-फ़िरदौस ख़ान
हर मुसलमान का अरमान होता है कि वह हज करे. हाजी को मुस्लिम समाज में बड़ी इज़्ज़त के साथ देखा जाता है. हाजी की गवाही की बहुत अहमियत है, क्योंकि लोग मानते हैं कि एक हाजी कभी झूठ नहीं बोलेगा. हज पर जाना बहुत बड़ी कामयाबी मानी जाती है. किसी का हज पर जाना उसके और उसके परिवार वालों के लिए किसी जश्न से कम नहीं होता.
हज पर जाने के लिए लोग न जाने क्या-क्या जतन करते हैं. कितने ही लोग पाई-पाई जोड़कर हज के लिए रक़म इकट्ठी करते हैं. हज करने वाला व्यक्ति इस्लाम के पांचों फ़र्ज़ मुकम्मल कर लेता है.
दुआ का इसरार
दरअसल हिन्दुस्तान में हज से पहले कई रस्में अदा की जाती हैं. इन रस्मों का इस्लाम से तो कोई सरोकार नहीं है, लेकिन ये हमारे समाज का एक अहम हिस्सा बन चुकी हैं.ये रस्में अपनी ख़ुशी का इज़हार करने का ज़रिया हैं. हज पर जाने वाले व्यक्ति के घर उसके रिश्तेदार, दोस्त और पड़ौस के लोग जमा होते हैं और उसे मुबारकबाद देते हैं. वे अपने साथ तरह-तरह के तोहफ़े लाते हैं. लोग उसे दुआ के लिए कहते हैं.
माना जाता है कि काबा शरीफ़ को देखकर जो दुआ मांगी जाती है, वह रद्द नहीं होती. इसलिए हर कोई चाहता है कि हज पर जाने वाला उसके लिए दुआ करे. लोग उससे इसरार करते हैं कि वह उनका नाम लेकर उनके लिए दुआ करे. इस मौक़े पर बहुत से लोग मेहमानों को नाश्ता करवाते हैं, तो बहुत से लोग उन्हें खाना खिलाते हैं.
गिले-शिकवे दूर करना
हज पर जाने वाला व्यक्ति अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ौसियों से माफ़ी मांगता है. उनसे कहता है कि मैं तुमसे राज़ी हूं और तुम भी मुझसे राज़ी रहना. अगर किसी से उसे कोई शिकवा-शिकायत हो, तो वह उसे दूर कर लेना चाहता है.
इसी तरह अगर किसी को उससे कोई गिला-शिकवा हो तो वह उसे भी दूर कर लेना चाहता है. दरहक़ीक़त ये अख़लाक़ का हिस्सा है. जिस तरह किसी से मुलाक़ात करते वक़्त सलाम किया जाता है और रुख़सत होते वक़्त भी सलाम किया जाता है.
उससे मुसाफ़ा यानी हाथ मिलाते हुए कहा जाता है कि राज़ी रहना. उसी तरह हज पर जाने से पहले भी लोग अपने तमाम गिले-शिकवे दूर कर लेना चाहते हैं. बहुत से मुसलमान चाहते हैं कि उन्हें हज के दौरान मौत आए. मौत का वक़्त तो मुक़र्रर है.
मगर किसी को ये पता नहीं होता है कि मौत कब आएगी, इसलिए वे अपना कफन साथ ले जाते हैं. शायद उनकी अपने अज़ीज़ों से ये आख़िरी मुलाक़ात हो, इसलिए भी वे सबसे मिलकर जाना चाहते हैं. हज के दौरान मौत होने पर उन्हें वहीं दफ़ना दिया जाता है. इस तरह की मौत को बहुत अच्छा माना जाता है.
इस्लाम में किसी से नाराज़ रहने को अच्छा नहीं माना जाता है. अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि किसी मुसलमान के लिए ये जायज़ नहीं कि वह अपने भाई के साथ तीन दिन से ज़्यादा बोलचाल बंद रखे.(सही बुख़ारी)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जो तुमसे ताल्लुक़ तोड़े तुम उससे जोड़ो, जो तुम्हें महरूम करे तुम उसे अता करो और जो तुम पर ज़ुल्म करे तुम उसे माफ़ करो.(मुसनद अहमद)
हज के बहाने लोगों में मेलमिलाप हो जाता है. जिस रस्म से टूटे हुए रिश्ते फिर से जुड़ जाएं, उसमें कोई बुराई तो नहीं है. वैसे भी इस्लाम में अख़लाक़ को बहुत ज़्यादा अहमियत दी गई है. इस बारे में बहुत सी हदीसें हैं. अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जिसका अख़लाक़ अच्छा हो मैं उस शख़्स के लिए जन्नत के बुलंद मक़ाम में एक घर का ज़ामिन हूं.(सुनन अबू दाऊद)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि बेशक मोमिन अपने अच्छे अख़लाक़ की वजह से रोज़ेदार और तहज्जुद गुज़ार शख़्स का दर्जा पा लेता है.(सुनन अबू दाऊद, मुसनद अहमद)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि क़यामत के दिन मोमिन के तराज़ू में अच्छे अख़लाक़ से भारी कोई चीज़ नहीं होगी और अल्लाह बेहया और बदज़बान को पसंद नहीं करता (जामा तिर्मज़ी)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जो कोई ये चाहता है कि उसे जहन्नुम से दूर कर दिया जाए और जन्नत में दाख़िल कर दिया जाए तो उसकी मौत इस हालत में आए कि वह अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो और वह लोगों से उस तरह पेश आए जिस तरह वह ख़ुद चाहता है कि उसके साथ पेश आया जाए.(मुस्लिम)
हज वापसी पर जश्न
जब व्यक्ति हज करके वापस आता है, तब भी घर में जश्न का माहौल होता है. वे अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ौसियों को तबर्रुक तक़सीम करता है. इसमें सऊदी अरब से लाया गया आबे-ज़मज़म, खजूर, सुरमा. तस्बीह, टोपी और जानमाज़ शामिल होती है.
लोग आबे-ज़मज़म तो मक्का से ही लाते हैं. लेकिन बाक़ी चीज़ें अपने शहर से ही ख़रीद लेते हैं. इतना ज़्यादा पानी सऊदी अरब से लाना मुमकिन नहीं है. इसलिए पानी के बड़े बर्तन में आबे-ज़मज़म की चंद बूंदे मिला ली जाती हैं. माना जाता है कि अगर एक बाल्टी पानी में आबे-ज़मज़म की एक बूंद भी मिला दी जाए तो उसमे आबे-ज़मज़म की तासीर आ जाती है. फिर सब सामान को थैलियों में पैक करके तक़सीम किया जाता है.
फिर घर में दावत रखी जाती है, जिसमें रिश्तेदार, दोस्त और पड़ौसी शामिल होते हैं. इस मौक़े पर सब लोग हाजी को मुबारकबाद देते हैं. अब उस शख़्स को हाजी कहकर पुकारा जाना शुरू हो जाता है. हज करने के बाद बहुत से लोग अपने नाम से पहले हाजी लिखते हैं.
दरअसल, हज पर जाने वालों से जुड़ी ये तमाम रस्में अपनी-अपनी ख़ुशी का इज़हार करने का ज़रिया भर हैं. आज की भागदौड़ की ज़िन्दगी में इस बहाने लोग एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं. यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि ये रस्में इंसान को कुछ लम्हों के लिए तनाव से दूर कर देती हैं और उन्हें ख़ुश होने की वजह दे देती हैं.
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)
-सभी तस्वीरें बासित जरगर