डागर परिवार : पांच दिवसीय मल्हार उत्सव में बही सुरों की गंगा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-10-2023
Dagar family: Ganga of notes flowing in five day Malhar Utsav
Dagar family: Ganga of notes flowing in five day Malhar Utsav

 

फरहान इसराईली /जयपुर

उस्ताद इमामुद्दीन खान डागर इंडियन म्यूजिक आर्ट एंड कल्चर सोसायटी , संस्कृति मंत्रालय ,भारत सरकार  , संगीत नाटक अकादमी व जवाहर कला केंद्र के सह तत्वाधान में  आयोजित पांच दिवसीय मल्हार उत्सव का आयोजन  किया गया. कार्यक्रम संयोजक शबाना डागर  ने बताया  महोत्सव में जयपुर व देश के विभिन्न हिस्सों आए  लगभग 50 कलाकारों  व संगीत विदों ने भाग लिया .

उत्सव की पहली गुनीजन सभा में पद्मश्री उस्ताद वसीफुद्दीन डागर व संगीत नाटक अवार्ड से सम्मानित विख्यात बांसुरी वादक चेतन जोशी ने वरिष्ठ कला समीक्षक इकबाल खान  के साथ संवाद में हिस्सा लिया.चेतन जोशी ने बांसुरी के विस्तृत इतिहास पर रोशनी डाली .
 
उस्ताद वसीफुद्दीन डागर ने डागर वाणी की प्राचीन ध्रुपद परंपरा से संगीत विद्यार्थियों को परिचित करवाया. उन्होंने कहा कि हमारी कलाओं और  विरासत का प्रथम संरक्षक हमारा समाज है. मल्हार उत्सव का प्रारंभ पंडित चेतन जोशी ने राग मधु मल्हार से किया. उन्होंने रूपक और तीन ताल की बंदिशों से श्रोताओं को आनंदित किया .
 
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तबले पर प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद अकरम खान की संगत ने प्रस्तुति में चार चांद लगा कर श्रोताओं से वाहवाही बटोरी. मुंबई से आए पटियाला घराने के प्रमुख तबला वादक  उस्ताद फ़ज़ल कुरैशी ने तीन ताल में पेशकार,कायदा व घराने की विशिष्ट बंदिशों से अपनी साधना का परिचय दिया.
 
उनके साथ नगमे पर संगत पंडित हनुमान सहाय ने की. पद्म श्री उस्ताद वसीफुद्दीन डागर ने राग मियां मल्हार से अपनी प्रस्तुति का प्रारंभ किया . उनके प्रथम स्वर से ही सुधि श्रोताओं ने नाद व राग की गहनता का प्रत्यक्ष अनुभव किया.
 
उनके साथ पंडित श्याम मनोहर शर्मा ने पखावज पर बहुत सधी हुई संगत की.द्वितीय दिवस महात्मा गांधी को समर्पित रहा.पांच दिवसीय मल्हार उत्सव की दूसरी संध्या में विदुषी रमा सुंदर रंगनाथन ने म्यूजिक ऑफ़ थे चरखा से समा बांध दिया. 
 
एक तरफ़ डॉ अनिल चौधरी के पखावज ने श्रोतागणों का मन मोह लिया, वहीं वहीं उस्ताद इरफ़ाम मोहम्मद ख़ान के तबले पर लोगों की तालियां नहीं रुकीं.  उत्सव के तीसरे दिन संतूर , गायन व विशिष्ट वाद्य तार शहनाई व इसराज की प्रस्तुति हुई .
 
प्रातः कालीन गुनीजन सभा में  पद्मश्री पंडित सतीश व्यास व  रामपुर सहसवान घराने के उस्ताद उस्ताद मकबूल हुसैन खान ने श्री राजेश कुमार व्यास के साथ संवाद में हिस्सा लिया .उन्होंने कहा कि गुरु शिष्य परंपरा हमारे संगीत का मूल है.आने वाली पीढ़ी को इस परंपरा का महत्व समझना चाहिए.
 
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कार्यक्रम का प्रारंभ पद्मश्री पंडित सतीश व्यास जी ने संतूर वादन  से किया.। उन्होंने राग मेघ में  विलंबित झपताल और तीन ताल की बंदिशों से श्रोताओं को आनंदित किया. तबले पर प्रसिद्ध तबला वादक पंडित आदित्य कल्याणपुर की संगत ने प्रस्तुति में चार चांद लगा कर श्रोताओं से वाहवाही बटोरी.
 
ईशर सिंह नामधारी व संदीप सिंह ने तार शहनाई व दिलरुबा पर राग बागेश्री में जुगलबंदी प्रस्तुत की. रामपुर सहसवान घराने के उस्ताद मकबूल हुसैन खान व जीशान खान ने राग मेघ मल्हार प्रस्तुत की .उनके साथ हारमोनियम पर पंडित गिरिराज बालोदिया व तबले पर नजर खान ने सधी हुई संगत की .
 
चौथे दिन बुधवार को गुणीजन सभा के साथ प्रातः कालीन रागों की प्रस्तुति बेहद खास रही. गुणीजन सभा में कलाविद राजेश कुमार व्यास के साथ संगीत के विद्वानों ने चर्चा की.प्रात कालिन युवा शास्त्रीय गायक हुल्लास पुरोहित ने राग ललित और मीरा भजन की प्रस्तुति दी.
 
अवसर था जवाहर कला केंद्र में उस्ताद इमामुद्दीन खान डागर इंडियन म्यूजिक आर्ट एंड कल्चर सोसाइटी की ओर से चल रहे मल्हार उत्सव का.इस गुणीजन सभा में दरभंगा घराने के निशांत और प्रशांत मलिक ने अपने घराने से रूबरू कराया.
 
इनके साथ ही पंजाब से आए संदीप सिंह और ईशर सिंह नामधारी ने अपने वाद्यों तार शहनाई और दिलरूबा से छात्रों को परिचित कराया।ग्रैमी अवॉर्ड विजेता पद्म भूषण पंडित विश्व मोहन भट्ट और सात्विक वीणा वादक तंत्र सम्राट पंडित सलिल भट्ट ने मल्हार उत्सव में अपनी जुगलबंदी से वाहवाही लूटी.
 
इन्होंने राग मेघ मल्हार से श्रोताओं को स्वर वर्षा की अनुभूति कराई. पंडित राम कुमार मिश्रा ने अनूठी तबला संगति से कार्यक्रम को आकर्षक बनाया.इसके बाद पिता पुत्र ने राग जोगेश्वरी की भी एक विशेष प्रस्तुति में आलाप, जोड़, झाला, विलंबित और द्रुत गति की रचनाओं को प्रस्तुत किया.
 
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इसके बाद दरभंगा घराने के पं. प्रशांत और निशांत मलिक ने ध्रुवपद गायन की जुगलबंदी पेश की. उन्होंने राग मियां मल्हार में चौताल और सूलताल में अपने घराने की प्राचीन बंदिशें सुनाई.
 
समापन  साबिर सुल्तान ने अपने सारंगी वादन के साथ की. उन्होंने राग मेघ में तीन ताल विलंबित व द्रुत में घराने की बंदिशें पेश की. उनके साथ नजर खान ने तबले संगत की. साबिर खान मूलत: सीकर से ताल्लुक रखते हैं.
 
इसके बाद विदुषी सुनंदा शर्मा ने राग सुर मल्हार में ख्याल प्रस्तुत किया. इसके बाद बनारस घराने की पारम्परिक ठुमरी, कजरी व टप्पा गायन से श्रोताओं का मन मोहा. सुनंदा शर्मा पद्मविभूषण गिरिजा देवी की वरिष्ठ शिष्या है.
 
इस उत्सव का समापन पं. नयन घोष ने वर्षा ऋतु से संबंधित रागों की प्रस्तुति दी. पं. घोष देश के उन चुनिंदा कलाकारों में है जो तबला व सितार पर बराबर महारत रखते हैं. उत्सव की शुरुआत गुणीजन सभा से हुई.
 
इसमें पं. नयन घोष, सुनंदा शर्मा, साबिर सुल्तान खान और पं. हनुमान सहाय ने संगीत के विभिन्न विषयों पर कलाविद राजेश कुमार व्यास के साथ चर्चा की. कार्यक्रम का आयोजन उस्ताद इमामुद्दीन ख़ान डागर की बीसवीं पीढ़ी से शबाना डागर  व इमरान डागर 2011 से करते आ रहे हैं .