फरहान इसराइली/जयपुर
रूहानियत का दूसरा नाम राजस्थान की राजधानी जयपुर के बांस बदनपुरा स्थित दरगाह हज़रत सय्यद जमालुद्दीन चिश्ती रहतुल्लाह अलैह की मज़ार है, जो कि 'दरगाह कदम रसूल' के नाम से पहचानी जाती है. ये जगह इसलिए खास है, क्योंकि मज़ार के पास कदम ए रसूल के निशान का मक़ाम है. यहाँ के माहौल में अलग किस्म की रूहानियत देखी जाती है.
ये मज़ार सदियों से लोगों की अक़ीदत का मरकज़ रहा है. कहा जाता है कि इस मज़ार पर मांगी दुआ खाली नहीं जाती. यह जितना भव्य है, इसका इतिहास उतना ही पुराना और खास है. दरअसल, सूफ़ीवाद के अनुयाइयों को सूफ़ी संत या औलिया कहा जाता है. औलिया शब्द का अर्थ है अल्लाह वाला यानी अल्लाह का दोस्त.
सूफ़ीवाद की कई धाराएं हैं, जिन्हें सिलसिला भी कहते हैं. जैसे चिश्तिया, सुहावर्दी, नक्श्बंदिया, कादरिया. इनमें हिंदुस्तान में चिश्तिया और सुहारवर्दी काफी मशहूर हुए. हज़रत सय्यद जमालुद्दीन शाह चिश्ती रहतुल्लाह अलैह का ताल्लुक चिश्तीया सिलसिले से है.
दरगाह कमेटी के सदर हाजी अब्दुल हमीद बताते हैं कि जयपुर रियासत के बसने से पहले वर्ष 1700 के लगभग पीरबाबा हज़रत सैयद जमालुद्दीन शाह चिश्ती रहतुल्लाह अलैह को उनके पीर हजरत शेख़ कलीमुल्लाह ने हुक्म दिया कि इस्लाम के चिराग की रोशनी को चारों ओर फैलाओ.
दीन दुखियों की मदद करो. हज़रत जमालुद्दीन शाह रहतुल्लाह अलैह अपने पीर से इजाज़त लेकर इस्लाम का प्रचार प्रसार करने के मकसद से दिल्ली से जयपुर पहुंचे. जल्द ही आपकी ख्याति दूर दूर तक फैल गई. दीन दुखी लोग मन्नत मांगने और परेशानियों के हल के लिए दुआएं करवाने आने लगे.
जब आप इस दुनिया से रूखसत हुए तो कब्र पर मज़ार बनाया गया. दरगाह सदर अब्दुल हमीद बताते हैं कि आज से 400 बरस पहले हजरत याहया मदनी रहतुल्लाह अलैह जो कि मदीने शरीफ में दफन हैं, उन्होंने अपने खलीफा हजरत शैख कलीमुल्लाह रहतुल्लाह अलैह को पत्थर पर पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कदमों के निशान तोहफे के रुप में दिए थे.
हजरत शैख कलीमुल्लाह रहतुल्लाह अलैह जो की सय्यद जमालुद्दीन चिश्ती रहतुल्लाह अलैह के पीर थे, जिनकी मज़ार दिल्ली की जामा मस्जिद के सामने आज भी मौजूद है. सैय्यद कलीमुल्लाह साहब ने अपनी हयात के दौरान ही कदम ए शरीफ के निशान अपने खलीफा सैयद जमालउद्दीन चिश्ती को तोहफे के रुप में दिए थे.
जिसे वे आज से 350 वर्ष पहले जयपुर लेकर आ गए और उन्होंने अपने जिंदगी में ही रसूल के कदम ए शरीफ के निशान का मुकाम बनाया. उसकी हिफाज़त की एवं यही कयाम कर लिया. इस मज़ार को रसूल के कदमों के निशान होने की वजह सेही दरगाह कदम रसूल के नाम से भी जाना जाता है.
वर्ष 1738 में हजरत सैयद जमालुद्दीन चिश्ती रहतुल्लाह अलैह के विसाल के बाद कदम शरीफ के मक़ाम के पास ही आपके मज़ार की स्थापना हुई. अब्दुल हमीद बताते हैं , इस दरगाह को जयपुर की पहली और सबसे पुरानी मजारों में से एक माना जाता है. जब हज़रत सय्यद जमालुद्दीन शाह चिश्ती रहतुल्लाह अलैह का विसाल हुआ उस समय जयपुर नहीं बसा था.
जानकारो के मुताबिक जयपुर, बसने के बाद से जयपुर रियासत की इस मज़ार में गहरी आस्था रही है. महारानी गायत्री देवी ज़ियारत करने और चादर पेश करने अक्सर आया करती थी. अब्दुल हमीद के अनुसार, प्रसिद्ध सूफी संत हजरत मौलाना जियाउद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह और हाफिज़ अब्दुल रहीम रहतुल्लाह अलैह (हज़रत झाड़ू शाह वाले बाबा) भी कदम ए रसूल में हाजिरी देने, रूहानी फैज़ हासिल करने अक्सर आया करते थे.
अब इस मज़ार की ख्याति इतनी है कि जयपुर सहित आस पास के कई जिलों से सैकड़ों लोग यहां दुआ मांगने और चादरपोशी करने पहुंचते है. प्रत्येक गुरुवार को यहां दुआ मांगने अकीदतमंद और श्रद्धालुओं का जमघट लगता है.
अक़ीदतमंद मन्नत पूरी होने पर यहाँ बने होज़ को शरबत से भर देते हैं. इस्लामी माह रबी उल अव्वल की 27 तारीख को सय्यद जमालुद्दीन चिश्ती की विसाल का दिन होता है. इससे तीन दिन पहले 24 रबी उल अव्वल को आपके पीर हजरत शेख कलीमुल्लाह रहतुल्लाह अलैह के एक दिवसीय उर्स का आयोजन किया जाता है.
27 से 30 रबी उल अव्वल तारीख तक पीर बाबा सय्यद जमालुद्दीन चिश्ती रहतुल्लाह अलैह की मज़ार परिसर में भव्य उर्स का आयोजन किया जाता है. जो चार दिन तक चलता है. इस उर्स में हिन्दू-मुस॒लमान दोनों समुदाय के लोग दूर-दूर से आकर चादरपोशी की रस्म अदा करते हैं.
साथ ही कव्वाली, नात और लंगर का भव्य आयोजन होता है. दरगाह कदम रसूल मुसलमानों की गहरी आस्था के साथ गंगा जमुनी तहजीब संस्कृति और एकता का प्रतीक भी है.
जयपुर में मौजूद कदम ए रसूल
कदम ए रसूल इस्लामिक दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मौजूद हैं. दरअसल, कदम ए रसूल, पैगंबर मुहम्मद के पदचिह्न वाले पत्थर है, जिन्हें कदम शरीफ या कदम रसूलअल्लाह या कदम मुबारक के नाम से जाना जाता है.
उन्हें पवित्रस्थलों में रखा जाता है. परंपरागत रूप से मुस्लिम समाज के कई लोगों का मानना हैं कि पैगंबर हजरत मोहम्मद जब पहाड़ों पर चलते थे तो उनके पैरों के निशान पत्थरो पर अंकित हो जाते थे. नमूने आज मक्का से लेकर दुनिया भर के पवित्रस्थलों में सहेजे गये हैं.
भारत में ये कदम ए रसूल अहमदाबाद, दिल्ली, बहराइच, कटक, गौर एवं मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल) में हैं. इन सब के अलावा जयपुर में भी कदम ए रसूल के निशान देखे जा सकते हैं.
कई हस्तियाँ आ चुकी हैं अक़ीदतमंद....
हजरत सैयद जमालुद्दीन चिश्ती रहतुल्लाह अलैह की मज़ार पर हमेशा से देश एवं प्रदेश से कई अकीदत मंद समय-समय पर आते रहे हैं. सदर अब्दुल हमीद के मुताबिक, यहां आने वालों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जयपुर राजघराने की महारानी गायत्री देवी, केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ, पूर्व मंत्री उजला अरोड़ा, राजस्थान सरकार में वर्तमान मंत्री महेश जोशी, गिरधारी लाल भार्गव, नवल किशोर शर्मा, अशोक परनामी एवं रफीक खान सहित जैसे कई नेतागण एवं प्रशासनिक अधिकारी शामिल हैं.
दरगाह कमेटी ने किए विकास कार्य
हजरत सैयद जमालुद्दीन शाह चिश्ती रहतुल्लाह अलैह की दरगाह वक्फ बोर्ड में रजिस्टर्ड है . यहाँ पिछले 22 सालों से बनी एक कमेटी दरगाह के विकास कार्यों की जिम्मेदारी संभाले हुए है. इस कमेटी ने दरगाह में कई विकास कार्य करते हुए यहां की आय में काफी बढ़ोतरी की है.
कमेटी के सदर हाजी अब्दुल हमीद, सचिव अब्दुल हमीद (रेलवे वाले), खजांची अब्दुल सत्तार, हाजी अहमद हुसैन मिस्कीनी एव सैयद अफजाल अहमद के साथ अन्य सदस्य दरगाह की देखरेख में सहयोग करते हैं. सदर अब्दुल हमीद बताते हैं कि 22 वर्ष पहले दरगाह के अक़ीदतमंद और आस पास के क्षेत्र के लोग चंदा करके उर्स का आयोजन करवाया करते थे.
उस समय दरगाह की आय बेहद कम हुआ करती थी। वर्ष 2000 में कमेटी बनने के बाद से इस कमेटी ने दरगाह पर हुए कई कब्जे खाली करवाए तथा दुकानों और कमरों का किराया बढ़ाया. अब उर्स के आयोजन के लिए चंदे की जरूरत नही पड़ती.
कमेटी द्वारा हर वर्ष ऑडिट भी करवाई जाती है. वर्ष 2003 में कमेटी द्वारा महफिल खाने एवं बाउंड्री वॉल का निर्माण कार्य करवाया गया था. वक्फ बोर्ड के साथ इस दरगाह का रिकॉर्ड जयपुर दरबार में दर्ज है. पूरा दरगाह परिसर 2 बीघा 15 बिस्वा में फैला हुआ है, जिसके तीन मुख्य दरवाजे है।दरगाह परिसर में 6 दुकानें एवं 11 कमरे वर्तमान में बने हुए हैं जिनके किराए से दरगाह की आय होती है.
परिसर में ही क़दीमी मस्जिद कदम ए रसूल और मदरसा बाग ओ बहार कायम किया हुआ है।इस मदरसे में कई छात्र कुरान की तालीम हासिल करते हैं.