मलिक असगर हाशमी / चंदैनी, नूंह ( हरियाणा )
राजधानी दिल्ली से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर बसे छह हजार की आबादी वाले चंदैनी गांव में पहुंचते ही मेवात के प्रति आपकी तमाम धारणाएं बदल जाएंगी. इस गांव में न कोई टटलू गिरोह है और न ही यहां गोकशी जैसा मसला. न ही यहां के लोग इतने पुरातनपंथी हैं कि अपनी बेटियों की तरक्की की राह में रोड़ा बनें. गांव का माहौल इसके उलट है. यहां के ‘दबंग बापुओं’ की बेटियां लगातार उड़ान भर रही हैं. यह सिलसिला कोई नया नहीं, अपितु ब्रिटिश काल से भी पहले से चला आ रहा है.
चंदैनी की एक हवेली
नूंह जिला मुख्यालय से तकरीबन तीन किलोमीटर का सफर तय करके जैसे ही कार चंदैनी गांव की एक प्राचीन हवेली के पास रुकी. गांव के दो युवाओं के साथ वहां पहले से 2013 में लैंड मार्गेज बैंक से सेवानिवृत्त हुए अख्तर हुसैन खड़े मिले.
हवेली गांव की एक जोहड़ के पास स्थित है, जिसके पानी से टकराकर ठंडी-ठंडी हवाएं पुरसुकून अहसास देती रहती हैं. संवाददाता के साथ गांव पहुंचे मेवात विकास मंच के महासचिव तथा इसी गांव के मूलनिवासी आसिफ अली ने बताया कि 2700 वोटर वाले चंदैनी में कभी 360 कुएं थे.
अब इनमें से कई के सिर्फ अवषेश ही बचे हैं. चंदैनी की गिनती मेवात के खुशहाल गांवों में होती है. हवेली में बनी ‘बैठक’ में पड़ी ‘खाट’ पर बैठकर जब बातचीत का दौर शुरू हुआ, तो कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आईं, जिसके बारे में मेवात के बाहर के लोग शायद ही जानते हों.
विशेषकर शिक्षा और नए आयाम गढ़ती गांव की लड़कियों के बारे में. चंदैनी को आज के दौर का ‘रोल मॉडल’ कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.
नूंह जिला हरियाणा का पिछड़ा नंबर वन
हरियाणा के मेव मुस्लिम बहुल मेवात क्षेत्र का नूंह जिला पूरे प्रदेश में बुनियादी सुविधाओं, साक्षरता और लड़कियों के ड्राप आउट रेट के मामले में सर्वाधिक पिछड़ा हुआ है.
गुड़गांव से सोहना तक के चमचमाते एक्सप्रेस वे के खत्म होने के साथ ही मेवात शुरू हो जाता है. इसकी सीमा में प्रवेश करते ही एहसास होने लगता है कि यह कोई बुनियादी सुविधाओं से जूझता क्षेत्र है.
नूंह जिले में कुल 431 गांव हैं. समग्र शिक्षा के जिला समन्वयक के आंकड़े के अनुसार, जिले में 941 प्राइमरी, मिडिल, सीनियर सेकंड्री, हाई, आरोही, कस्तूरबा और मेवात मॉडल स्कूल हैं. इन स्कूलों में 3,691 पद रिक्त हैं.
2011 की जनगणान के तहत नूंह जिले की साक्षरता दर 43.50 है. शिक्षा विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 2021-22 में 6 से 10 साल की 2,641 और 11 से 14 साल की 1509 लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया. 2022-23 में क्रमशः 839 व 389 और 2023-24 में क्रमशः 999 तथा 299 लड़कियां ड्राप आउट रहीं. नीति आयोग के देश के 100 अति पिछड़े जिलों में नूंह अव्वल रह चुका है.
चंदैनी की बेटियां गाड़ रही झंडे
ऐसी विपरीत परिस्थितियों में यदि कोई गांव शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ रहा है, तो इसके कारणों का पता लगाना कम दिलचस्प नहीं. यह जानने-समझने के लिए ही संवाददाता चंदैनी गांव पहुंचा.
मुस्लिम बहुल चंदैनी में पांच प्रतिशत निम्न जाति के लोग रहते हैं, पर वे भी शिक्षा को हथियार बनाकर लगातार उन्नति कर रहे हैं. गांव के हर समाज की लड़कियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने का शौक है.
गांव का बंद पड़ा प्राथमिक स्कूल
गांव के सेवानिवृत्त हेडमास्टर प्रह्लाद सिंह की पोती चेतना गुड़गांव के एजीटी यूनिवर्सिटी से आयुर्वेद से एमएस यानी डॉक्टर की पढ़ाई कर रही है. अख्तर हुसैन की एक बेटी गुड़गांव के गल्र्स कॉलेज से अंग्रेजी से स्नातकोत्तर करने के बाद विभिन्न न्यूज चैनलों में बतौर न्यूज एंकर काम कर चुकी हैं. अख्तर की दूसरी बेटी ने भी एमए किया है.
संवाददाता के साथ चंदैनी गए सेंट्रल बैंक से रिटायर आसिफ अली की बेटी भी एमए बीएड है. इनके एक बेटे ने एमबीए किया है.
दूसरा अकाउंटेंट के पद पर कार्यरत है. इसी गांव के मूल निवासी तथा हरियाणा वक्फ बोर्ड के स्टेट ऑफिसर खुर्शीद अहमद की बेटी दिलशाद दुबई की एक एमएनसी कंपनी में सीनियर एक्यूटिव के पद पर काम कर रही हैं.
चंदैनी गांव के रोल माॅडल मास्टर प्रह्लाद सिंह एवं गुड़गांव से डाॅक्टरी पढ़ने वाली उनकी पोती
बीडीओ के पद से सेवानिवृत हुए तथा आसिफ अली के बड़े भाई लियाकत अली की बेटी शामिया आरजू फरीदाबाद की मानव रचना यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग करने के बाद दुबई में अमीरात एयर लाइंस में एयरोनोटिक्स इंजीनियर के पद पर कार्यरत है.
अगस्त 2019 में शामिया आरजू की शादी पाकिस्तानी क्रिकेटर हसन अली से हुई थी.
पाकिस्तनी क्रिकेटर हसन अली और चंदैनी की बेटी शामिया आरजू
गांव की आरती सोनीपत से कानून की पढ़ाई कर रही है. गांव के असगर पटवारी के तीन बेटे और एक बेटी एमबीबीएस हैं. फखरुद्दीन के छोटे भाई महबूब गुड़गांव में आर्किटेक्ट हैं और इनकी बहन ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एलएसडब्ल्यू किया है. जाकिर की बेटी डॉक्टरी करके गुड़गांव में प्रैक्टिस कर रही है. यह फेहरिस्त बहुत लंबी है.
युवा पीढ़ी और नई सोच
गांव की युवा पीढ़ी नई सोच और नए करियर के साथ आगे बढ़ रही है. यही वजह है कि चंदैनी के कुछ युवा ‘ब्लाक चेन’ और क्रिप्टो करेंसी में करियर तलाशने लगे हैं. गांव के 21 वर्षीय आफताब जीडी गोयंका से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग कर रहे हैं.
मगर आगे चलकर वह क्रिप्टो करेंसी में करियर बनाने का इरादा रखते हैं. उनकी छोटी बहन अलीशा फैशन डिजाइनिंग में करियर बनाने की योजना बना रही हैं.
ग्रामीणों ने बताया कि गांव के तरीबन 15 बच्चे नए फील्ड में किस्मत आजमाने के लिए जीडी गोयंका जैसे बड़ी प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे हैं. उनमें लड़कियां भी हैं. इन बच्चों को लेने के लिए जीडी गोयंका की बस रोजाना गांव आती है.
गोयंका से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं चंदैनी के आफताब
अख्तर ने बताया कि गांव की साक्षरता दर सौ प्रतिशत है. लड़का हो या लड़की तकरीबन सभी पढ़ाई में दिलचस्पी रखते हैं.
इंजीनियरिंग के छात्र आफताब ने बताया कि गांव के 20 प्रतिशत युवा नूंह शहर में मोटर मैकेनिक का काम करते रहे हैं. मगर इसमें वह इतने माहिर हैं कि काम से हाथ खींच लें, तो नूंह के लागों को अपने वाहन ठीक कराने में पसीना छूट जाएगा.
ग्रामीणों के मुताबिक, चंदैनी के लड़के-लड़कियां इस समय बड़ी संख्या स्कूलों में टीचर, वकील और पुलिस में छोटे-बड़े पदों पर हैं. अख्तर के एक दामाद आईपीएस हैं. आला तालीम हासिल करके शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में नाम कमाने वाली 11 बहनें भी चंदैनी की ही हैं.
मास्टर प्रह्लाद, कारी रमजान और गांव के दबंग पिता
दीनी तालीम हो या दुनियावी तालीम, गांव के दो लोग मास्टर प्रह्लाद और कारी रमजान अहम रोल मॉडल हैं. हेड मास्टर के पद से 2004 में सेवानिवृत हुए प्रह्लाद सिंह आजाद भारत में गांव के पहले मैट्रिक पास व्यक्ति थे.
वह 1963 में मैट्रिक पास करके 1965 में शिक्षक के पद पर बहाल हुए थे. पहली बार मैट्रिक करने वाली लड़की के बारे में गांव वालों ने बताया कि मौलवी सुभान खान की बेटी ने करीब 60 वर्ष पहले यह उपलब्धि हासिल की थी.
गांव के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि मास्टर प्रह्लाद और कारी रमजान की बदौलत आज यहां के बच्चे अलग-अलग क्षेत्रों में पहचान बना रहे हैं. अख्तर और आसिफ के अनुसार, मास्टर प्रह्लाद जब भी किसी बच्चे को बेमतलब घूमते देखते, तो अपने पास पढ़ाने के लिए बैठा लेते थे.
यहां तक कि खेतों में भी बच्चों को पढ़ाने पहुंच जाते थे. मास्टर प्रह्लाद ने आवाज-द वॉयस से बातचीत में बीडीओ के पद से सेवानिवृत्त हुए लियाकत अली सहित कई लोगों के नाम गिनाए, जिन्होंने उनके प्रयास से आला तालीम हासिल की और वे और उनके बच्चे अच्छे पदों पर रहे. उनके पढ़ाए हुए बच्चे ही आज गांव के दबंग पिता बने हुए हैं.
वे मेवात के ‘बंद समाज’ को चीरते हुए अपने बच्चे-बच्चियों को अलग-अलग क्षेत्र में न केवल आगे बढ़ा रहे हैं, बच्चियों की पढ़ाई का विरोध करने वालों का डटकर मुकाबला कर रहे हैं. अख्तर कहते हैं कि जब उनकी बेटी टीवी में एंकर बनी, तो बहुत तरह की बातें कही गईं. उसे रोकने का हर संभव प्रयास किया गया. बावजूद इसके उन्होंने अपनी बेटी मुमताज खान को मेवात से बाहर भेजकर एंकर बनने की तालीम दिलाई.
जामिया से पीएचडी करने वाले मोहम्मद रफीक और चंदैनी पर गहरी नजर रखने वाले सेंटर बैंक से रिटायर आसिफ अली
गांव वालों ने बताया कि यहां कोई भी लड़कियों की पढ़ाई का विरोध नहीं करता. मगर गांव के बाहर निकलते ही नाना प्रकार की बातें शुरू हो जाती है. गांव के कई परिवार तो बच्चियों को पढ़ाने के लिए मेवात के बारह सेटल हो गए. मेवात में सुरक्षा, पर्दा और इस्लामिक माहौल के बहाने लड़कियों को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश की जाती है.
ग्यारह बहनों में दूसरे नंबर की शबनम कहती हैं कि ऐसे विरोधों से परेशान होकर नूंह और चंदैनी के कई लोग गुड़गांव, चंडीगढ़ या पास के दूसरे शहरों में बस गए.
न्यूज चैनल में काम करने वाली मुमताज खान के पिता अख्तर हुसैन लड़कियों की पढ़ाई में आने वाली परेशानियों का जिक्र करते हुए
अख्तर और आसिफ कहते हैं कि ऐसे ही विरोधों से परेशान होकर गांव के कारी रमजान को लड़कियों का मदरसा खोलने के लिए गुजरा जाना पड़ा. वहां उनका खास तरह का मदरसा आज भी चल रहा है, जिसमें केवल 313 लड़कियों को ही दाखिला दिया जाता है.
अख्तर की बहू फातिमा ने उसी मदरसे से आलिम की पढ़ाई की है. इस मदरसे में लड़कियों को दीनी तालीम के साथ आधुनिक शिक्षा भी दी जाती है.
कारी रमजान ने दारुल उलूम देवबंद से शिक्षा प्राप्त की थी. उनकी इस्लामिक देशों में खासी पकड़ थी. वहां के आर्थिक सहयोग से उनके द्वारा स्थापित मदरसा आज भी बखूबी चल रहा है.
उन्होंने चंदैनी में दीनी शिक्षा से संबंधित एक समृद्ध लाइब्रेरी भी स्थापित की थी, ताकि इस्लाम को इसके माध्यम से लोग ठीक से जान-समझ सकें. हालांकि 10 साल पहले वह गुजर गए, पर उनका काम उनके बच्चे आज भी आगे बढ़ा रहे हैं.
चंदैनी में किसने बोया तालीम का बीज ?
यह लाख टके का सवाल है. तकरीबन तीन घंटे तक गांव की खाक छानने, कई लोगों से मिलने के बावजूद संवाददाता यह पता लगाने में असमर्थ रहा कि चंदैनी में शिक्षा का बीज किसने बोया है.
इस बारे में बात करने पर कई लोगों ने अपनी-अपनी दलीलों से अपनी बातें सिद्ध करने की कोशिश की. अख्तर खान जैसे लोगों का तर्क है कि अंग्रेजों के शासन में एक बार अरावली की पहाड़ी की तलहटी के करीब बसे इस गांव में भयंकर बाढ़ आ गई थी. नहरों के जरिए गुड़गांव का पानी भी गांव में घुस गया था.
इसके कारण गांव की सारी फसलें नष्ट हो गई थीं. ग्रामीणों के भूखों मरने की नौबत आ गई. तभी लोगों का ध्यान पढ़ाई की ओर गया. उन्हें लगा कि पढ़ाई के जरिए वे इस मुसीबत से छुटकारा पा सकते हैं.
इसलिए वक्त बदलने के साथ गांव के लोगों का खेती के साथ पढ़ाई के प्रति भी रुझान बढ़ गया. परिणाम आज सबके सामने है. यह गांव गेहूं और खरबूजे की खेती के लिए मेवात में अलग पहचान रखता है. अलग बात है कि अब यहां खरबूजे की खेती नाम मात्र रह गई है.
आज भी चंदैनी गांव में तकरीबन 30 हवेलियों के अवशेष मौजूद हे
हालांकि आसिफ अली जैसे लोग इस तर्क से इत्तेफाक नहीं रखते. उनका कहना है कि चंदैनी पहले से ही समृद्ध रहा है. इस समृद्धि की निशानी आज भी गांव में मौजूद है. चंदैनी में आज भी तकरीबन 25 हवेलियों के खंडहर मौजूद हैं.
लोग बताते हैं कि लियाकत अली के बराबर कद के गांव के सरदार खान थे, जिन्हें बहादुर का अंग्रेजों से खिताब मिला हुआ था. फिरंगियों के शासनकाल में हिंदुस्तान भर में वह जाने जाते थे. आसिफ बताते हैं कि देश के बंटवारे के बाद उनके बेटे सरदार अहमद तुफैल पाकिस्तान में मंत्री बने. चौधरी यासीन और उनके बेटे चौधरी तैयब का गांव से गहरा नाता रहा है.
वह पड़ोस के गांव रेहना के रहने वाले थे, पर उनका दबदबा चंदैनी में था. चौधरी तैयब कई बार सांसद-विधायक रह चुके हैं और हरियाणा, राजस्थान और संयुक्त पंजाब में मंत्री भी रहे.
उनके बेटे जाकिर हुसैन भी कई बार विधायक चुने जा चुके हैं. जाकिर की एक बहन जाहिदा राजस्थान के कामा से विधायक हैं. जाकिर की बड़ी बहन अंजुम सीनियर मेडिकल ऑफिसर हैं.