्बला से निकलती है. 
 
 
हजरत इमाम कासिम के पिता हजरत इमाम हसन है.इमाम हसन,हज़रत इमाम हुसैन के भाई और पैग़म्बर इस्लाम हज़रत मोहम्मद के नवासे थे.उनके ही बेटे हज़रत क़ासिम थे जो कर्बला में मुहर्रम की सात तारीख़ को शहीद कर दिये गये.उनकी ही याद में गया में मेहंदी निकलती है जो बिहार के मुहर्रम का ख़ास प्रस्तुति है.
 
कर्बला से निकलने वाली मेहंदी पंचायती अखाड़ा, मोरियाघाट होते हुए किरण सिनेमा के पास जब पहुंचती है तो यहां राय साहब के फाटक के पास परंपरा अनुसार ज़हर का प्याला का फातिहा किया जाता है.इसके बाद मेहंदी आगे बढ़ती है.यह रिवायत सदियों से चली आ रही है.कर्बला की रौनक़ मुहर्रम के चांद देखने से ही शुरू हो जाती है.
 
पांच तारीख को मिट्टी बैठायी जाती है.पवित्र स्थान से मिट्टी लाने लोग ढोल-ताशा के साथ अखाड़ा खेलते रात में निकलते हैं.मिट्टी लाने के बाद इमामबाड़ा पर ढक दी जाती है.फिर यहीं पर मुहर्रम की नौ तारीख़ को ताज़िया बैठायी जाती है.सात तारीख की अर्धरात्रि में कर्बला से मेहंदी निकलती है.मेहंदी ताज़ियाना होती है.बिहार में मेहंदी सिर्फ़ गया में निकलती है.मेहंदी जुलूस टावर चौक पर आकर खत्म होती है.कहते हैं कि सूरज की रौशनी पड़ने से पहले तक मेहंदी हरी-भरी रहती है.सूर्य का प्रकाश पड़ते ही मेहंदी मुरझा जाती है. 
 
 
मेहंदी बनती कैसे है?
 
एक मुहर्रम से मेहंदी बनना शुरू होता है. मखमल, शीशा, एलईडी लाइट, चांदी का तार, चेमली व बेला फूल के सेहरा से सजाया जाता है.शब्बीर आलम कादरी बताते हैं कि पूर्वजों ने जो स्ट्रक्चर मेहंदी के लिए रखा वह कश्ती नूह से लिया गया है.ह
 
जरत मोहम्मद सल्लाह अलैह वासल्लम की मशहूर हदीस में है कि मेरे अहले बैत (घर वाले) मिसले कश्ती ऐ नूह (हजरत नूह की कश्ती की तरह) है जो इस पर सवार होता है उसे निजात मिलेगी.यही मेहंदी की शक्ल है.वह बताते हैं कि यहां की मेहंदी पर रिसर्च के लिए तुर्की से भी स्कॉलर आ चुके है. 
 
स्कॉलर भी यह देख कर हैरान रह गये कि आखिर यहां की मेहंदी कश्तीनूमा क्यूं है? शब्बीर आलम कादरी कहते हैं कि मुहर्रम पर कर्बला से मेहंदी हजरत इमाम हुसैन के भतीजे हजरत इमाम क़ासिम की याद में निकलती है. 
 
 
इस बार भी 14 जुलाई की रात 12 बजे कर्बला से मेहंदी निकलेगी.कर्बला के खादीम ने बताया कि मेहंदी की जियारत व मन्नत के लिए कई राज्यों से अकीदतमंद गया आते हैं.इसमें झारखंड, यूपी, बंगाल, उड़ीसा व दिल्ली के लोग शामिल हैं.मेहंदी के दिन मांगी गई मन्नतें पूरी होती हैं.
 
उन्होंने बताया कि जब मेहंदी वापस कर्बला पहुंचती है तो यहां सेहरा में लगे सभी फूलों को अकींदत और एहतराम के साथ गोदी में रखा जाता है, फिर इसे दफन किया जाता है. किरण सिनेमा से केपी रोड, बाम्बे बाजार, कोतवाली रोड, जीबी रोड, आजाद पार्क, तुतबाड़ी होते हुए मेहंदी कर्बला वापस पहुंचती है.
 
मेहंदी जिस रूट से गुजरती है वहां रात,दिन में तब्दील हो जाती है.बाजार पूरी तरह से सजा होता है.भारी मजमा और मेला लगा रहता है.एक तरह से यौम अशूरा दस मुहर्रम से भी बड़ा कार्यक्रम सात की रात मेहंदी जुलूस का होता है.
 
इसमें शामिल होने के लिए शहर के विभिन्न इमामबाड़े से जुड़े अकीदतमंद आते हैं.मेहंदी को सजाने और जुलूस की तैयारी अभी से चल रही है. पैकार भी मेहंदी की जियारत करते हैं.राय साहब के फाटक के पास 'जहर का प्याला' का फातिहा एक क़दीम रस्म है.मुहर्रम की दस तारीख को शहर में ताजिया जुलूस निकलता है, इसमें भी भारी संख्या में अकीदतमंद शामिल होते हैं मगर मेहंदी की बात ही अलग है.