जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता
कोलकाता से लगते हल्दिया के नूर मोहम्मद एक बार दुर्गा प्रतिमा के निर्माण में व्यस्त हो गए हैं. प्रत्येक दुर्गा पूजा से ऐसा ही होता आ रहा है. तमाम दुर्गा पंडाल वाले चाहते हैं कि मां दुर्गा की प्रतिमा नूर मोहम्मद ही बनाए.अब दुर्गा पूजा शुरू होने में बस चंद रोज़ बाकी है.आगामी 9 अक्तूबर, बुधवार से 'दुर्गा पूजा उत्सव' विधिवत शुरू हो जाएगा.पहले दिन का उत्सव 'महाषष्ठी' कहलाता है.फिर, अगले दिन 10 अक्तूबर को 'महासप्तमी', 11 अक्तूबर को 'महाअष्टमी' और 12 अक्तूबर, शनिवार को 'महानवमी' है.'महानवमी' दुर्गा पूजा का आखिरी दिन है. उसके बाद 13 अक्तूबर को विजयादशमी पड़ता है.
विजयादशमी से विसर्जन आरंभ हो जाता है,जहां तक इस बार होने वाली दुर्गा पूजा की संख्या का सवाल है, तो महानगर कोलकाता में इस बार 2, 976आवेदन पुलिस के पास आए थे, जिसमें से 2, 808पूजा कमिटियों को दुर्गा पूजा करने की अनुमति दी गई है.
इससे दर्शनार्थियों में काफी उत्साह है.पूजा पंडालों में काम करने वाले मजदूरों का उत्साह भी दोगुना हो गया है.कोई पूजा-पंडालों की सजावट को आखिरी रूप देने में लगा है, तो कोई रंग-बिरंगी रौशनी के काम में जुटा है.कोई गोलगप्पे बेचने के लिए अपनी दुकान सजा रहा है, तो कोई बेलून! इसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों की अच्छी भागीदारी है.
कम उम्र का ज़ावेद कहता है - 'दुर्गा पूजा के इंतजार में हम कब से बैठे हैं.' उसकी हां में हां मिलाते हुए कुर्बान कहता है - 'इस बार अल्लाह से दुआ है बारिश ना हो, नहीं तो हमारी किस्मत फूट जाएगी.' ये दोनों दुर्गा पूजा के उत्सव में छोटी-छोटी दुकानें लगाते हैं.एक खिलौने की, तो दूसरा बेलून की।
झारखंड और बिहार से आए मुस्लिम मजदूर
इस बार कोलकाता की दुर्गा पूजा में झारखंड और बिहार से आए मुस्लिम मजदूरों की संख्या ठीक-ठाक है. कोई रांची से आया है, तो कोई देवघर से. एकाध मुस्लिम मजदूर गुमला जिले से भी और कोई बिहार के पटना साहिब से आया है.बातचीत करने पर पता चला कोलकाता की दुर्गा पूजा से उनकी किस्मत अरसे से जुड़ी है. वे पंद्रह दिन पहले कोलकाता चले आते हैं. आते ही कोई दक्षिण कोलकाता की तरफ चला जाता है, तो कोई हावड़ा स्टेशन की ओर.
वहां वे दुर्गा पूजा पंडालों के बाहर तरह-तरह के खिलौने का स्टाल लगाते हैं.इसके लिए पूजा कमिटियों को थोड़े रुपए भी देने पड़ते हैं, तभी वे अपने पंडाल के बाहर दुकान लगाने की अनुमति देते हैं.आखिरी दिन जब ये मुस्लिम दुकानदार घर को जाते हैं, तो इनका मन-मिजाज़ सातवें आसमान पर होता है.
बुजुर्ग नूर मोहम्मद चौधरी अरसे से बनाते हैं दुर्गा की प्रतिमा
बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले में एक सब-डिवीजन है हल्दिया.कोलकाता से हल्दिया काफी नजदीक है.हल्दिया सब-डिवीजन के तहत एक जगह है आंदुलिया, जहां 58वर्षीय नूर मोहम्मद चौधरी युवा अवस्था से ही तरह-तरह की मूर्ति बनाने का काम करते आ रहे हैं.कभी दुर्गा, तो कभी सरस्वती, तो कभी गणेश ! नूर मोहम्मद की उंगलियां हमेशा चलती रहती हैं.वे इन्हें 'अल्लाह की देन' बताते हैं.
हल्दिया के पूरे सब-डिवीजन में नूर मोहम्मद चौधरी काफी लोकप्रिय नाम है.ज्यादातर पूजा कमिटियां नूर मोहम्मद चौधरी से ही मूर्तियां बनवाती हैं.इस बार भी बुजुर्ग नूर मोहम्मद के पास काफी आर्डर है.कहते हैं - 'यह सब ऊपर वाले की देन है.' गुरु का सिखाया हुआ आज काम आ रहा है.'
बंगाल के दूसरे जिलों में भी धूमधाम से होती है दुर्गा पूजा
बंगाल के मुर्शिदाबाद, माल्दा, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर, उत्तर व दक्षिण चौबीस परगना, हावड़ा और नदिया जैसे जिलों में भी दुर्गा पूजा पंडालों की तादाद इस बार कम नहीं है.हालांकि, मुर्शिदाबाद जिले में मुसलमानों की आबादी 69.5 प्रतिशत, माल्दा में 53.3 प्रतिशत, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर में 42.8 प्रतिशत, हावड़ा में 30 प्रतिशत और नदिया जिले में 26.76 प्रतिशत है.
राजधानी कोलकाता से सटे उत्तर और दक्षिण चौबीस परगना जिले को मिलाकर मुसलमानों की आबादी है 36.1 प्रतिशत.दुर्गा पूजा के वक्त ये जिले रौशनी से जगमगाने लगते हैं.जानकर बताते हैं इस बार भी इन जिलों में काफी संख्या में दुर्गा पूजा हो रही है.
यूनेस्को से मान्यता मिल जाने के बाद बढ़ा है दुर्गा पूजा का ग्लैमर
सांस्कृतिक विरासत के रूप में कोलकाता की दुर्गा पूजा को कुछ साल पहले मान्यता मिली थीं.उसके बाद से यूनेस्को के प्रतिनिधि हर साल दुर्गा पूजा का नज़ारा देखने कोलकाता जरूर आते हैं. कहते हैं यूनेस्को के लोगों को दुर्गा पूजा के मंडप और लाइटिंग की सजावट काफी पसंद है. इस काम को बेहतरीन तरीके से करने में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के कारीगर काफी दक्ष हैं, इसलिए भी कोलकाता में दुर्गा पूजा की रौनक लगातार बढ़ रही है.
दुर्गा की केश-सज्जा को अंजाम देते हैं मुस्लिम कारीगर
दुर्गा पूजा के वक्त प्रतिमा यानी मूर्ति के माथे पर केश-सज्जा का जो काम होता है, उसे हावड़ा जिले के केश-सज्जा कारीगर आखिरी रूप देते हैं.इनमें मुसलमानों की संख्या काफी है.इन मुस्लिम कारीगरों को 'केश-सज्जा काम' के एवज में ठीक-ठाक मेहनताना मिल जाता है.
दुर्गा पूजा पंडालों को इस तरह सजाया जाता है, जिसमें मुस्लिम कारीगर भी होते हैं
बिरियानी की दुकानों पर होती है भीड़
कोलकाता की दुर्गा पूजा में बिरियानी की खपत बढ़ जाती है.बंगाली परिवारों के ज्यादातर सदस्य बिरियानी खाना नहीं भूलते.ऐसे वक्त बड़ी और ब्रांडेड मुस्लिम दुकानों पर जैसे हुजूम उमड़ पड़ता है.दुर्गा पूजा के समय महाषष्ठी के दिन से बिरियानी खाने की जो भीड़ उमड़ती है, वह महानवमी के दिन ही खत्म होती है.कहीं-कहीं विजयादशमी के दिन भी लंबी कतार में लोग खड़े दिखते हैं.महाषष्ठी से महानवमी तक मेट्रो ट्रेन भी रातभर श्रद्वालुओं को अपनी सेवा देती है.उसका अच्छा-खासा फायदा मुस्लिम समुदाय के दुकानदारों को मिलता है.