फ़ज़ल पठान
मुंबई में 26/11को हुए दहशतगर्द हमले ने नरिमन हाउस, कामा हॉस्पिटल, ताज होटल, ओबेरॉय होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और लियोपोल्ड कैफे को निशाना बनाया था.इस हमले में 166मासूम लोग मारे गए थे, और सैकड़ों ज़ख़्मी हुए थे.सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल के सामने चोटू चायवाला के नाम से मशहूर मोहम्मद तौफ़ीक़ शेख उस हमले में बाल-बाल बचे थे.उस वक़्त तौफ़ीक़ ने कई लोगों की जान बचाई थी.हाल ही में उन्होंने तहव्वुर राणा को हिन्दुस्तान लाये जानेपर अपनी राय ज़ाहिर की.
16 साल बाद तहव्वुर राणा को भारत लाया गया है.इस पर मुल्क में, ख़ासकर मुस्लिम करमफ़रमाओं ने अपनी राय दी है.26/11 के हमले का चश्मदीद तौफ़ीक़ मोहम्मद 16साल बाद फिर सामने आए.इस बार वो परेशान नज़र आए और अपने जज़्बात ज़ाहिर किए.
तौफ़ीक़ मोहम्मद ने कहा, “हुकूमत को 26/11 के बड़े मुल्ज़िम तहव्वुर राणा को कोई सहूलत नहीं देनी चाहिए.वो हीरो नहीं, हैवान है.26/11 के हमले में किसी की माँ, बहन, भाई, वालिद मारे गए.उसे कोई रहम न देकर, अलग कोठरी न देकर, हुकूमत को उस पर सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए.इस दहशतगर्द को हुकूमत 15दिन के अंदर फांसी दे दे.”
#WATCH | Mumbai: On 26/11 Mumbai attacks accused Tahawwur Rana's extradition to India, Mohammed Taufiq, a tea seller known as 'Chhotu Chai Wala' whose alertness helped a large number of people escape the attack, says, "...For India, there is no need to provide him with a cell.… pic.twitter.com/zLqHEt7sHs
— ANI (@ANI) April 9, 2025
पाकिस्तान को सबक़ सिखाओ
तौफ़ीक़ ने आगे कहा, “दहशतगर्दों पर कार्रवाई के लिए हुकूमत को अलग क़ानून बनाना चाहिए.पाकिस्तान अभी भी दहशतगर्दों को पनाह देता है.इसका नुक़सान वहां के लोगों को भुगतना पड़ता है.राणा को ऐसी सख़्त सजा दो कि बाक़ी दहशतगर्द ख़ौफ़ से कांपने लगें.”
इस्लाम किसी को मारने की तालीम नहीं देता
दहशतगर्द का कोई मज़हब नहीं होता.उसे सिर्फ़ दहशतगर्द ही कहना चाहिए.तौफ़ीक़ कहते हैं, “राणा का और मेरा मज़हब एक है.राणा ने मज़हब का नाम लेकर उन लोगों की मदद की, जिन्होंने मासूमों पर गोलियां चलाईं.
इस्लाम किसी को मारने की तालीम नहीं देता.इस्लाम अमन और मोहब्बत का पैग़ाम देता है.मज़हब के नाम पर ख़ून-ख़राबा करना मज़हब की तालीम नहीं.हमें हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर फ़ख़्र है.हर दहशतगर्द को सख़्त सजा मिलनी चाहिए.”
लोगों की जान बचाने वाले तौफ़ीक़
पाकिस्तानी दहशतगर्द बेरहमी से लोगों को मार रहे थे.पूरा स्टेशन सन्नाटे में डूबा था.लोग अपनी जान बचा रहे थे.कोई उनकी मदद को नहीं था.उस वक़्त के बारे में तौफ़ीक़ बताते हैं, “उनके पास बंदूकें देखकर पहले मुझे लगा शायद कमांडो हैं.लेकिन वो बेरहमी से लोगों को मार रहे थे.वो इंसान नहीं, हैवान थे.उनमें से एक (कसाब) मेरी तरफ़ आ रहा था.उसने मुझे गालियां दीं। मुझे लगा अब मैं भी मारा जाऊंगा.”
वो आगे कहते हैं, “गोलीबारी से स्टेशन की कांच टूट गई थी.पूरा स्टेशन ख़ून से भर गया था.लोग अपनी जान बचाने के लिए तड़प रहे थे.कई लोग ज़ख़्मी थे.मैं चाहता था कि ज़ख़्मी लोगों को बचाऊं.मैंने ज़ख़्मी लोगों को ठेले पर लादकर सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल और भायखला के रेलवे हॉस्पिटल पहुंचाया। इस तरह कई लोगों की जान बची.”
ये वाक़िया रोंगटे खड़े करने वाला था, लेकिन तौफ़ीक़ ने हिम्मत से हालात संभाले.उन्होंने इंसानियत को सबसे ऊपर रखकर, बिना ज़ात-मज़हब देखे, लोगों की जान बचाई.इसके लिए उन्हें 27 इनाम और कुछ माली मदद दी गई थी.
26/11 के हमले की तौफ़ीक़ की यादें
हमले के बारे में तौफ़ीक़ बताते हैं, “26/11की रात मैं चाय के पैसे लेने रेलवे स्टेशन गया था.वहां 4000से ज़्यादा लोग थे.टिकट लेने की भीड़ थी, तो टिकट मास्टर ने मुझे थोड़ी देर बाद पैसे लेने को कहा.मैं स्टेशन के बाहर खड़ा हो गया.मुझे आज भी याद है, उस दिन भारत और इंग्लैंड का क्रिकेट मैच चल रहा था.थोड़ी देर बाद अचानक स्टेशन के अंदर से पटाखों जैसी आवाज़ आई.”
वो आगे कहते हैं, “पहले मैंने पटाखों की आवाज़ पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया.लेकिन धीरे-धीरे आवाज़ बढ़ने लगी.मैं फटाफट स्टेशन के अंदर गया और टिकट मास्टर से कहा, ‘गेट बंद करो, कोई बम फोड़ रहा है.’ उन्होंने कहा, ‘ऐसी मज़ाक़ मत कर, पुलिस मारेगी.’ मैंने कहा, ‘मज़ाक़ नहीं, मैंने अपनी आंखों से देखा है.’”
इसके बाद तौफ़ीक़ ने पुलिस को फोन करके हमले की ख़बर दी.इस स्टेशन पर हुए हमले में अजमल आमिर कसाब और इस्माइल ख़ान शामिल थे.इन दहशतगर्दों ने बेक़ाबू गोलीबारी की, जिसमें 58लोग मारे गए.पुलिस ने अजमल आमिर कसाब को पकड़ लिया था, लेकिन उसका साथी इस्माइल ख़ान मारा गया था.