फूल पत्ती कढ़ाई मुगल काल की विरासत, आज भी अलीगढ़ में जीवित

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 03-01-2025
Flower leaf embroidery is a legacy of the Mughal period, still alive in Rampur of Aligarh
Flower leaf embroidery is a legacy of the Mughal period, still alive in Rampur of Aligarh

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 
 
फूल पत्ती का काम उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ और रामपुर क्षेत्रों की महिलाओं द्वारा की जाने वाली एक पारंपरिक कढ़ाई है. फूल पत्ती कढ़ाई मुगल काल से चली आ रही है. जिसे पारंपरिक एप्लीक कढ़ाई भी कहा जाता है. 

लेकिन अलीगढ की रूबीना राशिद अली ने आवाज द वॉयस को बताया कि इन हुनरमंद महिलाओं को फूल पत्ती की कला के वो दाम नहीं मिल पा रहा था जिसकी वे असल में हकदार हैं जिसके बाद उन्होनें इस कला को एक नए तोर पर लोगों तक पहुंचने का काम शुरू किया.
 
 
अलीगढ़ में ही पली-बढ़ी रूबीना राशिद अली सैकड़ों महिलाओं के रोजगार की स्रोत हैं. उन्होनें आवाज द वॉयस को बताया कि वे अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रशासनिक डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं. और वे अपने तीन बच्चों और पति के साथ एएमयू केम्पस में ही रहती हैं. उन्होनें दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवरटाइजिंग से एडवरटाइजिंग एंड कम्युनिकेशन में मास्टर्स की.   
 
रूबीना राशिद अली ने आवाज द वॉयस को बताया कि वे 2003 से ही फूल-पत्ती का काम और कड़ाई में कुशलता पूर्वक रुचि रखती थी. लेकिन पढ़ाई, नौकरी और गृहस्थ जीवन में स्थिर होने के बाद उन्होनें 2019 में यह कार्य वापस शुरू किया और अपने साथ अनूठी एप्लिक शैली में कौशल रखने वाली महिलाओं को जोड़ा. अब वे ऑनलाइन आर्डर लेते हैं और उसे कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर अपनी टीम के साथ पूरा करते हैं. 
 
रूबीना राशिद अली ने आवाज द वॉयस को बताया कि महिलाएँ मुख्य रूप से निर्माण कार्य में लगी रहती हैं, जबकि पुरुष ऑर्डर लेने या महिलाओं से काम करवाने में लगे रहते हैं. इस वजह से, मुनाफ़े का बड़ा हिस्सा बिचौलियों को चला जाता था, जिससे महिलाएँ घाटे में रहती हैं. यह शिल्प मुख्य रूप से समकालीन सौंदर्यशास्त्र और मांग के अनुसार डिज़ाइन हस्तक्षेप और डिज़ाइन विविधीकरण और उत्पाद विविधीकरण की कमी से पीड़ित है. 
 
 
रूबीना राशिद अली ने आवाज द वॉयस को बताया कि इस आर्ट पर आधारित एक किताब भी है - फूल-पत्ती का काम, इस अनूठी कढ़ाई के रूप पर पहला प्रकाशन है. फूल-पत्ती का काम 1970 और 1980 के दशक के दौरान कारीगर महिलाओं और लड़कियों के साथ सलेहा खान के काम की झलकियों के माध्यम से बताई गई कढ़ाई की कहानी है. यह प्रकाशन उन लोगों के लिए है जो इस अनूठी एप्लिक शैली की सराहना करना, सीखना, बढ़ावा देना, तलाशना और प्रयोग करना चाहते हैं. 
 
शिल्प प्रेमियों के लिए एक उपयोगी संसाधन होने के अलावा, इस पुस्तक का उद्देश्य डिजाइनरों, उद्यमियों और नीति नियोजकों के बीच फूल-पत्ती के दायरे, लोकप्रियता और संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए रुचि पैदा करना है, साथ ही इसके कारीगरों के लिए आर्थिक लाभ और मान्यता का उचित हिस्सा सुनिश्चित करना है. 
 
 
रूबीना राशिद अली ने आवाज द वॉयस को बताया कि चिकनकारी, गोटा पट्टी वर्क, हैंड-पेंटिंग, टाई एंड डाई, मुकेश वर्क आदि जैसे अन्य शिल्पों के साथ फूल पत्ती के काम का उपयुक्त संयोजन विभिन्न रंग पैलेट में व्यापक रूप से तलाशने की आवश्यकता है.
 
न केवल कपड़ों और फैशन के सामान में बल्कि घर की सजावट, जीवनशैली आधारित उत्पादों, कॉर्पोरेट उपहार, स्मृति चिन्ह आदि में भी उत्पाद विविधीकरण से विभिन्न क्षेत्रों में इसकी व्यापक पहुंच और पैठ सुनिश्चित हो सकती है.
 
कपड़ों की आसानी से उपलब्धता के युग में बहुत से लोग हाथ से बने एप्लिक फूल पट्टी के काम के लिए अतिरिक्त पैसे खर्च करने में रुचि रखते हैं. 
 
 
रूबीना राशिद अली ने आवाज द वॉयस को बताया कि इस खूबसूरत एप्लिक वर्क को करने के लिए मूल कॉटन, कैम्ब्रिक कॉटन, कोटा कॉटन आदि का इस्तेमाल किया जाता है. हालाँकि, आजकल यह चंदेरी सिल्क पर भी किया जा रहा है. फूल-पत्ती कढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए वे रोज़ ही नए प्रयोग करती हैं जिसमें कभी वे क्रोशिया, कभी और अलग तरीके की कढ़ाई कर फूल-पत्ती का काम करते हैं जिससे वे उस पीस को और अच्छा बना सकते हैं. 
 
रूबीना राशिद अली लेडीज़ कुर्ते, साड़ी, दुपट्टे आदि पर फूल पत्ती का काम कर ग्राहकों को बेचते हैं. उनकी कुशल कारीगर इससे अच्छा रोजगार पाते हैं. वे बताती हैं कि इसकी विशिष्टता कपड़ा सजावट शैली में निहित है जिसमें महीन कपड़े के छोटे-छोटे टुकड़ों को हाथ से काटा जाता है, फिर उन्हें कुशलता से मोड़ा जाता है और छोटी पंखुड़ियों का आकार दिया जाता है और फिर कपड़े पर कढ़ाई करके कई तरह के पैटर्न बनाए जाते हैं. इस विशेष एप्लीक का भारतीय और वैश्विक कढ़ाई रूपों के संग्रह में सीमित उल्लेख मिलता है. 
 
 
 
यह इसकी पृष्ठभूमि और दायरे का पता लगाता है. एक बेहतरीन सचित्र पुस्तक, यह हमें विभिन्न फूल-पत्ती आकृतियों, डिज़ाइनों और सामग्रियों की सरणी से गुज़ारती है. यह अलंकरण और नवाचारों के साथ प्रयोगों को समेटती है, जिसमें विभिन्न परिधानों और घरेलू साज-सज्जा पर इसका उपयोग शामिल है. और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अलीगढ़ के कारीगरों की एक झलक प्रदान करता है. 
 
अलीगढ़ में फूल-पत्ती कारीगर महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण और विकास के लिए रूबीना राशिद अली की यह पहल वाकई सराहनीय है. वह अपने सारे डिजाइन खुद ही तैयार करते हैं और अपने साथ काम करने वाले कारीगरों के कल्याण का भी पूरा खयाल रखते हैं.
 
प्यार से हाथ से बनाए गए उत्पाद न केवल भारतीय कारीगरों की बेहतरीन शिल्पकला को दर्शाते हैं, बल्कि देश की विरासत की समृद्धि को भी दर्शाते हैं. भारत में प्रत्येक समुदाय किसी न किसी कला रूप या शिल्प पर पनपने के लिए जाना जाता है जो आजीविका का साधन प्रदान करता है.
 
रूबीना राशिद अली ने आवाज द वॉयस को बताया कि उन्होनें इस खूबसूरत एप्लिक वर्क से तैयार हुए कपड़ों की प्रदर्शनी दिल्ली हाट, कोलकाता बाज़ार, बेंगलोर, राजस्थान ,कोटा आदि जगह लगाई जहां उनके काम को काफी सराहा गया.
 
रूबीना राशिद अली ने आवाज द वॉयस को बताया समय बीतने के साथ, शिल्प देश के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू का एक अभिन्न अंग बन गए हैं. दुर्भाग्य से, पिछले कुछ वर्षों में कई शिल्प विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं क्योंकि फास्ट फैशन ब्रांड अपने आसानी से उपलब्ध सस्ते कपड़ों के विकल्पों के साथ बाजार में छा रहे हैं. ऐसे में हमें इन कारीगरों की मेहनत और कला को सराहने का मौका गवाना नहीं चाहिए.