स्वतंत्रता सेनानी बोगा मौलवी की मजार बनी सौहार्द की दरगाह

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 23-06-2024
 Boga Maulvi's tomb
Boga Maulvi's tomb

 

अरीफुल इस्लाम / सिपाझार

श्रीमंत शंकरदेव और अजान फकीर की धरती असम में सौहार्द और भाईचारे के सैकड़ों उदाहरण हैं. असम में अनादि काल से हिंदू और मुसलमानों के सौहार्दपूर्ण तरीके से रहने की कई कहानियां हैं. हालांकि, समय के साथ कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने समाज की सबसे मजबूत ताकत को निशाना बनाना शुरू कर दिया.

फिर भी राज्य के लोगों के बीच भाईचारा और सौहार्द अभी भी कायम है, लेकिन पहले की तुलना में इसमें कुछ कमी आई है. अभी भी उत्तरी असम के दरांग जिले के मराई गांव में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता और सौहार्द सबसे ऊंचे स्तर पर है. गांव में एक दरगाह सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक है - मराई गांव से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 15 के किनारे बोगा बाबा की मजार.

बोगा बाबा की दरगाह पर विभिन्न धर्मों के लोग एकत्र होते हैं. मजार की लोकप्रियता इलाके या असम तक सीमित नहीं है, क्योंकि यह राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है. यह मजार पूरे देश में मशहूर है. दूर-दूर से ट्रक और बसें दान देने और प्रार्थना करने के लिए यहां रुकती हैं. इसके अलावा, दरगाह पर राहगीरों के लिए पीने के लिए मुफ्त पेयजल उपलब्ध है.

बोगा बाबा का असली नाम औलिया अब्दुल खालिक था. वे 1916 में तत्कालीन सिलहट जिले (अब बांग्लादेश में) से असम आए थे. शुरू में वे गोग, सत्सली, बादलगुरी और अन्य स्थानों पर रहे. आखिरकार वे 1919 में सिपाझार के मराई गांव में आ गए. उस समय से, उन्होंने बड़े दरांग जिले में इस्लाम का प्रचार किया.

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मौलवी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी नेतृत्व किया, जिसके कारण उन्हें जेल जाना पड़ा. वे क्षेत्र के लोगों के बीच पूजनीय थे. 1933 में बोगा बाबा की मृत्यु हो गई. स्थानीय लोगों ने उन्हें लोगों के बीच जीवित रखने के लिए उनकी कब्र पर एक मजार बनवाई है.

बोगा बाबा मजार के सचिव हाफिज अली ने आवाज-द वॉयस से बात करते हुए कहा, ‘‘मौलवी ने यहां इस्लाम की मशाल जलाई. धर्म का प्रचार करने के साथ-साथ उन्होंने शांति, सद्भाव और भाईचारे का संदेश भी फैलाया.

फिर उन्होंने मौलाना दीदारुद्दीन साहब को मौलाना की शिक्षा लेने के लिए भेजा. बोगा बाबा को सभी लोग अल्लाह के औलिया (किसी दैवीय शक्ति के स्वामी) मानते हैं. हिंदू और मुसलमान दोनों ही यहां आकर प्रार्थना करते हैं.’’

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उन्होंने बताया, ‘‘वर्तमान में, पूरे असम और भारत से लोग जो इस राजमार्ग से यात्रा करते हैं, वे इस मजार को दान देते हैं. बागा बाबा के उपदेशों के कारण अब मराई गांव में करीब नौ मस्जिदें हैं. इन मौलवियों ने इलाके को लोकप्रिय बनाया.

पिछले कुछ सालों में लोगों और तीर्थयात्रियों की आमद बढ़ी है. इसमें हिंदुओं और मुसलमानों का बराबर का योगदान है. मजार के निर्माण कार्य की शुरुआत पूर्व राष्ट्रपति जीबन बरुआ ने की थी.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मजार की प्रबंधन समिति में अभी भी कई गैर-मुस्लिम हैं, जैसे भूमिधर सहरिया, हिमांशु कलिता और अन्य.’’

मजार में सप्ताह के हर गुरुवार को मिलाद शरीफ का आयोजन होता है. इसके अलावा, हर साल माघ की 12 तारीख (जनवरी के अंत में) को बोगा बाबा की पुण्यतिथि पर उर्स का आयोजन किया जाता है.

उर्स में भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग भाग लेते हैं. हालांकि बोगा बाबा मजार एनएच 15 के उत्तरी किनारे पर स्थित है, लेकिन सड़क के दक्षिणी किनारे पर भी मजार का परिसर है. उल्लेखनीय है कि बोगा बाबा मजार ने पूरे दारंग जिले के साथ-साथ बड़े मरई बिजुलीबाड़ी क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम एकता और सद्भाव बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.