आवाज द वाॅयस /श्रीनगर
विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में अक्सर ऐसा नहीं होता कि मुख्य अतिथि और कुलपति कोई महिला हो. यहां तक कि डिग्री और सम्मान लेने वालों में भी महिलाओं और लड़कियों की तादाद सबसे ज्यादा हो. मगर यह शानदार इत्तेफाक कश्मीर विश्वविद्यालय के 20वें दीक्षांत समारोह में देखने को मिला. जहां मुख्य अतिथि और भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से लेकर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और कुलपति नीलोफर खान, सभी ने कश्मीर की ऐतिहासिक महिला सशक्तिकरण का प्रदर्शन किया और इसके ऐतिहासिक पहलू पर जोर दिया.
बुधवार 11 अक्टूबर से राष्ट्रपति मुर्मू कश्मीर की अपनी पहली पर दो दिवसीय यात्रा पर हैं. उन्होंने पहले दिन श्रीनगर के हजरतबल में कश्मीर विश्वविद्यालय के 20वें दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता की.
बुधवार को 20वें दीक्षांत समारोह में लड़कियों को 169 और लड़कों को सिर्फ 99 गोल्ड मेडल मिले.राष्ट्रपति मुर्मू, एलजी सिन्हा और वीसी खान सभी ने इस ओर ध्यान दिलाया और इसकी सराहना की.
वीसी ने दावा किया कि 2021-2023 की अवधि के लिए सभी स्नातकोत्तर और स्नातक डिग्री धारकों में से 59 प्रतिशत महिलाएं हैं. उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह में पीजी और यूजी डिग्री लेने वाले 53,523 छात्रों में 21946 पुरुषों के मुकाबले 31577 महिलाएं हैं.
उनके अनुसार, विश्वविद्यालय के 55 प्रतिशत छात्र पुरुष और 45 प्रतिशत महिलाएं हैं. महिलाओं को 65 प्रतिशत स्वर्ण पदक दिए जाने की राष्ट्रपति मुर्मू ने विशेष रूप से प्रशंसा की. उन्होंने गिनाया कि बुधवार के आयोजन में 21 स्वर्ण पदक विजेताओं में से 17 लड़कियां और केवल 4 लड़के थे.
वीसी खान ने कहा, यह उत्कृष्ट उपलब्धि महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण की प्रगति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाती है. वास्तव में यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ मिशन के अनुरूप है. अपने संबोधन में उन्होंने लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में की जा रही पहलों का विस्तार से ब्यौरा दिया.
एलजी सिन्हा ने कहा कि कश्मीर के प्राचीन ऐतिहासिक काल 13वीं शताब्दी ईस्वी तक महिलाओं द्वारा हासिल की गई और प्रदर्शित की गई प्रतिभा से प्रतिष्ठित थे. कल्हण की 12वीं सदी की इतिहास की किताब ‘राजतरंगिणी’ के अध्यायों के संदर्भ में, सिन्हा ने यशोमती, कश्मीर की पहली रानी, सुगंधा देवी, रानी दिद्दा, कोटा देवी, अमृतप्रभा, सैन्य कमांडर लीला देवी, शोरा देवी के अलावा प्रसिद्ध कश्मीरी कवयित्री का गौरवपूर्ण उल्लेख किया. इस सूची में लाल देद और हब्बा खातून का नाम भी शुमार है.
खातून एक रानी-कवयित्री और कश्मीर के अंतिम मूल सम्राट यूसुफ शाह चक की पत्नी थीं.उन्होंने 1578 से 1586 तक कश्मीर पर शासन किया था. तब मुगलों ने आक्रमण किया और घाटी पर विजय प्राप्त की.
एलजी सिन्हा ने महिला सशक्तिकरण के लिए कई कार्यक्रम शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त करते हुए कहा,कश्मीर में महिला सशक्तिकरण का वह दौर लौटने लगा है. हम अब आजादी के 76वें वर्ष और कश्मीर विश्वविद्यालय के अमृत काल में है.”,
सिन्हा ने राष्ट्रपति मुर्मू को संबोधित करते हुए कहा, आज यहां आपकी उपस्थिति कश्मीर की कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बनेगी.हमारी बेटियों की उपलब्धि, उनका आत्मविश्वास, साहस और शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में नए कीर्तिमान रचने की क्षमता पूरे केंद्र शासित प्रदेश के लिए बहुत गर्व की बात है. यह राष्ट्र के उज्जवल भविष्य का प्रतिबिंब है. महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की दिशा में एक कदम है. ”
मुर्मू ने अपने संबोधन की शुरुआत प्रोफेसर रहमान राही द्वारा लिखित कश्मीर विश्वविद्यालय के मंत्रमुग्ध कर देने वाले गान-हे मौज काशीरी (ओह द मदर कश्मीर) से की. उन्होंने राजतरंगिणी के संदर्भ में बहादुर कश्मीरी महिला यशोवती और अन्य का भी जिक्र किया और विश्वास जताया कि वीरता और उत्कृष्टता की समृद्ध परंपरा को उन युवा छात्रों द्वारा आगे बढ़ाया जाएगा जो दीक्षांत समारोह में सम्मान और डिग्री प्राप्त कर रहे हैं.
राष्ट्रपति को यह जानकर खुशी हुई कि कश्मीर विश्वविद्यालय में 55 प्रतिशत छात्र लड़कियां हैं. उन्होंने कहा कि वे हमारे देश और उसकी नियति की तस्वीर पेश करते हैं. महिलाएं और लड़कियां देश के नेतृत्व में बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं.
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 हमारे देश में महिला नेतृत्व वाले विकास की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा.
उग्रवादियों के प्रभाव के कारण नहीं होता था दीक्षांत समारोह
जम्मू-कश्मीर के 10 विश्वविद्यालयों की यह ‘रानी’ 1990 में अलगाववादी विद्रोह के हमले में ढह गई थी. यहां तक कि चांसलर (गवर्नर) और प्रो-चांसलर (मुख्यमंत्रियों) को एक दशक से अधिक समय तक इसकी अनुमति नहीं दी गई.
कुलपतियों को ‘आजादी’ के प्रदर्शनों का नेतृत्व करने के लिए मजबूर किया गया. इस क्रम में यूपी की एक युवा महिला मुस्लिम लेक्चरर समेत दो प्रोफेसरों की कैंपस में गोली मारकर हत्या कर दी गई. कई छात्र और विद्वान या तो बंदूकधारी आतंकवादियों के हाथों या आतंकवादी बनने के बाद सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए.
उनमें अंतिम डॉ. मोहम्मद रफी भट का है, जिनकी 5 मई 2018 को शोपियां में मुठभेड़ में मृत्यु हो गई.शुरुआत में वीसी प्रो. मुशीरुल हक को उनके निजी सचिव अब्दुल गनी जरगर के साथ 6 अप्रैल 1990 को परिसर से अपहरण कर लिया गया था. चार दिन बाद, गोलियों से छलनी उनके शवों को श्रीनगर में फेंक दिया गया.
इससे इतर, फारसी विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद शफी खान ने कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का जीवनी लेखक बनना चुना और कथित तौर पर आतंकवादी समूह जमीयत-उल-मुजाहिदीन के शीर्ष पदाधिकारी बन गए. एक दशक से भी अधिक समय पहले, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. वह अभी भी किसी जेल में सलाखों के पीछे हैं.
2009 में, गिलानी स्वयं अपने छात्र अनुयायियों की एक उत्साही भीड़ के साथ मौजूद थे और मुख्य विश्वविद्यालय पुस्तकालय का निरीक्षण किया था. राज्यपाल की मौजूदगी में फारूक अब्दुल्ला को कानून विभाग के एक प्रोफेसर ने चिल्लाकर समर्पण करने को कहा था-आपके हाथों पर निर्देश कश्मीरियों का खून है.
चुप रहो और बैठ जाओ. विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘हैदर’ की शूटिंग के दौरान उनके दल को परिसर में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने से रोका गया था. इन तमाम कारणों से वर्षों से कश्मीर विवि में कोई वार्षिक दीक्षांत समारोह आयोजित नहीं किए जा सके थे.
यहां तक कि जब किसी को सुरक्षित एसकेआईसीसी में रखा गया, तो एक शीर्ष अलगाववादी नेता ने मुख्य अतिथि, भारत के राष्ट्रपति से अपनी पीएचडी की डिग्री लेने से इनकार कर दिया था. कुछ संकाय सदस्य कानून और साहित्य से ज्यादा जिहाद और आजादी पढ़ाते थे.
आजादी और भारत से अलग होने के लिए प्रदर्शन एक नियमित विशेषता हुआ करती थी. सामान्य स्थिति हासिल होने के बाद भी 2012 से 2121 तक कोई दीक्षांत समारोह आयोजित नहीं किया गया.
छात्र भारतीय राष्ट्रगान के सम्मान में उठने से इनकार कर देते थे.योग्यता और उत्कृष्टता में 2013 में निष्पक्ष सेक्स के पक्ष में रुझान बदलना शुरू हुआ. 19 वें दीक्षांत समारोह में 27 जुलाई 2021 को, जब राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद मुख्य अतिथि थे, स्वर्ण पदक 282 महिलाओं और 88 पुरुषों को मिले.