क्या महाराष्ट्र में अप्रासंगिक हो गई है एमआईएम की राजनीति?

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 07-12-2024
Has MIM's politics become irrelevant in Maharashtra?
Has MIM's politics become irrelevant in Maharashtra?

 

शाहबाज़ एम. फारूक मनियार

तेलंगाना की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन पार्टी की स्थापना 1927 में हुई थी.गठन के समय पार्टी का नाम 'मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन' (एमआईएम) था.पार्टी के गठन में नवाब महमूद नवाज खान किलेदार ने प्रमुख भूमिका निभाई.अब्दुल वाहिद ओवैसी ने 1958 में हैदराबाद राज्य के भारत में विलय के बाद पार्टी को पुनर्जीवित किया और पार्टी का नाम बदलकर 'ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन' (एआईएमआईएम) कर दिया.

अब्दुल वाहिद ओवेसी के बाद उनके बेटे सुल्तान सलाहुद्दीन ओवेसी ने पार्टी की कमान संभाली.मौजूदा पार्टी प्रमुख और सांसद असदुद्दीन औवेसी सुल्तान सलाहुद्दीन ओवेसी के बेटे हैं.एमआईएम की राजनीतिक विचारधारा मुख्य रूप से मुस्लिम मुद्दों पर केंद्रित है.पुराने शहर हैदराबाद तक सीमित यह पार्टी असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व में अन्य राज्यों में फैल गई.

नांदेड़ नगर निगम चुनाव के जरिए एमआईएम ने महाराष्ट्र में प्रवेश किया.2012 के नांदेड़ नगर निगम चुनाव में ग्यारह एमआईएम नगरसेवक चुने गए.इसके अलावा, 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में, पहले प्रयास में दो एमआईएम विधायक चुने गए.उस समय इम्तियाज जलील ने औरंगाबाद मध्य विधानसभा क्षेत्र से और वारिस पठान ने बायकुला विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की थी.

राज्य में एमआईएम का प्रदर्शन जारी रहा और विभिन्न नगर निगम चुनावों में पार्टी के नगरसेवक चुने गए.औरंगाबाद, मुंबई, नांदेड़, सोलापुर, अमरावती, धुले आदि.एमआईएम ने शहरों में अपना दबदबा कायम कर लिया. 2019 के लोकसभा चुनाव में इम्तियाज जलील वंचित बहुजन अघाड़ी के साथ गठबंधन के कारण औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी बने.

2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में फारूक शाह धुले शहर निर्वाचन क्षेत्र से और मुफ्ती इस्माइल कासमी मालेगांव निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बने.लेकिन राज्य में एमआईएम की सत्ता ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई. थोड़े ही समय में पार्टी की नीति में कमियाँ और पार्टी के विकास की सीमाएँ तीव्रता से महसूस होने लगीं.

नांदेड़ नगर निगम में, जहां पार्टी ने 2012 में महाराष्ट्र में अपनी शुरुआत की, एमआईएम 2017 में एक भी पार्षद नहीं जीत सकी.एमआईएम ने 2014 में जीती हुई औरंगाबाद मध्य और भायखला दोनों विधानसभा सीटें खो दीं.औरंगाबाद लोकसभा सीट 2019 में जीते, 2024 में हार गए.धुले सिटी विधानसभा सीट 2019 में जीती, 2024 में हार गई.पार्टी ने 2024 विधान सभा में 16 सीटों पर चुनाव लड़ा.लेकिन वे सिर्फ एक सीट मालेगांव मध्य जीतने में कामयाब रहे.

मालेगांव को छोड़कर, एमआईएम महाराष्ट्र में पहले जीती हुई एक भी लोकसभा या विधान सभा सीट वापस नहीं जीत सकी.2024 के विधानसभा चुनावों में, एमआईएम 162 वोटों के मामूली अंतर से मालेगांव सीट बरकरार रखने में कामयाब रही.इसलिए, महाराष्ट्र में मुस्लिम राजनीति को एक अलग मोड़ देने के अवसर के बावजूद एमआईएम की उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन करने में विफलता और इस विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार पर एक विश्लेषण की आवश्यकता है.

एक सीमित मुस्लिम-बहुल विधानसभा क्षेत्र

हालाँकि महाराष्ट्र में मुस्लिम आबादी 11.5 प्रतिशत है, लेकिन मुस्लिम-बहुल निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बहुत सीमित है.पांच विधानसभा क्षेत्रों मालेगांव सेंट्रल (80%), शिवाजीनगर मानखुर्द (53%), भिवंडी पूर्व (51%), मुंबादेवी (50%), भिवंडी पश्चिम (50%) को छोड़कर अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में 50 प्रतिशत से कम मुस्लिम मतदाता हैं.शेष निर्वाचन क्षेत्रों में से केवल चार निर्वाचन क्षेत्रों में 40 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं.

तेलंगाना में हैदराबाद के पुराने शहर में मुस्लिम-बहुल निर्वाचन क्षेत्रों का अनुपात अधिक (55 प्रतिशत से अधिक) है.महाराष्ट्र में वे उस हद तक नहीं हैं. इसलिए, एमआईएम के पास महाराष्ट्र में ऐसा माहौल नहीं है कि वह मुख्य रूप से मुस्लिम वोटों का राजनीतिकरण करके उन्हें जीत सके.इसलिए केवल मुस्लिम वोटों के आधार पर मालेगांव मध्य सभा सीट को छोड़कर महाराष्ट्र की अन्य सीटें जीतना बहुत मुश्किल है.

उत्तर भारत में मुस्लिम-बहुल शिवाजीनगर-मानखुर्द, भिवंडी पूर्व और भिवंडी पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र मुस्लिम-बहुल निर्वाचन क्षेत्र हैं.इस संसदीय क्षेत्र में समाजवादी पार्टी की अच्छी मौजूदगी है. शिवाजीनगर-मानखुर्द और भिवंडी पूर्व निर्वाचन क्षेत्रों में समाजवादी पार्टी के पास पहले से ही मुस्लिम विधायक हैं.इसलिए महाराष्ट्र में एमआईएम पार्टी के बढ़ने की गुंजाइश बहुत कम है.

हिन्दू मत का मुस्लिम मत से ध्रुवीकरण

एमआईएम की राजनीति मुख्यतः भावुकता और मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण पर आधारित है.महाराष्ट्र के कुछ मुस्लिम-बहुल विधानसभा क्षेत्रों में, एमआईएम पार्टी के उम्मीदवारों का इतिहास रहा है कि वे केवल तभी जीतते हैं जब मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हो और विपक्षी वोट विभाजित हो.मालेगांव के अपवाद के साथ, हम औरंगाबाद मध्य, भायखला और धुले शहर निर्वाचन क्षेत्रों में यह पैटर्न देखते हैं.

लेकिन यह पैटर्न केवल एक बार ही काम करता है.अगले चुनाव में एमआईएम उम्मीदवार वोट संख्या बढ़ने के बावजूद हार जाते हैं.हार का मुख्य कारण विपक्षी उम्मीदवार की पार्टी के प्रति हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण और टाला जा सकने वाला वोट विभाजन है.अगर हम औरंगाबाद मध्य,भायखला और धुले शहर विधानसभा क्षेत्रों के पिछले दो-तीन चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो हमें इसका एहसास होगा.

2014 में, शिवसेना और भाजपा के बीच वोट विभाजन में एमआईएम के इम्तियाज जलील ने औरंगाबाद सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की.हालाँकि, 2019 और 2024 के चुनावों में एमआईएम के वोटों में वृद्धि के बावजूद हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के कारण एमआईएम के नसीर सिद्दीकी हार गए.

2014 में भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों के बीच विभाजन में एमआईएम के वारिस पठान भायखला निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे.लेकिन 2019 और 2024 के चुनाव में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के कारण एमआईएम उम्मीदवार हार गए.एमआईएम के फारूक शाह 2019 में शिवसेना, लोक संग्राम और अन्य दलों के बीच विभाजन में धुले शहर निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे.लेकिन 2024 के चुनाव में एमआईएम के वोटों में बढ़ोतरी के बावजूद हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के कारण एमआईएम के फारूक शाह हार गए.

कमजोर पार्टी संगठन

एमआईएम को शुरुआती दिनों में महाराष्ट्र में अच्छी सफलता मिलने के बाद उसे मजबूत होने का मौका मिला.लेकिन पार्टी ने ये मौका गंवा दिया. राज्य, जिला और तालुका स्तर पर पार्टी का सक्षम संगठन नहीं बन पाया. कोई अलग पार्टी लाइन नहीं है. पदाधिकारियों की नियुक्तियां समय पर नहीं होतीं.

इम्तियाज जलील जब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे तो कहा जाता था कि उनका फोकस सिर्फ औरंगाबाद जिले तक ही सीमित था. यह भी आरोप है कि उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में पार्टी संगठन का नेटवर्क बढ़ाने के प्रयास नहीं किये.चुनाव जीतने के लिए पार्टी को पदाधिकारियों और प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की फौज की जरूरत होती है.

चूंकि पार्टी का संगठन ही कमजोर है, इसलिए पार्टी में प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की कतार नहीं बन पाई है. पार्टी नेता इस मुगालते में हैं कि वे ओवेसी बंधुओं के भावनात्मक भाषणों के आधार पर चुनाव जीत जायेंगे. कई बार भावनाओं के आधार पर चुनाव तो जीते जा सकते हैं, लेकिन स्थायी राजनीति कायम नहीं रह सकती.टिकाऊ राजनीति पार्टी संगठन और पार्टी नीति पर आधारित है.महाराष्ट्र में एमआईएम पार्टी के पास फिलहाल इन दोनों चीजों का अभाव है.

व्यक्ति केन्द्रित राजनीति

एमआईएम के पास महाराष्ट्र में कोई सक्षम पार्टी संगठन नहीं है.इसलिए, उनकी राजनीति मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों के कुछ व्यक्तियों के इर्द-गिर्द केंद्रित है.उदाहरण के लिए, औरंगाबाद में इम्तियाज जलील, मुंबई में वारिस पठान, नांदेड़ में मोइन सैयद, सोलापुर में फारूक शाब्दी, मालेगांव में मुफ्ती इस्माइल, धुले में फारूक शाह, पिंपरी चिंचवड़ में रुहिनाज शेख आदि.महाराष्ट्र में एमआईएम की राजनीति केवल कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित रही है, जिससे महाराष्ट्र में पार्टी का विकास सीमित हो गया है.

कार्यकर्ताओं में निराशा

महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाय के मुद्दों पर काम करने वाले कुछ सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी उम्मीद के साथ एमआईएम में शामिल हुए थे.महाराष्ट्र में मुस्लिम मुद्दों के प्रति उत्साही लेखक-विचारक जावेद पाशा कुरेशी भी पार्टी में शामिल हुए.पार्टी ने उन्हें प्रदेश प्रवक्ता का पद भी दिया. लेकिन पार्टी ने उन्हें कभी भी मीडिया के जरिए अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया. जैसे ही उन्हें एहसास हुआ कि पार्टी उनकी क्षमताओं का उपयोग नहीं कर रही है, उन्होंने पार्टी छोड़ दी.

पुणे से अंजुम इनामदार, लातूर से मोहसिन खान, अंबाजोगाई से रमीज़ शेख जैसे महाराष्ट्र के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एमआईएम पार्टी से निराशा के कारण पार्टी से नाता तोड़ लिया.

एकला चलो रे की भूमिका

महाराष्ट्र समेत भारत की मौजूदा राजनीति गठबंधन और गठबंधन की राजनीति बन गयी है. महाराष्ट्र में बड़ी पार्टियां भी अपने दम पर चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं करतीं. भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी भी अन्य पार्टियों को तोड़कर उनके साथ गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रही है.हालांकि, एमआईएम अभी भी 'एकला चलो रे' की भूमिका में है.

यहां तक ​​कि 2019 में प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी के साथ भी पार्टी का गठबंधन ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सका. दरअसल इम्तियाज जलील इसी गठबंधन की बदौलत 2019 में सांसद बने थे. लेकिन यह गठबंधन टूट जाने के कारण 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी हार हो गई. इसके चलते 2024 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का केवल एक उम्मीदवार निर्वाचित हुआ.

यदि एमआईएम महाराष्ट्र में दीर्घकालिक टिकाऊ मुस्लिम राजनीति का निर्माण करना चाहती है, तो उसे पार्टी के भीतर व्यापक बदलाव करने होंगे.अकेले मुस्लिम वोटों के दम पर महाराष्ट्र में चुनाव जीतना संभव नहीं है. इसलिए, पार्टी को अन्य प्रमुख दलों या जाति समूहों के साथ गठबंधन करना होगा.पार्टी संगठन को मजबूत करना होगा.

प्रशिक्षित कैडर बनाना होगा. कार्यकर्ताओं को कार्यक्रम और नीतियां बतानी होंगी. भावनात्मक घोषणाओं और भाषणों से चुनाव में एक या दूसरी सीट तो जीत ली जा सकती है, लेकिन दीर्घकालिक राजनीति टिक नहीं सकती.इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर पार्टी ने समय रहते अपनी नीतियों में बदलाव नहीं किया तो एमआईएम धीरे-धीरे महाराष्ट्र की राजनीति में अप्रासंगिक हो जाएगी.

(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान और नागरिक शास्त्र विभाग में वरिष्ठ शोध विद्वान हैं.)