आवाज़ द वॉयस/ पुणे
नागपुर, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुख्यालय और हजरत ताजुद्दीन बाबा की दरगाह के लिए जाना जाता है, हमेशा से हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा है. हाल ही में हुए सांप्रदायिक उपद्रव के बावजूद, नागरिकों को विश्वास है कि यह घटना उनके आपसी संबंधों को खत्म नहीं कर सकती. नागपुर के लोगों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सांप्रदायिक सौहार्द उनकी संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है.
भारत में हिंदू-मुस्लिम सह-अस्तित्व का इतिहास हज़ारों साल पुराना है. इन दोनों समुदायों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व ने गंगा-जमुनी तहजीब को जन्म दिया, जिसने साहित्य, संस्कृति, अध्यात्म और कई अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया. हालांकि, कभी-कभी सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं इस सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करती हैं.
हाल ही में महाराष्ट्र के नागपुर शहर में एक अप्रत्याशित सांप्रदायिक झड़प हुई. राज्य की उप-राजधानी और अपने शांतिपूर्ण माहौल के लिए पहचाने जाने वाले इस शहर में हुई यह घटना चौंकाने वाली थी.
1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भी जब देश के कई हिस्से हिंसा की चपेट में थे, तब नागपुर ने अपनी शांति बनाए रखी थी। ऐसे में इस बार हुई हिंसा ने न केवल नागपुर बल्कि पूरे महाराष्ट्र को झकझोर कर रख दिया.
इस अप्रिय घटना के बाद, पुलिस ने तेजी से कार्रवाई की और कुछ ही घंटों में स्थिति पर नियंत्रण पा लिया. प्रशासन की सतर्कता ने अशांति को अन्य क्षेत्रों में फैलने से रोक दिया. यह घटना रमजान के पवित्र महीने में हुई, और शहरवासियों ने पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया के लिए संतोष और आभार व्यक्त किया.
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए 11 प्रभावित क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाया गया था, लेकिन प्रशासन की कुशल कार्यप्रणाली के चलते अब 9 इलाकों में कर्फ्यू में ढील दी गई है. दोनों समुदायों के नेताओं ने मिलकर शांति और सौहार्द को बहाल करने के लिए तत्काल प्रयास किए.
नागपुर हमेशा से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का केंद्र रहा है. इस पृष्ठभूमि में, सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को बढ़ावा देने वाले संगठनों ने नागरिकों से शांति बनाए रखने की अपील की. महाराष्ट्र और नागपुर में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा के लिए कार्य करने वाले संगठनों ने मिलकर एकजुटता का संदेश दिया.
सामाजिक कार्यकर्ता अमिताभ पावड़े ने इस अवसर पर छत्रपति शिवाजी महाराज की सहिष्णुता और उनके न्यायप्रिय दृष्टिकोण का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज ने अपनी विजय के बावजूद अपने शत्रुओं का भी सम्मान किया.
अफजल खान की मृत्यु के बाद उन्होंने आदेश दिया कि उसका अंतिम संस्कार पूरे सम्मान और गरिमा के साथ किया जाए. पावड़े ने कहा, "हमें इतिहास को गलत तरीके से पेश कर तनाव पैदा करने से बचना चाहिए. नागपुर सौहार्द का प्रतीक है और हमें इसे हर हाल में बनाए रखना चाहिए."
सामाजिक संगठन के सदस्य जगजीत सिंह ने एक अनूठी पहल की घोषणा करते हुए कहा कि नागपुर में शांति और सामाजिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए उनके संगठन के सदस्य अपने घरों और वाहनों पर सफेद झंडे लगाएंगे. यह अभियान अन्य नागरिकों को भी इस पहल से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करेगा, ताकि नागपुर की पारंपरिक एकता बनी रहे.
सामाजिक कार्यकर्ता विजय बारसे ने कहा कि 1967 के बाद पहली बार नागपुर में इस तरह की हिंसा देखी गई है. उन्होंने कहा, "यह दुखद है कि आम नागरिक राजनीतिक चालों का शिकार हो रहे हैं और उन्हें इससे कोई लाभ नहीं मिल रहा.
हमें अब एकजुट होकर शांति का संदेश देना होगा." बुद्धिजीवी यशवंत तेलंग ने भी कहा कि संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है और हमें शांति और सौहार्द बनाए रखने के सिद्धांत पर कायम रहना चाहिए.
सामाजिक कार्यकर्ता गौतम कांबले ने कहा कि प्रशासन को निष्पक्षता के साथ काम करना चाहिए ताकि सभी को न्याय मिल सके. डॉ. अनवर सिद्दीकी ने कहा कि समाज को अफवाहों से बचना चाहिए और सौहार्द बनाए रखने के लिए सतर्क रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि प्रशासन को निष्पक्षता से काम करना चाहिए ताकि नफरत फैलाने वाले तत्व अपने मंसूबों में सफल न हो सकें.
जमात-ए-इस्लामी हिंद महाराष्ट्र के अध्यक्ष मौलाना इलियास खान फलाही ने नागपुर में हुई हिंसा पर गहरा अफसोस व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि सरकार सांप्रदायिक घटनाओं को रोकने में असफल रही है. उन्होंने नागरिकों से शांति बनाए रखने, धैर्य रखने और शरारती तत्वों से दूर रहने की अपील की. उन्होंने खास तौर पर रमजान के पवित्र महीने में शांति को प्राथमिकता देने पर जोर दिया.
पूर्व विधायक अनीस अहमद ने कहा, "मेरे 25 साल के राजनीतिक जीवन में यह पहली बार है कि नागपुर में इस तरह का सांप्रदायिक संघर्ष हुआ है." उन्होंने नागपुर की साझा संस्कृति को रेखांकित करते हुए कहा कि यहां के मुसलमान शिवाजी जयंती में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और रामनवमी का भी स्वागत करते हैं.
उन्होंने घोषणा की कि सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर शांति समिति का गठन किया जाएगा.
सामाजिक नेता दिनेश्वर रक्षक ने कहा कि नागपुर हमेशा से शांति और भाईचारे का केंद्र रहा है. कोविड-19 के दौरान भी शहर ने सामाजिक सौहार्द की मिसाल कायम की थी. ऐसे समय में जब परीक्षाएं चल रही हैं, इस तरह की अशांति दुखद है.
उन्होंने घोषणा की कि जल्द ही सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें पुलिस को भी आमंत्रित किया जाएगा, ताकि समाज में अच्छाई और सकारात्मक सोच को बढ़ावा मिल सके.
यह स्पष्ट है कि नागपुर की आत्मा प्रेम, सौहार्द और सह-अस्तित्व में निहित है. इस शहर के नागरिकों ने हमेशा यह साबित किया है कि वे नफरत से ऊपर उठकर शांति और भाईचारे को प्राथमिकता देते हैं. अब जरूरत इस बात की है कि प्रशासन निष्पक्ष तरीके से काम करे और नागरिक भी एकजुट रहकर सद्भाव की जीत सुनिश्चित करें.