फजल पठान
अंग्रेजो के खिलाफ समाज को एकजुट करने और आपसी भाईचारा बढ़ाने के लिए लोकमान्य तिलक ने पुणे में गणेशोत्सव की शुरुआत की थी. गणेशोत्सव के अवसर पर, पूरे महाराष्ट्र में धार्मिक सौहार्द और एकता के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं. लेकिन क्या आपने कभी मस्जिद में गणपति की स्थापना के बारे में सुना है?
चाहे मोहर्रम हो, ईद हो या गणेशोत्सव, महाराष्ट्र में हिंदू और मुस्लिम मिल जुलकर बड़े उत्साह से त्योहार मनाते हैं. इसके कई अनोखे उदाहरण पूरे राज्य में मिलते हैं. गोटखिंडी गांव में भी एक ऐसी ही अनोखी परंपरा है, जिसे हिंदू-मुस्लिम सौहार्द का अद्वितीय उदाहरण कहा जा सकता है.
सांगली जिले के वालवा तहसील का गोटखिंडी गांव कई वर्षों से धार्मिक सौहार्द की परंपरा को संजोए हुए है. पूरे महाराष्ट्र में यह गांव हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करनेवाला गणेशोत्सव मनाने के लिए प्रसिद्ध है.
मस्जिद में होती है गणपति की स्थापना
गणेशोत्सव के दौरान महाराष्ट्र के कई स्थानों पर दरगाह और मस्जिद के परिसर में गणपति बैठाए जाते हैं . उनकी विधिपूर्वक पूजा की जाती है. गोटखिंडी में गणेशोत्सव की परंपरा भी कुछ ऐसी ही है. यहां पिछले चार दशकों से भी अधिक समय से गणेशोत्सव के दौरान गणपति की स्थापना मस्जिद में ही होती है.
इस परंपरा का इतिहास भी बहुत दिलचस्प है. इस बारे में जानकारी देते हुए न्यू गणेश मंडल के सचिव राहुल कोकाटे बताते हैं, " 43 साल पहले गोटखिंडी गांव के झुंजार चौक में हमेशा की तरह हिंदू भाइयों ने गणपति की स्थापना की थी.
लेकिन उस समय भारी बारिश हुई, और गणपति की मूर्ति पर पानी टपकने लगा. तब मस्जिद के बुजुर्ग मुस्लिम सदस्यों ने गणपति की मूर्ति को मस्जिद में लाकर रखने का सुझाव दिया."
वे आगे बताते हैं, "मुस्लिम भाइयों के इस निर्णय से गणपति की मूर्ति बारिश से सुरक्षित रही. अगले साल गांव में एक बैठक हुई और तय किया गया कि भविष्य में मस्जिद के परिसर में ही गणपति की स्थापना की जाएगी. दोनों समुदायों ने इस निर्णय को खुशी-खुशी स्वीकार किया."
मुस्लिम होते हैं गणेशोत्सव में शामिल
गोटखिंडी के मुस्लिम समाज ने चार दशक पहले गांव के हिंदुओं को मदद और सहयोग का हाथ बढ़ाया था. गणेशोत्सव के दौरान मस्जिद परिसर में गणपति की प्राणप्रतिष्ठा की अनुमति देकर उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता और धार्मिक सौहार्द का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया.
आज भी गणेशोत्सव में हर प्रकार की सहायता के लिए गांव का मुस्लिम समाज हमेशा तत्पर रहता है. गणेशोत्सव के दौरान भी मुस्लिम कार्यकर्ता सेवा के लिए तैयार रहते हैं। अक्सर गणपति की आरती के बाद प्रसाद वितरण भी मुस्लिम भाई ही करते हैं.
हिंदू-मुस्लिम एकता गोटखिंडी की परंपरा है
सांगली जिले के मिरज में 2009 में गणपति के दौरान ही एक बडा दंगा हुआ था, जिससे हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया था. लेकिन उससे कुछ ही किलोमीटर दूर स्थित गोटखिंडी गांव में सबकुछ सामान्य था. दंगे के समय भी यहां की हिंदू-मुस्लिम एकता और धार्मिक सौहार्द बरकरार रहा.
एक साथ मनाई गई अनंत चतुर्दशी और बकरी ईद
पिछले कुछ वर्षों में दो-तीन बार बकरी ईद और अनंत चतुर्दशी एक ही दिन पड़ी थी. बकरी ईद मुस्लिम समुदाय के मुख्य त्योहारों में से एक है, जबकि अनंत चतुर्दशी हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है.
इस स्थिति में मुस्लिम समाज ने बकरी ईद का उत्सव नहीं मनाया. उन्होंने कुर्बानी किए बिना यह त्योहार अनंत चतुर्दशी के बाद मनाया। मोहर्रम और गणेशोत्सव के बारे में जानकारी देते हुए सचिव राहुल कोकाटे बताते हैं, "1986 और 2014 में मोहर्रम और गणेशोत्सव एक साथ पड़े थे. तब भी हिंदू और मुस्लिम समुदाय ने मिलकर मोहर्रम के पंजे और गणपति की स्थापना एक ही जगह पर की थी."
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए साथ आते है हिंदू-मुस्लिम
गणेशोत्सव महाराष्ट्र के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इस अवसर पर सार्वजनिक मंडल दस दिनों तक विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं. प्रबोधनात्मक कार्य करने के लिए न्यू गणेश मंडल के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के युवक बड़े पैमाने पर एक साथ आते हैं. इस समय गणेशोत्सव के दौरान वे कंधे से कंधा मिलाकर विभिन्न कार्यक्रमों को बड़े उत्साह से पूरा करते हैं.
गोटखिंडी का हिंदू और मुस्लिम समाज
गोटखिंडी का मुस्लिम समाज हमेशा हिंदू त्योहारों और आयोजनों में उत्साह से भाग लेते हैं. गांव के मुस्लिम लोग बताते हैं, “हर त्योहार में हिंदू-मुस्लीम एक-दूसरे के घर जाकर मिलते हैं, एक दुसरे को शुभकामनाएं देते है.
जब त्योहारों की बात आती है तो हमें यह महसूस नहीं होता कि हम हिंदू हैं या मुस्लिम हैं. हम सभी एक हैं, इसी भावना के साथ हम मिलकर विभिन्न त्योहारों और आयोजनों का जश्न मनाते हैं.”
महाराष्ट्र के गोटखिंडी गाँव के मुस्लिम समाज की पहल से शुरू हुई यह परंपरा सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पुरे भारत के लिए धार्मिक सौहार्द की अनोखी मिसाल है.