आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली
"उर्दू सिर्फ़ एक भाषा नहीं, बल्कि एक संस्कृति, एक जीवनशैली और वैश्विक स्तर की समृद्ध भाषा है, जो भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभा सकती है." यह विचार प्रसिद्ध बुद्धिजीवी और विचारक राम बहादुर राय ने राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (NCPUL) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय विश्व उर्दू सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में व्यक्त किए.
उन्होंने कहा कि उर्दू को अपने ऐतिहासिक योगदान पर गर्व होना चाहिए, लेकिन इसे केवल साहित्य और संस्कृति तक सीमित न रखते हुए विज्ञान और तकनीकी विकास की भाषा भी बनाना होगा. उन्होंने सुझाव दिया कि इस सम्मेलन का पहला एजेंडा यही होना चाहिए कि उर्दू को विकसित भारत के दृष्टिकोण में किस तरह शामिल किया जाए.
राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल को इस ऐतिहासिक आयोजन के लिए बधाई देते हुए, उन्होंने कहा कि परिषद को न केवल उर्दू के प्रचार-प्रसार में बल्कि "विकसित भारत" अभियान में भी अपनी भूमिका निभाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए.
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार ने भी इस सम्मेलन को संबोधित किया और कहा कि "विकासशील भारत के निर्माण में देशभक्ति की सामान्य भावना अहम भूमिका निभाएगी." उन्होंने कहा कि भारत अतीत में जिस तरह उन्नत था, वैसा ही भविष्य में भी हो सकता है, और इसमें देश की अन्य भाषाओं के साथ-साथ उर्दू भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.
✔ सम्मेलन की शुरुआत राष्ट्रगान और दीप प्रज्वलन से हुई.
✔ सभी अतिथियों का गुलदस्ता, शॉल और मोमेंटो देकर सम्मान किया गया.
✔ सम्मेलन में देश-विदेश के उर्दू विद्वान, शिक्षाविद और साहित्यकार शामिल हुए.
उद्घाटन सत्र में परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल ने कहा कि "विकसित भारत" की अवधारणा एक राष्ट्रीय सपना है, जिसे पूरा करने के लिए समाज के हर वर्ग को मिलकर कार्य करना होगा.
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक उर्दू भाषा और साहित्यकारों ने देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने यह भी बताया कि इस सम्मेलन में प्रस्तुत शोध-पत्र और चर्चाएं भाषा के विकास की नई राहें खोलेंगी और "विकसित भारत" की परियोजना को पूरा करने में सहायक होंगी.
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के भाषा विभाग की निदेशक सुश्री सुमन दीक्षित ने अपने संबोधन में कहा कि उर्दू भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके शब्द भारत की लगभग सभी भाषाओं में पाए जाते हैं.
📌 उन्होंने मुख्य रूप से तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जोर दिया:
1️⃣ उर्दू को केवल किताबों तक सीमित न रखा जाए, बल्कि इसे डिजिटल माध्यमों पर भी अधिकाधिक उपयोग किया जाए.
2️⃣ इस भाषा को न केवल बुजुर्गों की, बल्कि युवा पीढ़ी की भी भाषा बनाया जाए.
3️⃣ सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर उर्दू की भागीदारी बढ़ाई जाए.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद 1996 से उर्दू भाषा को लोगों तक पहुंचाने के लिए विभिन्न योजनाएं चला रही है, और यह विश्व सम्मेलन भी उसी दिशा में एक कदम है.
सम्मेलन के सम्मानित अतिथि प्रोफेसर एहतेशाम हसनैन ने अपने भाषण में कहा कि "विकसित भारत" के निर्माण में सांस्कृतिक विरासत की महत्वपूर्ण भूमिका होगी, और इसमें उर्दू भाषा का विशेष योगदान रहेगा.
उन्होंने कहा कि "उर्दू पूरी तरह से एक भारतीय भाषा है, और इसकी 99% क्रियाएं संस्कृत से ली गई हैं."
👉 महत्वपूर्ण तथ्य:
✔ उर्दू भाषा की विस्तृत शब्दावली इसे समृद्ध बनाती है.
✔ उर्दू में वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों पर ज्यादा काम करने की जरूरत है.
✔ नई पीढ़ी में उर्दू के प्रति बढ़ती रुचि स्वागत योग्य है.
विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (NBT) के निदेशक युवराज मलिक ने इस अवसर पर कहा कि "भारत केवल एक देश नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत है, और हमारी भाषाएं हमारी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं."
📌 उन्होंने कहा कि:
✔ "हर भाषा की अपनी संस्कृति होती है और हर संस्कृति की अपनी भाषा होती है, दोनों को अलग नहीं किया जा सकता."
✔ "विकसित भारत केवल आर्थिक विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें बौद्धिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और भाषाई विकास भी शामिल है."
✔ "अब समय आ गया है कि उर्दू भाषा को केवल साहित्य तक सीमित न रखा जाए, बल्कि इसे विज्ञान और तकनीक से भी जोड़ा जाए."
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि उर्दू साहित्य का अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए और इसी तरह अन्य भाषाओं के साहित्य का उर्दू में अनुवाद होना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक लोग उर्दू भाषा और साहित्य से जुड़ सकें।
🎯 सम्मेलन के दौरान यह निष्कर्ष निकला कि:
1️⃣ उर्दू को डिजिटल युग में नई पहचान दिलानी होगी.
2️⃣ इसे विज्ञान और तकनीकी भाषा के रूप में विकसित करना होगा.
3️⃣ उर्दू साहित्य को अनुवाद के माध्यम से वैश्विक स्तर पर पहुंचाना होगा.
4️⃣ युवा पीढ़ी को उर्दू भाषा के प्रति आकर्षित करने के लिए नए पाठ्यक्रम और डिजिटल संसाधनों का विकास करना होगा.
तीन दिवसीय विश्व उर्दू सम्मेलन का उद्घाटन सत्र राष्ट्रगान के साथ संपन्न हुआ. इस मौके पर देश-विदेश से आए उर्दू प्रेमियों, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया.
यह सम्मेलन न केवल उर्दू भाषा की समृद्ध विरासत को उजागर करने का अवसर था, बल्कि इसके भविष्य की दिशा तय करने के लिए भी एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुआ।
👉 "उर्दू केवल अतीत की भाषा नहीं, बल्कि भविष्य की भी भाषा है."
📢 क्या आपको उर्दू भाषा से लगाव है? अपने विचार हमें कमेंट में बताएं!