आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली
केरल केजमीउल फ़ुतुह, द इंडियन ग्रैंड मस्जिदऔरमरकज़ नॉलेज सिटीके इमाम और खतीब, डॉ. मुहम्मद अब्दुल हकीम कांडी ने बांग्लादेश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है.उनका मानना है कि बांग्लादेश में हो रहे ये तनाव न केवल वहां के अल्पसंख्यक समुदायों के लिए खतरे की घंटी हैं, बल्कि यह पूरे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बन सकते हैं.
उनका यह भी कहना है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह इन तनावों के मूल कारणों का समाधान निकाले, शांति बनाए रखे और अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा को सुनिश्चित करे.
बांग्लादेश में बढ़ते तनाव का कारण
बांग्लादेश में हाल के दिनों में धार्मिक और सांप्रदायिक तनाव तेज हुआ है, खासकर अल्पसंख्यक समुदायों के बीच असुरक्षा की भावना में बढ़ोतरी हुई है.25 नवम्बर 2024 को बांग्लादेश में वैष्णव भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं.
इस गिरफ्तारी के कारण बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा और अशांति फैल गई है.विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा और अराजकता ने बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों को और भी अधिक असुरक्षित बना दिया है.इन घटनाओं ने न केवल बांग्लादेश के भीतर बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चिंता का माहौल बना दिया है.
बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध और ईसाई अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकारों को लेकर चिंता बढ़ गई है.बांग्लादेश में जब तक इन समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती, तब तक पूरे क्षेत्र में शांति और सद्भाव की स्थिति को बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा.
भारत का कूटनीतिक समर्थन
डॉ. मुहम्मद अब्दुल हकीम कांडी ने कहा कि क्षेत्रीय स्थिरता दांव पर है और भारत को बांग्लादेश के इस संकट में कूटनीतिक समर्थन देना चाहिए.उन्होंने यह भी कहा कि भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को बांग्लादेश में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए रचनात्मक बातचीत को बढ़ावा देना चाहिए.
किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक हिंसा और तनाव के दौरान, हमें इस बात को समझना चाहिए कि बांग्लादेश के लिए यह एक संवेदनशील समय है, और इस समय अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समर्थन की अत्यधिक आवश्यकता है.भारत, जो एक बड़ा और शक्तिशाली पड़ोसी है, को बांग्लादेश में शांति की बहाली के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए.
भारतीय सरकार और भारतीय समाज को बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा में सहयोग देना चाहिए.साथ ही, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि तनाव का समाधान निकाला जा सके और शांति सुनिश्चित हो सके.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी
डॉ. कांडी ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से अपील की है कि वह इस स्थिति को न केवल सांप्रदायिक उथल-पुथल के रूप में देखें, बल्कि एक गंभीर मानवाधिकार और सुरक्षा समस्या के रूप में भी समझे.बांग्लादेश की सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह न केवल हिंसा और तनाव को नियंत्रित करे, बल्कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा और उनकी सुरक्षा को भी प्राथमिकता दे.
बांग्लादेश की सरकार को चाहिए कि वह इसके मूल कारणों की पहचान करे.अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत और असुरक्षा की भावना को समाप्त करने के लिए लंबे समय से चली आ रही सामाजिक और धार्मिक समस्याओं का समाधान निकाले.इसके लिए एक सकारात्मक संवाद और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है, जिसमें सभी समुदायों के नेताओं और अन्य हितधारकों को शामिल किया जाए.
सांप्रदायिक तनाव और क्षेत्रीय स्थिरता
डॉ. कांडी ने इस बात पर भी जोर दिया कि बांग्लादेश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव केवल बांग्लादेश तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि इनका असर पड़ोसी देशों जैसे भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल पर भी पड़ सकता है.जब तक बांग्लादेश में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव सुनिश्चित नहीं होता, तब तक पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखना कठिन हो जाएगा.इन तनावों का असर सीमाओं के पार भी देखा जा सकता है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक असंतुलन उत्पन्न हो सकता है.
संयम बरतना और तनाव को कम करना
बांग्लादेश के विभिन्न समुदायों के नेताओं और नागरिकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे संयम बरतें और किसी भी प्रकार की हिंसा या तनाव को बढ़ाने वाली कार्रवाइयों से बचें.सभी पक्षों को यह समझने की आवश्यकता है कि सांप्रदायिक तनावों का समाधान बातचीत और सहमति के जरिए ही संभव है, न कि हिंसा और विवादों के माध्यम से.सभी समुदायों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए और एक साथ मिलकर शांति बनाए रखने के प्रयास करने चाहिए.
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का योगदान
इस मुश्किल घड़ी में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का योगदान महत्वपूर्ण है.भारत और अन्य पड़ोसी देशों को बांग्लादेश की स्थिति को गंभीरता से लेना चाहिए और कूटनीतिक और रचनात्मक तरीके से समाधान निकालने के लिए सहयोग करना चाहिए.एक मजबूत और सहयोगात्मक कूटनीतिक दृष्टिकोण बांग्लादेश की सरकार को इन तनावों को सुलझाने में मदद कर सकता है.
बांग्लादेश में बढ़ते सांप्रदायिक तनावों का असर न केवल बांग्लादेश पर बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र पर पड़ सकता है.इन तनावों का समाधान एक गंभीर मुद्दा है, जो सभी देशों, सरकारों और समुदायों की जिम्मेदारी बनता है.डॉ. मुहम्मद अब्दुल हकीम कांडी की अपील महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह शांति, सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में एक सकारात्मक कदम है.
यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा हो और उनके अधिकारों का सम्मान किया जाए.साथ ही, पूरे क्षेत्र में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए सभी देशों को मिलकर काम करना चाहिए.