आवाज द वॉयस/ मुंबई
मालेगाव—ये शहर महाराष्ट्र का वो ठिकाना है जहाँ मुस्लिम ज़िंदगी की धड़कन सबसे तेज़ सुनाई देती है. रमज़ान का मौसम हो तो यहाँ की गलियाँ खुशबू से भर जाती हैं. नान की महक के साथ-साथ इत्र की छोटी-छोटी बोतलें भी बाज़ार में छा गईं. इस बार व्यापारियों का अंदाज़ा है कि दो लाख से ज़्यादा इत्र की बोतलें बिक गईं. ये सिर्फ़ बिक्री की बात नहीं—ये मालेगाव की शान और इस्लाम की ख़ूबसूरत रिवायत का हिस्सा है.
इत्र: रमज़ान का प्यारा साथी
रमज़ान में मुस्लिम भाई नए कपड़ों के साथ इत्र और सुरमा खरीदते हैं. ये कोई नई बात नहीं—इस्लाम में इत्र को ख़ास जगह हासिल है. पैग़ंबर साहब की सुन्नत बताती है कि इत्र लगाना दिल को सुकून देता है.
ईद की नमाज़ से पहले हर शख़्स इत्र की कुछ बूँदें लगाता है—खुशबू फैलती है, और रूह ताज़ा हो जाती है. मालेगाव में ये रिवायत ज़ोरों पर है. यहाँ सौम्य गुलाबी इत्र से लेकर तेज़ मसालेदार खुशबू तक, सैकड़ों क़िस्में मिलती हैं. 20 रुपये से लेकर 5000 रुपये तोले तक—हर जेब के लिए कुछ न कुछ है.
मालेगाव: इत्र का दूसरा सबसे बड़ा बाजार
मालेगाव को मुंबई के बाद महाराष्ट्र का सबसे बड़ा इत्र का केंद्र कहते हैं. यहाँ की गलियों में रमज़ान के दिनों में इत्र की दुकानों पर भीड़ लगी रहती है. दो लाख से ज़्यादा छोटी बोतलें बिकने का अंदाज़ा है—और ये सिर्फ़ शहर तक नहीं रुकता.
धुळे, नासिक, येवला से लेकर तमिलनाडु, हैदराबाद, हिमाचल, मेघालय, जम्मू-कश्मीर तक मालेगाव का इत्र जाता है. यहाँ के कुछ व्यापारी खुद इत्र बनाते हैं, तो कुछ दुबई, सऊदी से मँगवाते हैं. 30 से 100 रुपये की बोतलें आम हैं, और हर जुम्मे को मस्जिदों के बाहर 5-10 रुपये में इत्र के बोळे बिकते हैं.
बाज़ार में इत्र की धूम
रमज़ान में इत्र की बिक्री दुगुनी हो जाती है. यहाँ के बाज़ार रातभर गुलज़ार रहते हैं—लोग नान खरीदते हैं, खजूर लेते हैं, और इत्र की बोतलें भी थैले में डालते हैं. मर्द-औरत, सब इत्र के शौक़ीन हैं.
नासिक ज़िले से लोग ख़ास मालेगाव आते हैं, क्यूँकि यहाँ की खुशबू में कुछ ख़ास बात है. कुछ व्यापारियों ने अपने ब्रांड बना लिए हैं—अभिनेताओं और सेलिब्रिटीज़ के नाम वाले इत्र तरुणों में हिट हैं. लाखों की उलाढाल होती है, और ये धंधा कई घरों को रोज़गार देता है.
एक दुकानदार की ज़ुबानी
खिजील अहमद (एस. ए. अत्तरवाला) अपनी दुकान पर बैठे बताते हैं, “रमज़ान में इत्र के बिना कुछ अधूरा-सा लगता है. यहाँ हिंदू भाई भी आते हैं, इत्र की बोतलें ले जाते हैं. मालेगाव से बाहर रहनेवाले लोग कहते हैं, ‘मालेगाव का इत्र लाओ, मज़ा ही अलग है.’ इस रमजान में अब तक कम से कम दो लाख बोतलें बिकी हैं—खुशबू से सबका दिल महक जाता है.” उनकी बात में मालेगाव की वो मिठास दिखी, जो हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को भी खुशबूदार बनाती है.
साझी विरासत की महक
मालेगाव की ख़ासियत उसकी मुस्लिम आबादी ही नहीं, बल्कि यहाँ का आपसी प्यार भी है. इत्र यहाँ सिर्फ़ धंधा नहीं—ये एक रिवायत है जो सबको जोड़ती है. हिंदू भाई भी इसे खरीदते हैं, और मुस्लिम इसे लगाकर नमाज़ पढ़ते हैं. रमज़ान में ये छोटी-सी बोतल साझी विरासत की बड़ी कहानी कहती है—खुशबू से भरी, मोहब्बत से रंगी.