मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली
जब देश में कहीं-कहीं सांप्रदायिक तनाव की आंच उठती है, तब उसी धरती से गंगा-जमुनी तहज़ीब की ठंडी बयार एक नई मिसाल बनकर उभरती है. यह मिसालें यह साबित करती हैं कि भारत की मिट्टी में भाईचारे की खुशबू रची-बसी है, जिसे कोई उखाड़ नहीं सकता. ऐसी ही एक मिसाल हाल ही में दिल्ली के ओखला क्षेत्र में स्थित हरी मस्जिद, जिसे अलनूर मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है, के पुनर्निर्माण कार्य से जुड़ी है.
मस्जिद पहले कुछ ऐसी दिखती थी
दिल्ली के बटला हाउस इलाके की नफीस रोड पर स्थित इस मस्जिद का निर्माण करीब 32-33 साल पहले हुआ था. यह मस्जिद शुरुआत से ही इलाके के लोगों की आस्था का केंद्र रही है. लइक अहमद, जो इस समय मस्जिद कमेटी के प्रमुख हैं, बताते हैं कि मस्जिद की जमीन एस.ए. खान ने दान में दी थी.
मस्जिद की स्थापना के समय बनी कमेटी में लइक अहमद खुद भी शामिल थे. आज यह मस्जिद एक बार फिर चर्चा में है – कारण है इसका नवनिर्माण और उसकी शानदार कारीगरी.
सबसे खास बात यह है कि इस मस्जिद के पुनर्निर्माण का कार्य एक हिंदू कारीगर विवेक चैरसिया और उनकी टीम ने किया है. विवेक मूलतः राजस्थान से हैं, और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर और मेरठ की कई मस्जिदों, मंदिरों और ऐतिहासिक इमारतों की मरम्मत और निर्माण में उन्होंने योगदान दिया है. जब हरी मस्जिद को नए रूप में सजाने का विचार सामने आया, तो काफी छानबीन के बाद उनका चयन किया गया.
करीब दो साल पहले मस्जिद के अंदरूनी और बाहरी हिस्से को सुंदर और सुविधाजनक बनाने की योजना बनी. इसके लिए पहले कारीगरों की खोज की गई, फिर विवेक चैरसिया से संपर्क हुआ. उनके काम के वीडियो देखे गए और उनकी कलात्मक समझ को देखते हुए मस्जिद के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी गई.
विवेक और उनकी टीम ने पूरे ग्यारह महीने तक मस्जिद पर काम किया. पत्थर की नक्काशी, डिजाइन, और वास्तुकला में आधुनिकता और परंपरा का खूबसूरत समावेश किया गया. उनके द्वारा उपयोग की गई सामग्री और तकनीक से मस्जिद की दीवारों पर ऐसे पत्थर लगाए गए हैं, जिनकी गहराई और घनत्व देखकर बाहरी व्यक्ति को अंदाज़ा तक नहीं हो सकता कि यह पुनर्निर्माण है.
मस्जिद कमेटी के अनुसार, विवेक चैरसिया ने इस काम को केवल एक व्यावसायिक परियोजना नहीं, बल्कि एक धार्मिक और भावनात्मक कर्तव्य समझकर किया. निर्माण के बाद जब पूरा हिसाब-किताब किया गया, तो तयशुदा राशि से कहीं ज्यादा खर्च सामने आया. मगर विवेक ने अतिरिक्त पैसे लेने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा,
“यह मस्जिद का काम है, इबादत का है, जितने में तय हुआ था उतना ही लूंगा.”
इस बात से प्रभावित होकर मस्जिद कमेटी ने उन्हें सवा लाख रुपये का ईनाम अपनी तरफ से भेंट किया. लेकिन यह सम्मान भी उस समर्पण और मेहनत की तुलना में कम था जो उन्होंने इस काम में लगाई थी.
आज जब निर्माण का पर्दा हट चुका है और मस्जिद का नया रूप सामने आया है, तो इलाके के लोग इसकी खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थकते. खासतौर पर फ्रंट व्यू और भीतर का आंतरिक डिज़ाइन इतना सुंदर बन चुका है कि इसे इलाके की सबसे सुंदर मस्जिद कहा जा रहा है. यह मस्जिद ओखला के सनराइज़ स्कूल के सामने स्थित है और इसका नया रूप आने-जाने वाले हर व्यक्ति को आकर्षित करता है.
हालांकि, अब चर्चा यह भी है कि क्या इस मस्जिद को अभी भी “हरी मस्जिद” कहा जाएगा? क्योंकि पहले इसका रंग हरा था, जो इसके नाम से मेल खाता था, लेकिन अब इसमें पत्थरों की भव्य नक्काशी है और रंग-रूप पूरी तरह बदल गया है। फिर भी, लोग इस नाम से जुड़ी पुरानी यादों और पहचान को संजोए हुए हैं.
मस्जिद अब अंदर से ऐसी हो गई है
इस कहानी में सबसे बड़ी बात यही है कि यह मस्जिद अब सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक धार्मिक सौहार्द, आपसी समझ और इंसानियत की मिसाल बन चुकी है. एक हिंदू कारीगर का मुस्लिम इबादतगाह के प्रति यह समर्पण और इमानदारी यह दर्शाता है कि धर्म, जाति, भाषा, संस्कृति से ऊपर इंसानियत है. यही है भारत की असली ताकत – गंगा-जमुनी तहज़ीब.