System of Qurbani : सऊदी अरब से लेकर अमेरिका तक, India के लिए एक उदाहरण क्यों ?

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 06-07-2023
सऊदी अरब से लेकर अमेरिका तक, कुर्बानी की व्यवस्थित व्यवस्था भारत के लिए एक उदाहरण क्यों है?
सऊदी अरब से लेकर अमेरिका तक, कुर्बानी की व्यवस्थित व्यवस्था भारत के लिए एक उदाहरण क्यों है?

 

मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली

सऊदी अरब से लेकर अमेरिका तक, ‘कुर्बानी’ न केवल एक धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि एक सामूहिक सामाजिक जिम्मेदारी भी है. इसलिए कुर्बानी को विशेष परमिट और समर्पित बूचड़खानों में ही बहुत ही व्यवस्थित तरीके से किया जाता है और किया जाना चाहिए.

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात या अमेरिका हो या यूरोप? हर जगह बलिदान एक बंद कमरे की प्रक्रिया है. लेकिन इसके विपरीत उपमहाद्वीप यानि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में ईद-उल-अजहा पर आधा विश्वास यानी साफ-सफाई की धज्जियां उड़ती नजर आती हैं.

इन देशों में नालियों से बहता खून, सड़कों पर कूड़ा फैलाते जानवर, कटे हुए सिर और खालें, हवा में भयानक दुर्गंध के साथ बिखरी हुई थी. यह प्रदूषण सिर्फ एक दिन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ईद-उल-अजहा के कई दिनों बाद भी यह बदबू एक पवित्र त्योहार और धार्मिक भावना का मजाक उड़ाती रहती है.

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यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सऊदी अरब में बूचड़खानों और रसोई को छोड़कर किसी भी जगह निजी बलि की अनुमति नहीं है. सऊदी रॉयल सरकार के उपभोक्ता संरक्षण संघ ने बलिदान के लिए स्वच्छ और बाँझ विशेष वेदियाँ बनाई हैं. अमेरिका में वध की अनुमति केवल पंजीकृत बूचड़खानों में ही है. ब्रिटेन में जानवरों का वध केवल मान्यता प्राप्त और पंजीकृत बूचड़खानों में ही किया जा सकता है.

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात नियमित रूप से ईद-उल-अजहा के अवसर पर ऐसे नियमों की घोषणा करते हैं, जो कुर्बानी को पूरी तरह से व्यक्तिगत कार्य बनाते हैं, जिससे किसी अन्य को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है, गंदगी नहीं फैलती है और पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पैदा नहीं होती है. यह कानून की सख्ती का ही संकेत है कि अबू धाबी में इसका उल्लंघन करने पर न सिर्फ जुर्माना और जेल की सजा है, बल्कि निर्वासन का रास्ता भी खुला है.


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यही कारण है कि चाहे सऊदी अरब हो या संयुक्त अरब अमीरात या फिर अमेरिका या यूरोप, ईद-उल-अजहा कहीं भी किसी के लिए कोई समस्या नहीं है. नालियों में खून नहीं बहता और हवा में बदबू नहीं फैलती. हर कोई महसूस करता है कि धार्मिक कर्तव्य के साथ कोई दूसरों की भावनाओं और नापसंदों को नजरअंदाज नहीं कर सकता है. सबसे महत्वपूर्ण चीज है स्वच्छता और स्वास्थ्य, जो सभी के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है.

अब कोरोना महामारी के बाद एक और बड़ा रास्ता खुल गया है, जो है ‘ऑनलाइन’ कुर्बानी. पैसे चुकाएं और घर बैठे अपनी कुर्बानी का गोश्त मंगवाएं. अगर आप इस गोश्त को किसी जरूरतमंद इलाके या तबके तक पहुंचाना चाहते हैं, तो यह भी संभव है. क्योंकि ऐसे संगठन हैं, जो जरूरतमंद देशों में बलि का मांस भेज रहे हैं.

संयुक्त अरब अमीरात .. स्वच्छता आधा विश्वास

इस मामले में संयुक्त अरब अमीरात ने एक मिसाल कायम की है, चाहे वह दुबई हो या अबू धाबी या शारजाह. इन सभी नगरों ने ईद अल-अधा को बूचड़खानों तक सीमित रखा है और हाउसिंग सोसायटी और सड़कों के पर्यावरण को संरक्षित किया है. इतना ही नहीं, पशु बाजारों को बूचड़खानों से जोड़ दिया गया है. यह भी स्पष्ट है कि किस क्षेत्र के लोगों को किस बूचड़खाने में जाना है. यानी कोई अराजकता नहीं, कोई लूटपाट नहीं. अब नियत समय पर जाओ और बलि के मांस का अपना पैकेट ले आओ.

अगर हम अबू धाबी की बात करें, तो आवासीय परिसरों या सार्वजनिक स्थानों पर जानवरों का वध करना गैरकानूनी है और अधिकारी ईद के दौरान ऐसी प्रथा को रोकने के लिए कड़ी निगरानी रखते हैं.


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श्रम मंत्रालय, अबू धाबी नगर पालिका और अबू धाबी पुलिस के अधिकारियों की एक समिति ईद के दौरान शहर में गश्त करती है. यदि कोई कसाई अवैध रूप से जानवरों का वध करते हुए पकड़ा जाता है, तो उसे श्रम कानून के अनुसार दंडित किया जाता है. कानूनी कार्रवाई के बाद उसे जेल और निर्वासित किया जा सकता है. उनके प्रायोजक को 10,000 दिरहम और जानवर के मालिक को दो हजार दिरहम का जुर्माना देना होगा.

इस बार भी, अबू धाबी ने घोषणा की थी कि मुनिजिद में मवेशी बाजार में अपने बलि के जानवरों को खरीदने के बाद, नागरिकों को उन्हें अल मीना, स्वचालित स्लॉटरहाउस (अल मीना), अल वतबाह, बनियास और अल शाहमा के बूचड़खानों में ले जाना चाहिए. इतना ही नहीं, आप खास ऐप्स पर भी अप्लाई कर सकते हैं और मीट की डिलीवरी करवा सकते हैं. इनमें माई सैक्रिफाइसश् और रेड क्रिसेंट अथॉरिटी (हलाल) ऐप शामिल हैं.

दुबई इसका उदाहरण है

दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र होने के नाते दुबई अपनी साफ-सफाई और सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध और लोकप्रिय है. दुबई नगर पालिका कृषि मंत्रालय की देखरेख में पशु बलि का अनुरोध करने के लिए स्वीकृत चार स्मार्ट एप्लिकेशन अल-मवाशी, तुर्की, जबीह-उल-दार और शबाब अल-फराज ऐप हैं. दुबई के लोगों ने इन ऐप्स के माध्यम से अपने अनुरोध रखे और नागरिक निकाय ने यह सुनिश्चित किया कि स्वच्छ और हलाल मांस उनके दरवाजे तक पहुंचे. नगर पालिका यह भी सुनिश्चित करती है कि बलि से पहले सभी बलि जानवरों की चिकित्सकीय जांच की जाए. इसके बाद मांस की जांच भी की जाती है.

दुबई निवासी डीएम-अनुमोदित चौरिटी जैसे दार अल बीर सोसाइटी, दुबई चौरिटी एसोसिएशन, रेड क्रिसेंट अथॉरिटी, अल अहसान चौरिटी एसोसिएशन, बैत अल खैर सोसाइटी और यूएई फूड बैंक से भी जानवरों के लिए अनुरोध कर सकते हैं.

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इसी तरह क्रिकेट के केंद्र के रूप में मशहूर शारजाह में भी ईद-उल-अजहा के मौके पर नियमों का पालन किया जाता है. शारजाह नगर पालिका ने कहा है कि शारजाह निवासी ईद-उल-अधा में जानवरों की बलि देने के लिए ‘न्यूनतम शुल्क’ पर मांस को अपने घरों तक पहुंचा सकते हैं.

उन्हें केवल पशु बाजार में जाकर जानवर का चयन करना था, भुगतान करना था और होम डिलीवरी के लिए पंजीकरण करवाना था. उसके बाद, बाजार ने केंद्रीय बूचड़खाने से संपर्क स्थापित किया और बलिदान की सुविधा प्रदान की. निवासियों से कहा गया है कि बाजारों और बूचड़खानों में नकद स्वीकार नहीं किया जाएगा. सभी भुगतान डेबिट या क्रेडिट कार्ड से किए जाएंगे - इसका मतलब है कि आप घर बैठे बड़ी जिम्मेदारी निभा सकते हैं.

शारजाह

शारजाह में एक अस्थायी बाजार स्थापित किया गया था, जहाँ न केवल जानवरों के विक्रेता और खरीदार, बल्कि पशुचिकित्सक भी ग्राहकों की खरीदारी पूरी करने से पहले जानवरों का निरीक्षण करने के लिए तैनात किए गए थे. नगर पालिका क्षेत्र में वाहनों की आवाजाही को विनियमित करने के लिए शारजाह पुलिस के साथ संपर्क करती है. इस बाजार की स्थापना का उद्देश्य ईद अल-अधा के दौरान पशुधन की असुरक्षित और अव्यवस्थित बिक्री को सीमित करना है.

भारत में क्या हो सकता है?

दरगाह अजमेर शरीफ के संरक्षक और चिश्ती फाउंडेशन के प्रमुख हाजी सैयद सलमान चिश्ती का कहना है कि निश्चित रूप से अगर कुर्बानी का व्यवस्थित आयोजन किया जाता है, तो हम भी इसके पक्ष में हैं, लेकिन यह आसान प्रक्रिया नहीं होगी. जिन देशों में यह व्यवस्था है, वहां की सरकारें इसमें सीधे तौर पर शामिल होती हैं. मैंने तुर्की से लेकर मालदीव तक बलि प्रथा देखी है. जो व्यक्तिगत प्रयास का परिणाम नहीं, बल्कि सरकार की जिम्मेदारी है.

 


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आवाज-द वॉयस से बात करते हुए वह कहते हैं कि मालदीव में बलि की इजाजत नहीं है, सरकार ने इसके लिए एक द्वीप समर्पित किया है. हद तो यह है कि कुर्बानी के बाद अल-ऐश आदि को खाद का रूप दे दिया जाता है. कोई भी कचरा समुद्र में नहीं बहाया जाता.

सलमान चिश्ती ने कहा कि ऐसी कोई भी व्यवस्था तभी संभव है, जब सरकार इसमें बड़ी जिम्मेदारी निभाए. हर शहर की नगर पालिकाएं आगे आएं. कुर्बानी से लेकर मांस वितरण तक का चरण विश्वास और विश्वास का विषय है और इसे पूरा करना प्रशासन की जिम्मेदारी होगी. सरकार को एक योजना बनानी होगी.

सैयद सलमान चिश्ती का कहना है कि स्वच्छता महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके लिए व्यक्तिगत प्रयास पर्याप्त नहीं है. इस संबंध में बड़े निर्णय और कदम उठाने होंगे. वर्तमान में गैर सरकारी संगठन सक्रिय हैं, वे शेयर बलिदान प्रणाली बना रहे हैं, वे भी स्वच्छता में महत्वपूर्ण हैं. लेकिन अगर हम चाहते हैं कि घर-घर और गांव-गांव में कोई बलि न हो, तो इसके लिए सरकार को भी सक्रिय होना होगा.

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मुंबई में अंजुमन इस्लाम के अध्यक्ष डॉ. जहीर काजी कहते हैं कि संगठित कुर्बानी संभव है, लेकिन आसान नहीं. यह काम सरकार से ज्यादा एनजीओ कर सकते हैं. कुछ बड़े शहरों में इसका परीक्षण किया जा सकता है, इसे पहले किया जाना चाहिए.

हमने इस संबंध में मुंबई में जागरूकता अभियान चलाया है और इसका असर भी दिख रहा है और उम्मीद है कि अगले साल स्थिति में और सुधार होगा. आवाज-द वॉयस से बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस्लामिक देशों में संगठित प्रबंधन सरकार द्वारा किया जाता है. भारत में यह मुश्किल होगा, इसलिए हम स्वच्छ भारत अभियान के तहत सरकार से कुछ मदद जरूर ले सकते हैं, लेकिन पहल एनजीओ और मुस्लिम संस्थाओं या संगठनों को करनी होगी. इसका मतलब है कि आप घर बैठे बड़ी जिम्मेदारी निभा सकते हैं.

वे कहते हैं कि पवित्रता आस्था का आधा हिस्सा है, हम सब जानते हैं, हमारे अभियान का फायदा हुआ है, लोग जाग रहे हैं, लेकिन अगर आप इसे सऊदी अरब या अमेरिका के रूप में देखना चाहते हैं, तो इसमें मुस्लिम संस्थाएं और एनजीओ शामिल हैं. सरकार का हाथ और समर्थन जरूरी होगा. क्योंकि यह व्यवस्था व्यक्तिगत या संगठनात्मक स्तर पर स्थापित नहीं की जा सकती. इसमें सरकार और नगर पालिका की भूमिका भी काफी अहम होगी. हालाँकि, अगर काम अच्छा है तो मुश्किल होने पर भी सकारात्मक रहना चाहिए.